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वह आईआईएमए मेस की लंच लाइन में मुझसे दो कदम आगे खड़ी थी। मैंने आँख के कोने से उस पर नज़र डाली। मैं सोच रहा था कि आखिर इस साउथ इंडियन लड़की के इतने चर्चे क्यों हैं।
उसने जैसे ही किसी भूखे रिफ्यूजी की तरह अंगुलियों से स्टील की प्लेट पर थपकियां देनी शुरू की, कमर तक आने वाले उसके बाल लहराने लगे। मैंने गौर से देखा। उसकी गोरी-सी गर्दन के पीछे वाले हिस्से में तीन काले धागे थे। देश के सबसे पढ़ाकू बी-स्कूल में एक लड़की ऐसी भी थी, जिसे सजने-संवरने से कोई ऐतराज़ न था।
‘अनन्या स्वामीनाथन-प्रेशर बैच की बेस्ट गर्ल,’सीनियर्स पहले ही डोर्म बोर्ड पर उसका नामकरण कर चुके था दो सौ स्टूडेंट्स की बैव में केवल बीस लड़कियां थीं। उनमें भी गुड लुकिंग लड़कियां इनी-गिनी ही थीं। आखिर आईआईएम में लड़कियों का चयन उनके लुक्स के आधार 66.6 पर नहीं होता| उनका चयन इसलिए होता है क्योंकि वे देश की 99.9 फीसदी आबादी की तुलना में ज़्यादा तेज़ गति से गैथ्स की प्रॉब्लम्स सुलझा लेती हैं और सीएटी पास कर लेती हैं।
आईआईएम की अधिकांश लड़कियां मेक-अप, फिटिंग कपड़े, कॉन्टैक्स लेंसेस, फेशियल हेयर रिमूवल, बॉडी ऑडर जैसी तुच्छ चीज़ों से परे होती हैं। ऐसे में यदि भूल से अनन्या जैसी कोई लड़की आईआईएम में आ जाए तो वह पुरुष यौन हॉर्मोन्स से भरपूर और स्त्री यौन हार्मोन्स की किल्लत से जूझ रहे हमारे कैम्पस के लिए फ़ौरन सपनों की रानी बन जाती है।
मैंने कल्पना की कि मिस स्वामीनाथन को पिछले एक हफ्ते में लड़कों की जितनी अटेंशन मिली होगी, उतनी उसे पूरे जीवन में नहीं मिली होगी। लिहाज़ा, मैंने मान लिया कि वह पहले ही बहुत उखड़ी हुई होगी और ऐसे में उसे इग्नोर करना ही ठीक होगा। स्टूडेंट्स ऑटो-पायलट पर इंच-दर-इंच आगे सरक रहे थे। ऊबे हुए किचन स्टाफ को इस बात की कतई फिक्र नहीं थी कि वे कैदियों को खाना परोस रहे हैं या आने वाले कल के सीईओज़ को। ते एक के बाद एक करछियां भरकर वह तरल पदार्थ स्टूडेंट्स की प्लेट में उड़ेले जा रहे थे।
ज़ाहिर है, मिस बेस्ट गर्ल को थोड़ी तवज्जो की ज़रूरत महसूस हो रही थी