अष्टावक्र गीता भाष्य / Ashtawakra Geeta Bhashya Book PDF Download

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Name  अष्टावक्र गीता भाष्य / Ashtawakra Geeta Bhashya Book PDF Download
Author  Invalid post terms ID.
Size  2.2 MB
Pages  180
Category  Religious & Sprituality
Language  Hindi
Download Link  Working


अष्टावक्र गीता को अद्वैत वेदांत के सर्वोच्च ग्रंथों में से एक माना जाता है। यह ऋषि अष्टावक्र और राजा जनक के मध्य एक वेदान्तिक संवाद है, जहाँ ग्यारह वर्ष के युवा गुरु अपने योग्य शिष्य से उच्चतम आध्यात्मिक ज्ञान की व्याख्या कर रहे हैं। यह पुस्तक अष्टावक्र गीता पर आचार्य प्रशांत की व्याख्याओं का संकलन है। आचार्य जी एवं साधकों के मध्य गहन चर्चा और प्रश्नोत्तरी के फलस्वरूप ये व्याख्या इस पुस्तक में संकलित की गयी है। साधक अपनी शंकाओं को दूर करने और अपने दैनिक जीवन में अष्टावक्र गीता के व्यावहारिक अनुप्रयोग से संबंधित प्रश्न पूछते हैं। आचार्य प्रशांत शास्त्र की ऊँचाइयों को उस स्तर पर लाते हैं जहाँ श्रोतागण गूढ़ श्लोकों को भी आसानी से समझ सकते हैं, उनसे लाभांवित हो सकते हैं और अंततः आत्मज्ञान की ऊँचाइयों तक पहुँच सकते हैं। इससे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता कि आप अध्यात्म के शुरुआती दौर में हैं अथवा एक गहरे साधक हैं; यदि आप समकालीन परिपेक्ष्य और भाषा में अद्वैत वेदांत के कालातीत ज्ञान से परिचित होना चाहते हैं, तो यह पुस्तक आपके लिए अनिवार्य है।

 

Summary of book अष्टावक्र गीता भाष्य / Ashtawakra Geeta Bhashya Book PDF Download


अद्वैत वेदांत के उच्चतम ग्रंथों में है अष्टावक्र गीता। इसमें अद्वैत ज्ञान का निरूपण भी है, मुक्ति के चरणबद्ध उपाय भी हैं और ब्रह्मज्ञानी की बात भी है। अन्य ग्रंथों से इस अर्थ में भिन्न है अष्टावक्र गीता कि यहाँ बात ही बहुत ऊँचे स्तर से शुरू होती है। शिष्य राजा जनक हैं। जो पहले से अति बुद्धिमान और विवेकी हैं। बड़ा राज्य है उनका। सब प्रकार से समृद्ध और प्रसन्न हैं। पर फिर भी एक आंतरिक अपूर्णता सताती है, तो ऋषि अष्टावक्र के पास आते हैं, जिनकी उम्र मात्र ग्यारह वर्ष है। राजा जनक की जिज्ञासा होती है, “वैराग्य कैसे हो? मुक्ति कैसे मिले?” और ऋषि अष्टावक्र का समाधान भी सरल और सीधा है; न कोई विस्तार, न कोई जटिलता। चूँकि ग्रंथ की शुरुआत ही तात्विक जिज्ञासा से होती है इसलिए श्लोक-दर-श्लोक बात बहुत गहराई तक जाती है। मनुष्य मात्र का मूल बंधन क्या है और उससे वह कैसे छूटे, इसे बड़ी आसान भाषा में कह देते हैं ऋषि अष्टावक्र। कोई भी संशय शेष नहीं रह जाता। यदि आपके मन में भी राजा जनक समान कोई जिज्ञासा उठती है तो यह भाष्य अनिवार्यतः पढ़ें। इस भाष्य में आचार्य प्रशांत ने अष्टावक्र गीता के पहले प्रकरण के प्रत्येक श्लोक का आज की भाषा में व्याख्या प्रस्तुत किया है।

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