ब्रह्माजी ने भृगु ऋषि की रचना की, इसलिए ब्रह्माजी भृगु ऋषि को अपना पुत्र मानते थे।
भृगु ऋषि की एक सुंदर और पवित्र पत्नी थी, जिसका नाम पुलोमा था।
जब पुलोमा एक बालिका थी, तब पुलोमा के पिता ने पुलोमन नामक एक दानव से वादा किया था कि जब पुलोमा बड़ी हो जाएगी, तब उसकी शादी वह पुलोमन से कर देंगे । लेकिन पुलोमा के बड़े होने पर, उसके पिता ने उचित वैदिक संस्कारों के साथ उसका विवाह भृगु ऋषि से कर दिया। पुलोमन तब तक पुलोमा के प्यार में पड़ गया था और मन ही मन उसे अपनी पत्नी मानने लगा था।
बाद में, जब भृगु ऋषि के साथ पुलोमा का विवाह हो गया, तो उसका दिल क्रोध से जलने लगा। उसने ख़ुद से ठान लिया कि वह इस विश्वासघात का बदला ज़रूर लेगा। बदला लेने के लिए पुलोमन अवसरों की तलाश मे रहता और भृगु ऋषि की कुटिया को छुप-छुप के देखा करता।
एक दिन, जब भृगु ऋषि स्नान करने के लिए अपने कुटिया से बाहर चले गए, तब पुलोमन उनकी कुटिया को झाड़ियों से देख रहा था। अवसर देखकर, पुलोमन ने भृगु ऋषि की कुटिया में प्रवेश किया।
उस समय, पुलोमा भारी रूप से गर्भवती थी, लेकिन किसी मेहमान को कुटिया के द्वार पर देखकर, वह घरेलू जीवन के कर्तव्यों के अनुसार उसका स्वागत करने बाहर आ गई। द्वार पर किसी राक्षस को देखकर, वह चकित रह गई। पुलोमा ने पुलोमन को कभी नहीं देखा था, इसलिए वह उसे पहचान भी नहीं पाई।
इसके बावजूद, उसने कुटिया में पुलोमन का स्वागत किया और ‘अतिथि ही भगवान होता है’ इस शिक्षा के मुताबिक़, उसके भोजन के लिए कंदमूल और फल लाए।
जब पुलोमन ने उसे देखा, तब उसका मन वासना से भर गया और उसने भृगु ऋषि की अनुपस्थिति में पुलोमा का अपहरण करने का विचार किया।
ऐसा विचार करने के बाद, पुलोमन ने पुलोमा हाथ पकड़ लिया और उसे खींचकर ले जाने लगा। कमजोर पुलोमा ने उसका विरोध करने की पूरी कोशिश की, लेकिन वह शक्तिशाली पुलोमन को रोकने में असमर्थ रह गई।
पुलोमा को कुटिया से बाहर खींचते समय, पुलोमन को पास वाले कमरे में एक यज्ञ दिखाई दिया। उस यज्ञ में अग्नि भुभुक-भुभुक करके जल रहा था। अग्नि को देखकर पुलोमन वही रुक गया। एक हाथ से उसने पुलोमा को पकड़ रखा था। फिर, उसने अग्नि के देवता से पूछा, ‘हे अग्नि, कृपया करके मुझे बताओ कि यह किसकी पत्नी है? मेरी या भृगु की? उसके पिता ने मुझसे वादा किया था कि इसकी शादी मुझसे होगी, लेकिन बाद में, उन्होंने मेरे साथ धोखा कर दिया और इसकी शादी भृगु से कर दी।’
राक्षस की बातें सुनकर भी अग्नि ने कोई उत्तर नहीं दिया। वह शांत ही बैठा रहा।
कुछ क्षण के बाद, पुलोमन ने फिर से अपना सवाल दोहराया, लेकिन अग्नि इस समय भी चुप ही बैठा रहा।
पुलोमन अग्नि से जवाब प्राप्त करना चाहता था, क्योंकि उसे लग रहा था कि अग्नि उसके पक्ष में बोलेगा। अग्नि कभी झूठ नहीं बोलता था। इस प्रकार, पुलोमन को विश्वास था कि पुलोमा पर उसके अधिकार को अग्नि से पुष्टि मिल जाएगी। अग्नि से पुष्टि मिलने के बाद, वह पुलोमा का अपहरण कर लेगा।
