अष्टावक्र गीता भाष्य प्रकरण – 3-6 / Ashtawakra Geeta Bhasya Part -3 -6 Book PDF Download Free in this Post from Google Drive Link and Telegram Link , No tags for this post. All PDF Books Download Free and Read Online, अष्टावक्र गीता भाष्य प्रकरण – 3-6 / Ashtawakra Geeta Bhasya Part -3 -6 Book PDF Download PDF , अष्टावक्र गीता भाष्य प्रकरण – 3-6 / Ashtawakra Geeta Bhasya Part -3 -6 Book PDF Download Summary & Review. You can also Download such more Books Free - Ashtawakra Geeta Bhasya Part -3 -6 Book PDF DownloadHindi Kahaniya Books PDF DownloadHindi Motivational PDF Books Download FreeHindi PDF Books Download
Description of अष्टावक्र गीता भाष्य प्रकरण – 3-6 / Ashtawakra Geeta Bhasya Part -3 -6 Book PDF Download
Name | अष्टावक्र गीता भाष्य प्रकरण – 3-6 / Ashtawakra Geeta Bhasya Part -3 -6 Book PDF Download |
Author | Invalid post terms ID. |
Size | 2.1 MB |
Pages | 159 |
Category | Motivational, Self Help Books |
Language | Hindi |
Download Link | Working |
भोग से हम जो अव्यवहारिक और असम्भव आशा करते हैं, वही भोग को उच्छृंखल बना देती है। किसी भी विषय के साथ जब आत्मिक संतोष की आशा जुड़ जाती है, तो जीव उस विषय का अमर्यादित सेवन करने लगता है। कि जैसे आपके सामने पानी रखा हो, आप पानी उतना ही पिएँगे जितने की शरीर को आवश्यकता है — इससे अधिक कोई नहीं पीता, थोड़ा कम, थोड़ा ज़्यादा। लेकिन सब जीव उतना ही पानी लेते हैं जितना उनके शरीर को चाहिए।
Summary of book अष्टावक्र गीता भाष्य प्रकरण – 3-6 / Ashtawakra Geeta Bhasya Part -3 -6 Book PDF Download
जिससे बन्धन मिले हों, वो मुक्ति नहीं देगा
अविनाशिनमात्मानमेकं विज्ञाय तत्त्वतः। तवात्मज्ञस्य धीरस्य कथमर्थार्जने रतिः ।। ३.१।।
अविनाशी और अद्वैत आत्मा का यथार्थ तुमने अब जाना, तुम तत्व ज्ञानी हो गये। अभी भी कौनसे अर्थ कमाने में तुम्हारी रूचि है?
आचार्य प्रशांत: “अविनाशिनमात्मानमेकं विज्ञाय तत्त्वतः।” अविनाशी और अद्वैत आत्मा का यथार्थ तुमने अब जाना, तत्व ज्ञानी हो गये तुम। तो फिर “तवात्मज्ञस्य धीरस्य कथमर्थार्जने रतिः।” “कथं अर्थ अर्जने रतिः” अर्थ के अर्जन में अब रति क्यों?
जान लिया सत्य को, सत्य जो मिटता नहीं, सत्य जो पाँच-दस नहीं, अनेक नहीं, पूर्ण है जो सत्य, उसको जान लिया। और अगर तत्वतः जाना है तो यह भी जान लिया कि तुम और वो अभेद हैं, एक हैं। तो अब जगत से कौनसे अर्थ का अर्जन करोगे? कथमर्थार्जने रतिः। कौनसे अर्थ को कमाने में अभी तुम्हारी रूचि है?……
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