1980 के दशक के अन्तिम वर्षों का समय था। जॉस्टिन गार्डर ओस्लोए नॉर्वे के एक जूनियर कॉलेज में दर्शनशास्त्र के अध्यापक थे। वह अपने दर्शन शिक्षण कार्य के प्रति सम्पूर्णतया समर्पित थे। किशोर छात्रों में दर्शन के अमूर्त प्रश्नों के प्रति बढ़ रही अरुचि और उदासीनता उनके लिए स्वाभाविक चिन्ता का विषय थी। एक दिन उन्होंने अपनी हताशा तथा उद्विग्नता के क्षणों में अपने छात्रों से प्रश्न किया कि वे क्या पढ़ना पसन्द करते हैं? छात्रों ने समवेत स्वर में उत्तर दिया कि उनका मन रहस्यमय उपन्यास (Mystery Novels) पढ़ने में लगता है। यह सुनकर निराश होने की अपेक्षा गार्डर ने तत्काल निश्चय किया कि एक रहस्यमय उपन्यास लिखकर वह अपने किशोर छात्रों में मानवीय जीवन से सम्बन्धित अपरिहार्य एवं गूढ़ प्रश्नों में रुचि जगाने का प्रयास करेंगे। उनकी मान्यता थी कि इन जटिल एवं अमूर्त दार्शनिक प्रश्नों की महत्ता को नकारने से तथा इनसे भागकर हम समृद्ध मानवीय विरासत में अपनी भागीदारी के दावे का अधिकार खो देते हैं।
इस तरहए गार्डर ने रहस्यात्मक उपन्यास ‘सोफी का संसार’ लिखकर पाश्चात्य दर्शन के विकास का सजीव चित्रण निहायत मौलिक रूप में प्रस्तुत किया है। इस उपन्यास की रचना में उन्होंने जादुई कथा–संरचनाए सांस्कृतिक इतिहास–लेखन तथा दार्शनिक चिन्तन की विधाओं का एक अद्भुत सर्जनात्मक संयोजन किया है। ‘सोफी का संसार’ के लेखन में गार्डर ने पाश्चात्य दर्शन के विकास के इतिहास के महत्त्वपूर्ण प्रसंगों की चर्चा के माध्यम से विश्वए जीवन और मानवीय अस्तित्व से जुड़े रहस्यों पर अपनी गहन विवेचना को पाठकों के सम्मुख विचार हेतु प्रस्तुत किया है।
उपन्यास का प्रारम्भ विद्यालय से घर लौटने पर 14 वर्षीय सोफी को लेटर–बॉक्स यपत्र–डिब्बेद्ध में एक विचित्र रहस्यपूर्ण लिफाफा मिलने के साथ होता है जिसमें कागज के एक छोटे से पुर्जे यपरचीद्ध पर उसके लिए एक निराला प्रश्न है : ‘तुम कौन हो?’ ‘सोफी’ अथवा ‘सोफिया’ यूनानी भाषा का वह शब्द है जिसका प्रयोग पाश्चात्य दर्शन की प्रत्येक परिचयात्मक टैक्स्ट बुक यपाठ्यपुस्तकद्ध में दर्शन की प्राथमिक परिभाषा या परिचय देने के लिए किया जाता है। ‘फिलो–सोफी’ दो यूनानी शब्दों के योग से बना शब्द है। ‘सोफी’ का अर्थ है : ‘प्रज्ञा’ए ‘बुद्धिमत्ता’ यॅपेकवउद्ध और ‘फिलो’ का अर्थ है : ‘प्रेमी’ यस्वअमतद्ध। सारांश यह कि ‘फिलो–सोफी’ का अभिप्राय प्रज्ञा अथवा बुद्धिमत्ता से प्रेम है। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि सोफी का संसार बुद्धिमत्ता और प्रज्ञा का संसार है और जिसे भी इस संसार से प्रेम है वह दार्शनिक यफिलॉस्फरद्ध है। ‘मैं कौन हूँ?’ प्रश्न का उत्तर आत्म–ज्ञान प्राप्त किए बिना सम्भव नहीं है। सोफी के लिए इस प्रश्न का उत्तर ढूँढ़ना सरल तो नहीं लेकिन महत्त्वपूर्ण हो जाता है। उसे यह विलक्षण प्रतीत होता है कि वह यह भी नहीं जानती कि वह कौन है। इसी उधेड़बुन में वह फिर से बाहर लेटर–बॉक्स को देखने जाती है और इस बार उसे अपने लिए एक और लिफाफा मिलता है जिसके भीतर एक छोटे पुर्जे पर एक नया प्रश्न है : “यह संसार कहाँ से आया?” जीवन में पहली बार सोफी को महसूस होने लगता है कि इन प्रश्नों का उत्तर खोजे बिना उसके लिए ज़िन्दा रहना उचित नहीं है। यह दो अजीब पत्र ….
Sophie Ka Sansar Hindi PDF