पुरुष क्यों नहीं सुनते और महिलाएँ क्यों नहीं समझती / Purush Kyun Nahi Sunte aur Mahilayen Kyun Nahi Samajhti PDF Download

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Author
Allen Pease
Size
10.73 MB
Pages
239
Language
Hindi

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Name : पुरुष क्यों नहीं सुनते और महिलाएँ क्यों नहीं समझती / Purush Kyun Nahi Sunte aur Mahilayen Kyun Nahi Samajhti PDF Download
Author : Invalid post terms ID.
Size : 10.73  MB
Pages : 239
Category : Self Help Books
Language : Hindi
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पुरुष क्यों नहीं सुनते और महिलाएँ क्यों नहीं समझती … ऐलन और बारबरा पीज़ की दुनिया भर में 2.5 करोड़ से अधिक पुस्तकें बिक चुकी हैं I वे पुरुषों और महिलाओँ की मानसिकता, प्रवृति व् आदतों में पाई जाने वाली असमानताओं का विस्तृत तथा जानकारीपरक विवरण दे रहे हैं I यह एक व्यवहारिक, हास्यप्रद व् सरल पुस्तक है, जो स्त्री पुरुषों के बारे में तथ्यों को समझने में आपकी सहायता करेंगी और यह भी बताएगी कि संबंधों को बेहतर बनाने के लिए क्या करना चाहिए I इस पुस्तक में बताया गया है :

  • क्यों पुरुष एक समय में एक से अधिक काम नहीं कर पाते
  • क्यों महिलाएँ गाड़ियों की रिवर्स पार्किंग में इतनी गड़बड़ करती हैं
  • क्यों पुरुषों को महिलाएँ से झूठ नहीं बोलना चाहिए
  • क्यों महिलाएँ ज़्यादा बात करती हैं और पुरुष बहुत कम
  • क्यों पुरुषों को कामोत्तेजक छवियाँ पसंद आती हैं और महिलाओँ को नहीं
  • क्यों महिलाएँ हर मसले पर बात करना पसंद करती हैं
  • क्यों पुरुष समाधान तो बता सकते हैं लेकिन सलाह लेना पसंद नहीं करते
  • क्यों पुरुषों की ख़ामोशी महिलाओँ की हताश करती है
  • क्यों पुरुषों को सेक्स चाहिए? और महिलाओँ को प्रेम?

 

 

Summary of book पुरुष क्यों नहीं सुनते और महिलाएँ क्यों नहीं समझती / Purush Kyun Nahi Sunte aur Mahilayen Kyun Nahi Samajhti PDF Download

