विद्यार्थी जीवन, पढ़ाई, और मौज / Vidyarthi Jeevan, Padhai aur Mauj Hindi Book PDF Download Free in this Post from Google Drive Link and Telegram Link , No tags for this post. All PDF Books Download Free and Read Online, विद्यार्थी जीवन, पढ़ाई, और मौज / Vidyarthi Jeevan, Padhai aur Mauj Hindi Book PDF Download PDF , विद्यार्थी जीवन, पढ़ाई, और मौज / Vidyarthi Jeevan, Padhai aur Mauj Hindi Book PDF Download Summary & Review. You can also Download such more Books Free - Hindi Motivational PDF Books Download FreeHindi PDF Books DownloadSelf Help PDF Books Download in Hindi
Name | विद्यार्थी जीवन, पढ़ाई, और मौज / Vidyarthi Jeevan, Padhai aur Mauj Hindi Book PDF Download |
Author | No tags for this post. |
Category | Self Help Books, Inspiration, Motivational |
Language | Hindi |
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युवावस्था बहुत ही नाज़ुक समय होता है। यही समय निर्धारित कर देता है कि जीवन किस दिशा जाएगा। कैरियर की चुनौती, प्रेम और अन्य सम्बन्ध विषयक सवाल एक युवा मन को हमेशा झंझोड़ते रहते हैं। निर्णय करना बड़ा मुश्किल होता है। ज़्यादा सम्भावना यही रहती है कि निर्णय परिवार, समाज, शिक्षा और मीडिया से प्रभावित होकर लिये जाएँ, न कि अपनी समझ और बुद्धि से। ऐसे निर्णय तात्कालिक रूप से सुविधाजनक लग सकते हैं पर इससे जीवन बन्धनों में बँधता रहता है। आजकल का युवा, खासतौर से भारत का, विभिन्न पारिवारिक, सामाजिक, शैक्षणिक व मीडिया, व्यावसायिक, शारीरिक दुविधाएँ, प्रेम व रिश्ते तथा गहरे अस्तित्ववान जीवन सम्बन्धी प्रश्नों से जुड़ी बहुधा चुनौतियों का सामना करता है। युवा वर्ग एक ऐसी नाज़ुक स्थिति में है जहाँ से ज़िंदगी में गलत मोड़ लेना काफी आसान है। आचार्य प्रशांत अपने एक अनोखे ही तरीके से युवा पीढ़ी की ऊर्जा और संघर्षों को संबोधित करते हैं। इस पुस्तक का यही उद्देश्य है कि आपको भी स्पष्टता मिले और अपने जीवन के निर्णय आप स्वयं अपनी सूझबूझ से कर सकें।
Index
1. डर बहुत लगता है?
2. अटेंशन, फ़ोकस और कन्सन्ट्रेशन
3. पढ़ने बैठता हूँ तो मन नहीं लगता
4. न पढ़ाई में मन लगता, न ढंग का काम मिलता
5. मोटिवेशन का बाज़ार गर्म है!
6. कभी इधर कभी उधर — मेरी ज़िन्दगी जा किधर रही है?
आचार्य प्रशांतः विचलन कुछ नहीं होता है। तुम्हारा जैसा मन है ना, वो उधर को ही भाग लेता है।
(श्रोताओं से प्रश्न पूछते हुए) यहाँ ऐसे कितने लोग हैं जो विचलित हो जाते हैं, करना कुछ और चाहते हैं, और करने कुछ और लगते हैं?
(ज्यादातर श्रोतागण हाथ उठाते हैं)
तुम जो कह रहे हो कि “हम विचलित हो जाते हैं, करना कुछ है, चल कहीं और देते हैं,” तुम कहीं विचलित नहीं होते हो, तुम उधर को ही जाते हो जिधर जाने का तुमने अपने मन को प्रशिक्षण दे दिया है।
तुम्हारा कुत्ता है, वो तुम्हारे साथ-साथ चल रहा है। और साथ-साथ चलते-चलते उसको थोड़ी दूर पर कुछ माँस पड़ा हुआ मिल गया। अब तुम कितनी कोशिश करो कि वो तुम्हारे साथ चले, तुम उसकी ज़ंजीर खींच रहे हो, वो उधर को ही भाग रहा है। क्या तुम ये कहोगे कि वो विचलित हो रहा है? वो विचलित थोड़ी ही हो रहा है, उसकी पूरी शिक्षा ही यही है कि माँस खाओ। उसका पूरा मन ही ऐसा है। दिन-रात, जन्म से ही, आनुवंशिक रूप में उसने यही कन्डिशनिंग पाई है कि माँस की ओर आकर्षित हो जाओ।
तुम भी वही करते हो।
तुम्हारा मन उधर को ही जाता है जिधर जाने की तुम दिन-रात अपने मन को शिक्षा दे रहे हो।
उदाहरण लेता हूँ: तुमने कहा कि लक्ष्य बनते हैं, पर लक्ष्य के लिए जब कोशिश करते हैं तो मन विचलित हो जाता है।
तुम कोई भी लक्ष्य क्यों बनाते हो? मान लो तुमने लक्ष्य बनाया कि इस सेमेस्टर में इतने नम्बर लाने हैं। बनाते हो ना
इस तरह के लक्ष्य? सेमेस्टर में तुम नम्बर क्यों लाना चाहते हो?
(श्रोतागण को देखते हुए) क्यों?
और वो भी एक भन्ने पनिशान के साथ है ) नी रेक नातें क्यों गा
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