सेवा सदन / Seva Sadan Book PDF Download

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Description of सेवा सदन / Seva Sadan Book PDF Download

Name  सेवा सदन / Seva Sadan Book PDF Download
Author  Invalid post terms ID.
Size   2.5 MB
Pages  276
Category  Novels
Language  Hindi
Download Link  Working


अनमेल विवाह के बाद, कुछ दिन तक तो सुमन का पारिवारिक जीवन चैन से बीता, किंतु फिर पतिपत्नी में अकसर खटपट रहने लगी, क्योंकि पति गजाधर अपनी गरीबी के कारण युवा और सुंदर सुमन की अतृप्त इच्छाओं को तृप्त कर पाने में असमर्थ था और सुमन को सामने रहने वाली वेश्या भोली के ठाटबाट और मानसम्मान लुभाने लगे थे। एक रात स्थिति यहां तक आ पहुंची कि सहेली सुभद्रा के यहां से भोली का मुजरा देख कर सुमन जब घर लौटी तो शक के शिकार गजाधर ने उसे घर में ही नहीं घुसने दिया।
लाचार सुमन कहां गई? क्या वह भी भोली की तरह मुजरेवाली बन गई? अथवा उस ने अपनी जैसी नारियों के उद्धार के लिए कुछ किया?
ऐसे ही तमाम सवालों का रोचक कथात्मक जवाब है प्रेमचंद का सुधारवादी उपन्यास ‘सेवा सदन’, जिस में प्रेमचंद ने भारतीय नारी की पराधीनता, निस्सहाय अवस्था और दयनीय जीवन पर प्रकाश डाला है। साथ ही धर्म के धंधेबाजों, धनपतियों, सुधारकों के आडंबर, दंभ, चरित्रहीनता, दहेज प्रथा, वेश्या गमन और हिंदू समाज के खोखलेपन आदि को भी रेखांकित किया है। विभिन्न सामाजिक समस्याओं को भावनात्मक धरातल पर प्रस्तुत करने वाला यह एक पठनीय एवं संग्रहणीय उपन्यास है।

 

Summary of book सेवा सदन / Seva Sadan Book PDF Download


पश्चात्ताप के कड़वे फल कभी न कभी सभी को चखने पड़ते हैं, लेकिन और लोग बुराइयों पर पछताते हैं, दारोगा कृष्णचंद्र अपनी भलाइयों पर पछता रहे थे. उन्हें थानेदारी करते हुए पचीस वर्ष हो गए; लेकिन उन्होंने अपनी नीयत को कभी बिगड़ने न दिया था. यौवन काल में भी, जब चित्त भोगविलास के लिए व्याकुल रहता है उन्होंने निःस्पृह भाव से अपना कर्तव्य पालन किया था. लेकिन इतने दिनों के बाद आज वह अपनी सरलता और विवेक पर हाथ मल रहे थे.
उन की पत्नी गंगाजली सतीसाध्वी स्त्री थी. उस ने सदैव अपने पति को कुमार्ग से बचाया था. पर इस समय वह चिंता में डूबी हुई थी. उसे स्वयं संदेह हो रहा था कि वह जीवन भर की सच्चरित्रता बिलकुल व्यर्थ तो नहीं हो गई.
दारोगा कृष्णचंद्र रसिक, उदार और सज्जन मनुष्य थे. मातहतों के साथ वह भाईचारे का सा व्यवहार करते थे किंतु मातहतों की दृष्टि में उन के इस व्यवहार का कुछ मूल्य न था. वह कहा करते थे कि यहां हमारा पेट नहीं भरता, हम इन की भलमनसी को ले कर क्या करें-चाटें? हमें घुड़की, डांटडपट, सख्ती सब स्वीकार है, केवल हमारा पेट भरना चाहिए. रूखी रोटियां चांदी की थाली में परोसी जाएं तो भी वे पूरियां न हो जाएंगी.
दारोगाजी के अफसर भी उन से प्रायः प्रसन्न न रहते. वह दूसरे थाने में जाते तो उन का बड़ा आदरसत्कार होता था, उन के अहलमद, मुहर्रिर और अरदली खूब दावतें उड़ाते. अहलमद को नजराना मिलता, अरदली इनाम पाता और अफसरों को नित्य डालियां मिलतीं पर कृष्णचंद्र के

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