‘स्टीरियोटाइप‘ तर्क
1980 के दशक के अंतिम वर्षों से स्त्री-पुरुषों के बीच के अंतर और दोनों के मस्तिष्कों की कार्य प्रणाली पर शोध में बहुत तेज़ी से बढ़ोतरी हुई। पहली बार कम्प्यूटर द्वारा ब्रेनस्कैनिंग के विकसित उपकरणों के माध्यम से हमारे लिए यह संभव हुआ कि हम मानव मस्तिष्क को ‘सीधे’ काम करता देखें, इस प्रकार दिमाग़ की पूरी तसवीर में झाँकने से हमें स्त्री-पुरुषों के बीच के अंतर से जुड़े कई सवालों के उत्तर मिले। इस किताब में जिस शोध पर चर्चा की गई है, उसे वैज्ञानिक, चिकित्सा, मनोवैज्ञानिक व सामाजिक अध्ययनों से लिया गया है और यह एक चीज़ की ओर ही इशारा करता है: सभी चीज़ें बराबर नहीं हैं; पुरुष एवं महिलाएँ एक-दूसरे से अलग हैं। 20वीं सदी के अधिकतर वर्षों तक उन अंतरों की व्याख्या सामाजिक अनुकूलन के रूप में की गई, यानी हम जो भी हैं, वह अपने माता-पिता व अध्यापकों के रवैये के कारण हैं, जो दरअसल उनके समाज के रवैये का प्रतिबिम्ब होता है। नन्ही लड़कियों को गुलाबी रंग के कपड़े पहनाए जाते थे और उन्हें खेलने के लिए गुड़िया दी जाती थी; लड़कों को नीले रंग के कपड़े पहनाए जाते थे और उन्हें खेलने के लिए खिलौने सैनिक व फ़ुटबॉल जर्सी दी जाती थी। लड़कियों को गले से लगाकर, छूकर दुलारा जाता था, जबकि लड़कों को पीठ पर थपकी दी जाती थी और उन्हें कहा जाता था कि वे रोएँ नहीं। हाल तक यह माना जाता था कि पैदा होने के समय शिशु का मस्तिष्क एक साफ़ स्लेट की तरह होता था, जिस पर शिक्षक उसकी पसंद व प्राथमिकताओं को लिख सकते थे। अब उपलब्ध जैविक साक्ष्य थोड़ी अलग तसवीर दिखाते हैं कि आख़िर हमारे सोचने का तरीक़ा वैसा क्यों होता है। यह निश्चित रूप से दिखाता है कि हमारे हार्मोन्स व मस्तिष्क की बनावट हमारे रवैयों, प्राथमिकताओं व बर्ताव के बड़े पैमाने पर ज़िम्मेदार होते हैं। इसका मतलब है कि मार्गदर्शन करने के लिए किसी संगठित समाज या माता-पिता की अनुपस्थिति में किसी निर्जन टापू पर पलने-बढ़ने वाले लड़के-लड़कियों में भी लड़कियाँ गले लगाकर व छूकर प्यार जताएँगी, दोस्ती करेंगी और गुड़िया के साथ खेलेंगी, जबकि लड़के मानसिक व शारीरिक तौर पर एक-दूसरे के साथ प्रतियोगिता करेंगे और स्पष्ट पदानुक्रम वाले समूह बनाएँगे।
गर्भ में हमारे मस्तिष्क की वायरिंग और हार्मोन्स का प्रभाव हमारी सोच व बर्ताव को निर्धारित करता है।
जैसा कि आप देखेंगे, हमारे मस्तिष्क की बनावट और हमारे शरीर में काम कर रहे हार्मोन वे दो कारक हैं, जो हमारे पैदा होने से काफ़ी पहले से बड़े पैमाने पर यह तय करते हैं कि हमारी सोच कैसी होगी और हम कैसा व्यवहार करेंगे। हमारा सहज बोध और कुछ नहीं, हमारी जीन्स द्वारा यह निर्धारित करना है कि निश्चित परिस्थितियों में हमारा शरीर कैसा बर्ताव करेगा।
क्या यह सब पुरुषों का षड़यंत्र है?
1960 के दशक से कई दबाव समूह हमें इस बात के लिए मनाने की कोशिश करते रहे हैं कि हम अपनी जैविक विरासत का प्रतिरोध करें। उनका दावा है कि सरकारें, धर्म और शैक्षणिक संस्थान केवल पुरुषों द्वारा महिलाओं का दमन किए जाने के षड़यंत्र का हिस्सा रहे हैं, अच्छी महिलाओं को दबाने में उनकी सांठगाँठ रही है। महिलाओं को गर्भवती बनाए रखना उन्हें अधिक नियंत्रित करने का एक तरीक़ा था।
