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Description of भारत के पवित्र तीर्थस्थल / Bharat Ke Pavitra Teerthsthal Book PDF Download
Name : | भारत के पवित्र तीर्थस्थल / Bharat Ke Pavitra Teerthsthal Book PDF Download |
Author : | Invalid post terms ID. |
Size : | 2.6 MB |
Pages : | 172 |
Category : | Religious & Sprituality, Travel & Tourism |
Language : | Hindi |
Download Link: | Working |
तीर्थ का अभिप्राय है पुण्य स्थान; अर्थात् जो अपने में पुनीत हो; अपने यहाँ आनेवालों में भी पवित्रता का संचार कर सके। तीर्थों के साथ धार्मिक पर्वों का विशेष संबंध है और उन पर्वों पर की जानेवाली तीर्थयात्रा का विशेष महत्त्व होता है। यह माना जाता है कि उन पर्वों पर तीर्थस्थल और तीर्थ-स्नान से विशेष पुण्य प्राप्त होता है; इसीलिए कुंभ; अर्धकुंभ; गंगा दशहरा तथा मकर संक्रांति आदि पर्वों को विशेष महत्त्व प्राप्त है। पुण्य संचय की कामना से इन दिनों लाखों लोग तीर्थयात्रा करते हैं और इसे अपना धार्मिक कर्तव्य मानते हैं।
पुण्य का संचय और पाप का निवारण ही तीर्थ का मुख्य उद्देश्य है; इसलिए मानव समाज में तीर्थों की कल्पना का विस्तार विशेष रूप से हुआ है। श्रीमद्भागवत में भक्तों को ही तीर्थ बताकर युधिष्ठिर विदुर से कहते हैं कि भगवान् के प्रिय भक्त स्वयं ही तीर्थ के समान होते हैं।
प्रस्तुत पुस्तक में विभिन्न धर्मों के अनुयायियों के आस्था के केंद्रों—पवित्र तीर्थस्थलों—का रोचक वर्णन है। ये न केवल आपकी आस्था और विश्वास में श्रीवृद्धि करेंगे; बल्कि आपको मानव जीवन के मर्म का सार भी बताएँगे। पढ़ते हुए आपको साक्षात् उस तीर्थ का दर्शन हो; यह इस पुस्तक की विशेषता है। यदि आपका मन निर्मल है; और हमें विश्वास है कि वह है; तो आप घर बैठे ही तीर्थ का पुण्य-लाभ प्राप्त करेंगे।
Summary of book भारत के पवित्र तीर्थस्थल / Bharat Ke Pavitra Teerthsthal Book PDF Download
भारत में चहुँ ओर असंख्य तीर्थ फैले हुए हैं। ‘पद्मपुराण’ में साढ़े तीन करोड़ तीर्थों का उल्लेख मिलता है। संक्षेप में तीर्थ का अभिप्राय है पुण्य स्थान, अर्थात् जो अपने में पुनीत हो, अपने यहाँ आनेवालों में भी पवित्रता का संचार कर सके। तीर्थों के साथ धार्मिक पर्वो का विशेष संबंध है और उन पर्वों पर की जानेवाली तीर्थयात्रा का विशेष महत्त्व होता है। यह माना जाता है कि उन पर्वों पर तीर्थस्थल और तीर्थ-स्नान से विशेष पुण्य प्राप्त होता है, इसीलिए कुंभ, अर्धकुंभ, गंगा दशहरा तथा मकर संक्रांति आदि पर्वों को विशेष महत्त्व प्राप्त है। पुण्य संचय की कामना से इस दिन लाखों लोग तीर्थयात्रा करते हैं और इसे अपना धार्मिक कर्तव्य मानते हैं।
हिंदू धर्म में तीर्थ को पाप से तारनेवाला कहा गया है। पुण्य का संचय और पाप का निवारण ही तीर्थ का मुख्य उद्देश्य है, इसलिए मानव समाज में तीर्थों की कल्पना का विस्तार विशेष रूप से हुआ है। पद्मपुराण में लाक्षणिक आधार पर तीर्थ का व्यापक अर्थ लगाकर गरुड़-तीर्थ, माता- पिता तीर्थ, पति-तीर्थ आदि का उल्लेख है। गुरु अपने शिष्य का अज्ञानरूपी अंधकार दूर करते हैं, अतएव शिष्यों के लिए गुरु ही परम तीर्थ हैं। पुत्रों के लिए माता-पिता की सेवा से बढ़कर कोई पूज्य तीर्थ नहीं। पत्नी के लिए पति सभी तीर्थ के समान बताया गया है। ज्ञान एवं गुण से संपन्न सदाचारिणी तथा पतिव्रता स्त्री सभी तीर्थों के समान है; और ऐसी स्त्री जिस घर में निवास करती है, वह घर तीर्थ बन जाता है। श्रीमद्भागवत में भक्तों को ही तीर्थ बताकर युधिष्ठिर विदुर से कहते हैं कि भगवान् के प्रिय भक्त स्वयं ही तीर्थ के समान होते हैं।
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