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मैं एक और चीज बदलना चाहता हूं। लोग जो एक दूसरे के बारे में बातें बनाते हैं गलत विचार धाराएं बनाते और फैलाते हैं। जैसे कि ओमी के मूर्ख बनने की बात कि क्रिकेट बॉल सिर पर लगने से दिमाग पर असर हो गया। इसका कोई आधार नहीं पर बेलरामपुर का हर व्यक्ति यही बात कहता है और ईश के बारे में कि वह एनडीए से निकाला गया था भागा नहीं था। मैं जानता हूं कि यह बात सच नहीं है। ईशान उन लाजवाब अधिकारियों के प्रति जवाबदेह न हो सका। वैसे वो आर्मी में जाने का इच्छुक था (क्योंकि उसके पास और कोई रास्ता नहीं था) पर वह कुछ मेजर अधिकारियों के हुक्मों का पालन अगले बीस वर्षों तक करने में स्वयं को असमर्थ पा रहा था।
इसीलिए उसने हर्जाना भरा और कुछ व्यक्तित्व समस्याएं – जैसे कि माता-पिता की बीमारी तथा ऐसी ही कुछ और – बता कर वहां से बेलरामपुर वापिस आ गया था|
बेशक एक और चीज़ मैं समाप्त करना चाहता था जो, सबसे जरूरी थी, विधि का विधान – मैं उस दिन भावुकताहीन हो गया था जब मेरे पिता मुझे और मां को दस वर्ष पहले छोड़ कर चले गए थे।
और हमें पता चला कि उसी शहर में उनकी एक और पत्नी भी है। जहां तक मुझे याद है मैं भावुकता को पसंद नहीं करता। मुझे मैथ्स अच्छा लगता है, तर्क अच्छा लगता है और इनमें भावुकता का कहीं कोई स्थान नहीं है। मेरा विचार है कि लोग भावुकता में बहुत समय बर्बाद करते हैं। भावुकता का सबसे बड़ा उदाहरण है, मेरी मां। पिता के चले जाने के बाद महीनों रोनेधोने का सिलसिला चलता रहा, जो भी औरतें उनके पास हमदर्दी जताने आतीं। मां ने एक और वर्ष ऐसे ही बिता दिया ज्योतिषियों से ग्रहों के बारे में पूछने में कौन सा ग्रह उसके पति का उससे दूर ले गया और यह स्थिति कब बदलेगी| फिर मासी-मामियों का तांता लगा रहा कि मेरी मां अकेली नहीं रह सकती। यह सिलसिला तब तक चलता रहा जब तक मैं पंद्रह वर्ष का नहीं हों….