निश्चित तौर पर ऐतिहासिक रूप से ऐसा लगता भी है। लेकिन यह प्रश्न पूछे जाने की ज़रूरत है: यदि महिलाएँ व पुरुष एक समान हैं, जैसा कि इन समूहों का दावा है, तो पुरुषों ने आख़िर संसार पर इतना प्रभुत्व कैसे हासिल किया? अब मस्तिष्क की कार्यप्रणाली पर हुए अध्ययन से हमें कई जवाब मिलते हैं। हम एक समान नहीं हैं। पुरुष व महिलाएँ अपनी संपूर्ण क्षमता का उपयोग करने के लिए अवसरों के मामले में बराबर होने चाहिए, लेकिन अपनी जन्मजात क्षमताओं के मामले में वे निश्चित तौर पर समान नहीं हैं। महिलाएँ व पुरुष बराबर हैं, यह एक राजनीतिक या नैतिक प्रश्न है, लेकिन उनका एक समान होना एक वैज्ञानिक प्रश्न है।
स्त्री-पुरुषों की समानता एक राजनीतिक या नैतिक मुद्दा है अनिवार्य अंतर वैज्ञानिक है।
जो लोग इस विचार का विरोध करते हैं कि हमारा जीवविज्ञान हमारे बर्ताव को प्रभावित करता है, उनकी मंशा ग़लत नहीं होती, वे तो लैंगिकवाद का विरोध कर रहे होते हैं। लेकिन वे लोग बराबरी और एक समान होने के बीच के अंतर को नहीं समझ पाते, जो कि दो बिल्कुल अलग मुद्दे हैं। इस पुस्तक में आप देखेंगे कि कैसे विज्ञान इस बात की पुष्टि करता है कि स्त्री-पुरुष शारीरिक व मानसिक रूप से एक-दूसरे से बिल्कुल अलग हैं। वे एक जैसे नहीं हैं।
हमने अग्रणी जीवाश्म वैज्ञानिकों, मानवजाति विज्ञानियों, मनोवैज्ञानिकों, जीवविज्ञानिकों और तंत्रिका विज्ञानियों के शोध की छानबीन की। महिलाओं व पुरुषों के मस्तिष्कों के बीच के अंतर अब स्पष्ट हैं, जो अटकलबाज़ियों, पूव्रग्रहों या विवेकपूर्ण संदेह से परे है।
इस पुस्तक में दिए गए महिलाओं व पुरुषों के बीच अंतर पर विचार करते हुए कुछ लोग कह सकते हैं, ‘नहीं, वह तो मेरे जैसा नहीं है, मैं वैसा नहीं करता या करती!’ संभव है कि वे लोग ऐसा न करते हों। लेकिन हम यहाँ पर एक सामान्य स्त्री व पुरुष की बात कर रहे हैं, यानी अधिक पुरुष व महिलाएँ अधिकांश समय, अधिकतर मौक़ों पर ऐसा करते हैं और अतीत में भी अधिकतर वैसा ही बर्ताव करते रहे हैं। औसत या सामान्य का अर्थ है कि जब आप लोगों से भरे किसी कमरे में हों, तो आप पाएँगे कि महिलाओं की तुलना में पुरुष ज़्यादा विशाल व लंबे हैं, जो कि औसतन 7 प्रतिशत अधिक लंबे और 8 प्रतिशत अधिक विशाल होते हैं। हो सकता है कि उस कमरे में कोई महिला सबसे ज़्यादा लंबी या बड़ी हो, लेकिन सभी लोगों को देखने पर आप पाएँगे कि महिलाओं के मुकाबले पुरुष अधिक विशालकाय और लंबे हैं। गिनीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स 2001 में अधिकतर ऐसा हुआ है कि सबसे विशाल और सबसे लंबे लोग पुरुषों में से होते हैं। दर्ज किए गए सबसे लंबे मनुष्यों में ऐल्टन, इलिनॉय के रॉबर्ट वादलो थे, जून 1940 में जिनकी ऊँचाई 2.72 (8 फीट 11.1 इंच) नापी गई थी। वर्ष 2000 में ट्यूनीसिया के राधुआने चार्बिब दुनिया के सबसे लंबे व्यक्ति थे, जिनकी लंबाई 2.35 मीटर (7 फीट 8.9 इंच) थी। इतिहास की किताबें बिग जॉन्स और लिट्ल सूज़ीस से भरी पड़ी हैं! यह लैंगिकवाद नहीं है। यह सच्चाई है।

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Q. Who is the author of the book पुरुष क्यों नहीं सुनते और महिलाएँ क्यों नहीं समझती / Purush Kyun Nahi Sunte aur Mahilayen Kyun Nahi Samajhti PDF Download?
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