[wpdm_package id=’1434′]
नंबर 1 राष्ट्रीय बेस्टसेलर रहे अंग्रेज़ी उपन्यास के इस हिन्दी अनुवाद में लंकापति रावण व उसकी प्रजा की कहानी सुनाई गई है। यह गाथा है जय और पराजय की, असुरों के दमन की — एक ऐसी कहानी की जिसे भारत के दमित व शोषित जातिच्युत 3000 वर्षों से सँजोते आ रहे हैं। रामायण के उलट, रावणायन की कथा अब तक कभी नहीं कही गई। मगर अब शायद मृतकों और पराजितों के बोलने का वक़्त आ गया है।
रावण
कल मेरा अंतिम संस्कार होगा। मैं नहीं जानता कि वे मुझे किसी खुजली वाले कुत्ते की तरह दफ़ना देंगे या मुझे किसी सम्राट के लिए उपयुक्त अंतिम संस्कार का भागी माना जाएगा –
एक भूतपूर्व सम्राट। परंतु इससे कोई अंतर भी नहीं पड़ता। मैं छीना-झपटी के कारण सियारों के मुख से निकल रही ध्वनि सुन सकता हूँ। वे मेरे परिजन व मित्रों के शवों को अपना आहार बना रहे हैं। अचानक ही पैर के ऊपर से कुछ सरसरा कर निकलने का आभास हुआ। ये क्या था? मुझमें तो सिर उठा कर देखने की शक्ति तक शेष नहीं रही। घूस… बड़े और काले बालों वाले चूहे। जब मूों ने परस्पर विनाश का कार्य पूर्ण कर लिया तो युद्धक्षेत्र पर इन चूहों ने
अपना अधिकार जमा लिया है। आज का दिन उनके लिए किसी उत्सव से कम नहीं है, जो कि पिछले ग्यारह दिन से चलता आ रहा है। सड़े हुए माँस, पस, रक्त, मूत्र व शवों से आती सड़ांध और भी गहराती जा रही है। शत्रु पक्ष की और हमारी भी! परंतु कोई अंतर नहीं पड़ता। किसी भी बात से अंतर नहीं पड़ता। मैं भी शीघ्र ही प्राण त्याग दूंगा। यह कष्टदायी पीड़ा अब सहन नहीं होती। उसके प्राणघातक तीर ने मेरे उदर पर गहरा वार किया है। मैं मृत्यु से भयभीत नहीं हूँ। मैं कुछ समय से इसके विषय में विचार करता आ रहा हूँ। पिछले कुछ दिनों में हज़ारों जानें गईं।
सागर की गहराइयों में कहीं, मेरा भाई कुंभ; विशाल मछलियों द्वारा अधखाई गई देह के साथ मृत पड़ा होगा। कल ही मैंने अपने पुत्र मेघनाद की चिता को मुखाग्नि दी थी। या फिर शायद एक दिवस पहले? अब तो समय का भी कोई आभास शेष नहीं रहा। मैं अनेक वस्तुओं के विषय में ज्ञान खो बैठा हूँ। ब्रह्माण्ड की गहराइयों में कहीं एक अकेला तारा हौले से टिमटिमा रहा है। मानो किसी देव का नेत्र हो। काफ़ी हद तक भगवान शिव के तीसरे नेत्र की भाँति….