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बाहर गहरा अंधेरा फैल चुका था।
क्लब में बने रेस्तरां के डायनिंग हाल में गहरी खामोशी थी। मेज-कुर्सियों को करीने से सजा दिया गया था। उन पर फूल सजे हुए थे। एक कोने में आर्केस्ट्रा पडा हुआ था। थोडी देर बाद लोगों के आने का सिलसिला शुरू होने वाला था। सारे हॉल में हल्की रोशनी फैली हुई थी।
क्लब के मालिक रिको ने अपने दफ्तरनुमा कमरे का दरवाजा खोलकर बाहर झांका। वहां गहरी खामोशी थी। उसने कान लगाकर सुना, मगर वहां किसी का स्वर नहीं था। वह वापस घूमा
और उसने दरवाजा बंद कर लिया।
कमरे में पडी कुर्सी पर एक आदमी बैठा था। उसने कहा, ‘रिको, मैं यहां सिर्फ आधा घंटा और हूं, मगर तुम परेशान क्यों हो?’
प्रश्न करने वाले का नाम बेयर्ड था। उसका कद लम्बा, चेहरा कठोर, कपड। मैले और आंखें हल्की नीली थीं। उसने जो हैट पहन रखी थी, उस पर तेल के धब्बे थे। वह सूरत से एक भयानक आदमी लग रहा था।
बेयर्ड की मौजूदगी रिको को बेहद परेशान कर रही थी। ऐसा पहली बार नहीं हुआ था। जबतब वह बेर्यड के साथ होता, उसका दिमाग परेशान हो उठता था। बेयर्ड कुछ भी कर सकता था….