अग्नि को शांत देखकर, दानव थोड़ा ग़ुस्सा हो गया, लेकिन वह अपना सवाल दोहराता रहा। बार बार सवाल सुनकर, अग्नि अत्यंत व्यथित हो गया। अंत में, अग्नि ने भारी शब्दों में जवाब दिया, ‘पुलोमन, यह सच है कि पुलोमा के पिता ने उसकी शादी तुमसे कराने का वादा किया था, लेकिन बाद में, उन्होंने उचित वैदिक रीति-रिवाजों के साथ उसकी शादी भृगु ऋषि के साथ कर दी थी। इसलिए, वह तुम्हारी नहीं, भृगु ऋषि की पत्नी है। मैं तुम्हें सच बता रहा हूँ, क्योंकि दुनिया में झूठ का कभी सम्मान नहीं किया जाता।’
अग्नि से पुष्टि प्राप्त करने के बाद, राक्षस पुलोमा का अपहरण करने पर अधिक दृढ़ हो गया। तुरंत, उसने खुद को एक सूअर के रूप में बदल दिया और पुलोमा को उठाकर, उसने अत्यधिक गति के साथ भागना शुरू कर दिया।
लेकिन तभी, पुलोमा के पेट में पल रहा अजन्मा बच्चा इस हिंसा के कारण ग़ुस्सा हो गया और उसने अपनी माँ का गर्भ छोड़ने का फैसला कर लिया। उसने अपनी माँ के पेट से जमीन की ओर छलाँग लगायी। छलाँग लगाने के बाद, जब वह आकाश में था, तब उसके तपस्वी गुणों के कारण पूरा आकाश प्रकाशित हो गया।
जब दानव ने आकाश में चमक देखी, तब उसने भागना बंद कर दिया और पुलोमा को अपने जकड़न से कुछ पल के लिए छोड़ दिया। जैसे ही पुलोमा रिहा हो गई, उसके बच्चे ने अपने गुस्से से आग की लपटें पैदा की। फिर उस धधकती हुई आग ने एक ही क्षण में दानव को जलाकर राख कर दिया।
बच्चा जन्म के समय से पहले ही अपने माँ के पेट से गिरा था, इसलिए उसे ‘च्यवन’ नाम दिया गया। ‘च्यवन’ ये शब्द ‘च्युता’ नाम के एक संस्कृत शब्द से लिया गया है, जिसका अर्थ है – समय से पहले पैदा होने वाला बच्चा। आगे चलकर, च्यवन एक महान ऋषि बन गए। बाद में, च्यवन ऋषि ने ‘च्यवनप्राश’ नामक प्रसिद्ध पोषक मिश्रण का आविष्कार किया।
इस घटना के कारण, पुलोमा बेहद दु:खी हो गई थी। उसने च्यवन को उठाया और आँसुओं से भरी आँखों के साथ वह अपने आश्रम की ओर चलने लगी। उसकी आँखों से आँसू टप-टप करके जमीन पर गिर रहे थे।
ब्रह्माजी अपने लोक से अपने पुत्रवधू की स्थिति देख रहे थे। उसे सांत्वना देने के लिए वह उसके सामने प्रकट हुए। ब्रह्माजी ने देखा कि पुलोमा के आँसू एक बड़ी नदी के रूप में बदल रहे थे और वह नदी पुलोमा के मार्ग का अनुसरण कर रही थी। ये देखकर ब्रह्माजी ने उस नदी का नाम ‘वधुसरा’ रख दिया। फिर ब्रह्माजी ने पुलोमा से बात करके, उसका दुख दूर किया और वह अपने लोक लौट गए।
जब पुलोमा आश्रम पहुँची, तब उसने देखा कि भृगु ऋषि अत्यंत क्रोधित अवस्था में है।
भृगु ऋषि ने पुलोमा से गुस्से से पूछा, ‘तुम्हारे अतीत के बारे में दानव को किसने बताया जिससे उसने तुम्हारा अपहरण कर लिया?’
पुलोमा ने अपने पति को खुलासा किया कि उसके भूतकाल के बारे में अग्नि ने राक्षस को बताया था।
पुलोमा की बातें सुनकर भृगु ऋषि अग्नि पर अत्यंत क्रोधित हो गए और गुस्से में उन्होंने अग्नि को शाप दिया, ‘हे अग्नि, तुमने मेरी पत्नी का अपहरण करने में उस राक्षस की मदद की है, इसलिए में तुम्हें शाप देता हूँ। इस क्षण से, तुम शुद्ध और अशुद्ध ऐसे सारे पदार्थ ग्रहण करोगे।’
अग्नि यह शाप सुनकर चकित हो गया। उसे लग रहा था कि उसने कोई ग़लत काम नहीं किया हुआ। अग्नि ने शाप के विरोध में भृगु ऋषि से कहा, ‘हे ऋषिवर, मुझे शाप देना योग्य नहीं है, क्योंकि मैंने सच बोला है। जो झूठ बोलता है, वह अपनी सात पीढ़ियों को नरक में ले जाता हे। जो सब कुछ जानकार भी सच्चाई नहीं बोलता, वह पाप का भागीदार बन जाता है। मैं देवताओं और पूर्वजों का मुख हूँ और वह मेरे द्वारा ही अन्न ग्रहण करते हैं। इसलिए, में कभी झूठ नहीं बोलता। आप थोड़ा सोचिए कि में हमेशा उन जगहों पर मौजूद रहता हूँ, जो पवित्र होती हैं। तो मैं उन चीजों को कैसे खा सकता हूँ, जो अशुद्ध और गंदी हो?’
लेकिन भृगु ऋषि अग्नि को शाप देने पर अड़े रहे।
भृगु ऋषि के ऐसे बर्ताव से अग्नि दुखी हो गया। अग्नि ने फिर दुनिया के सभी यज्ञोंसे खुद को हटा दिया और भृगु ऋषि के शाप पर अपनी नाराज़गी जतायी। अग्नि के बिना, यज्ञों का होना नामुमकिन हो गया। जिसके कारण देवता असंतुष्ट रहने लगे और पूर्वज भूखे रहने लगे। इस चीज़ ने ऋषियों को चिंतित कर दिया। उन्होंने देवताओं से संपर्क किया और उन्हें अग्नि के ना होने के कारण यज्ञ करने की असमर्थता के बारे में बताया।
देवताओं ने ऋषियों के साथ मिलकर इस समस्या पर समाधान सोचने की कोशिश की, लेकिन उन्हें कुछ उपाय नहीं सूझा। फिर देवता और ऋषि-मुनि सब मिलके ब्रह्माजी के पास गए। ब्रह्माजी को उन्होंने अग्नि के यज्ञों से हटने के बारे में बताया। ब्रह्माजी ने उन सब लोगों को शांत किया और सबको बताया की वह इस बारे में अग्नि से बात करेंगे।
सब लोग जाने के बाद, ब्रह्माजी ने अग्नि को बुलाया और उससे कहा, ‘हे अग्नि, तुम सब कुछ बनाने वाले और नष्ट करने वाले हो। भृगु ऋषि के शाप को सत्य होने दो। मैं घोषणा करता हूँ कि तुम्हारे हर एक रूप को अशुद्ध चीजें खाने की जरूरत नहीं होगी। केवल तुम्हारा कोई-कोई रूप ही अशुद्ध और गंदी चीजें खाएगा। उदाहरण के लिए, तुम्हारा जो रूप मांसाहारी जानवरों के पेट में रहता है, वह अशुद्ध चीजें खाएगा। लेकिन तुम उसकी चिंता मत करो। में वरदान देता हूँ कि तुम्हारे द्वारा छुआ गया सब कुछ अंततः शुद्ध हो जाएगा। कृपया यज्ञ की आग पर वापस चलो जाओ। देवताओं और पूर्वजों के लिए भोजन ग्रहण करो।’
अग्नि ने भगवान ब्रह्मा की आज्ञा का पालन किया और वह दुनिया के सभी यज्ञों में फिर से लौट गया।
अग्नि यज्ञ में लौटते ही, दुनिया के सारे ऋषि-मुनियों में ख़ुशी की लहर फैल गई और उन्होंने फिर से अपने अनुष्ठानों की शुरुआत की।