भगत सिंह जेल डायरी | Bhagat Singh Jail Diary PDF

भारत के महान पुत्र, शहीद भगत सिंह को 23 मार्च, 1931 को अंग्रेजों ने मार डाला था। उन्होंने अपने जीवन को अंग्रेजों के क्रूर झुंड से मातृभूमि मुक्त करने के लिए समर्पित किया। उनकी जेल डायरी को उनके पिता सरदार किशन सिंह के निष्पादन के बाद अन्य सामानों के साथ सौंप दिया गया था। सरदार किशन सिंह की मौत के बाद, भगत सिंह के अन्य पत्रों के साथ नोटबुक, उनके एक अन्य बेटे श्री कुलबीर सिंह को पास कर दिया गया था। उनकी मृत्यु के बाद, यह उनके बेटे श्री बाबर सिंह को पास कर दिया गया है। यह श्री बाबर सिंह का सपना था कि भारतीय जनता को इस ऐतिहासिक डायरी के माध्यम से पता चल गया कि शहीद भगत सिंह के वास्तविक विचार क्या थे। इसके अलावा सामान्य लोग भी भगत सिंह के मूल लेखन देख सकते हैं क्योंकि वह हर जाति, धर्म, गरीब, समृद्ध, किसानों, मजदूरों और भारत से प्यार करने वाले हर किसी के नायक हैं। भगत सिंह की गहरी सोच और दृष्टि, मानव जाति के लिए प्यार उनके इन शब्दों से देखा जा सकता है, हमारे राजनीतिक दलों में ऐसे पुरुष होते हैं जिनके पास एक विचार है, यानी विदेशी शासकों के खिलाफ लड़ने के लिए। यह विचार काफी प्रशंसनीय है, लेकिन इसे क्रांतिकारी विचार नहीं कहा जा सकता है। हमें इसे क्रांति को स्पष्ट करना होगा इसका मतलब केवल उथल-पुथल नहीं है या एक सगाई संघर्ष। मौजूदा राज्य मामलों (यानी शासन) के पूर्ण विनाश के बाद, क्रांति जरूरी है कि नए और बेहतर अनुकूलित आधार पर समाज के व्यवस्थित पुनर्निर्माण के कार्यक्रम का तात्पर्य है। इस जेल डायरी का प्रकाशन भारत के स्वतंत्रता संग्राम के नायक को श्रद्धांजलि है क्योंकि इससे पाठकों के बीच राष्ट्रवाद, देशभक्ति और समर्पण की भावना बढ़ जाएगी।
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Author
Bhagat Singh
Size
9.15 MB
Pages
264
Language
Hindi

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Description

भगतसिंह के बारे में हम जब भी पढ़ते हैं, तो एक प्रश्न हमेशा मन में उठता है कि जो कुछ भी उन्होंने किया, उसकी प्रेरणा, हिम्मत और ताकत उन्हें कहाँ से मिली? उनकी उम्र 24 वर्ष भी नहीं हुई थी और उन्हें फाँसी पर चढ़ा दिया गया। इस पुस्तक से हमें इस प्रश्न का उत्तर पाने में काफी हद तक मदद मिल सकेगी।
लाहौर (पंजाब) सेंट्रल जेल में आखिरी बार कैदी रहने के दौरान (1929-1931) भगतसिंह ने आजादी, इनसाफ, खुद्दारी और इज्जत के संबंध में महान् दार्शनिकों, विचारकों, लेखकों तथा नेताओं के विचारों को खूब पढ़ा और आत्मसात् किया। इसी के आधार पर उन्होंने जेल में जो टिप्पणियाँ लिखीं, यह पुस्तक उन्हीं का संकलन है। भगतसिंह ने यह सब भारतीयों को यह बताने के लिए लिखा कि आजादी क्या है, मुक्ति क्या है और इन अनमोल चीजों को बेरहम तथा बेदर्द अंग्रेजों से कैसे छीना जा सकता है, जिन्होंने भारतवासियों को बदहाल और मजलूम बना दिया था।
‘जेल टिप्पणियाँ’ एक सुंदर (लाल) कपड़े के आवरण वाली नोटबुक में लिखी गई हैं। इसके 206 लीव्स (404 पृष्ठ) हैं, जिनका आकार 21 से.मी.×16 से.मी. है।
यह एक लंबे टैग से बँधे हुए हैं। प्रत्येक पृष्ठ पर पृष्ठ संख्या काले रंग से ऊपर के दाएँ कोने पर अंकित है। मौसम, धूल आदि के प्रभाव से बचाने के लिए पृष्ठों को लेमिनेट किया गया है। दुर्भाग्य से इसके कारण स्केनिंग की गुणवत्ता प्रभावित हुई है। नोटबुक के पृष्ठ-1 पर निम्न प्रविष्टि से पता चलता है कि यह जेल के अधिकारियों द्वारा भगतसिंह को 12 सितंबर, 1929 को दी गई थी।
यह नोटबुक भगतसिंह की अन्य वस्तुओं के साथ उनके पिता सरदार किशन सिंह को भगतसिंह की फाँसी के बाद सौंपी गई थी। सरदार किशन सिंह की मृत्यु के बाद यह नोटबुक (भगतसिंह के अन्य दस्तावेजों के साथ) उनके (सरदार किशन सिंह) पुत्र श्री कुलबीर सिंह और उनकी मृत्यु के पश्चात् उनके पुत्र श्री बाबर सिंह के पास आ गई। श्री बाबर सिंह का सपना था कि भारत के लोग भी इस जेल डायरी के बारे में जानें। उन्हें पता चले कि भगतसिंह के वास्तविक विचार क्या थे। भारत के आम लोग भगतसिंह की मूल लिखावट को देख सकें। आखिर वे प्रत्येक जाति, धर्म के लोगों, गरीबों, अमीरों, किसानों, मजदूरों, सभी के हीरो हैं।
भगतसिंह के चिंतन की गहराई और दृष्टि तथा मानवता के प्रति उनके प्रेम को उनके इन शब्दों से समझा जा सकता है कि “हमारे सियासी दलों में ऐसे लोग हैं, जिनके पास सिर्फ एक विचार है कि विदेशी हुक्मरानों से लड़ना है। यह विचार बहुत काबिले तारीफ है, लेकिन इसे ‘क्रांतिकारी विचार’ नहीं कहा जा सकता। हमें यह स्पष्ट करना होगा कि क्रांति का मतलब सिर्फ उथल-पुथल या खूनी संघर्ष नहीं है। क्रांति का सही मतलब ऐसा कार्यक्रम है, जिससे नई और बेहतर बुनियाद पर समाज का व्यवस्थित पुनर्निर्माण किया जा सके। यह कार्य मौजूदा हालात (यानी शासन) को पूरी तरह खत्म करके किया जाना चाहिए।”
जेल डायरी के पृष्ठ-43 पर मनुष्य और मानव जाति के विषय में उन्होंने लिखा है कि “मैं एक इनसान हूँ और मानव जाति को प्रभावित करनेवाली हर चीज से मेरा सरोकार है।”
भगतसिंह जोशो-खरोश से लबरेज क्रांतिकारी थे और उनकी सोच तथा नजरिया एकदम साफ था। वे भविष्य की ओर देखते थे। वास्तव में भविष्य उनकी रग-रग में बसा था।
पूछा जा सकता है कि भगतसिंह ने किस तरह के भविष्य का सपना देखा था? वे इसे किस तरह हकीकत में बदलना चाहते थे? मौजूदा हालात में भगतसिंह की जेल नोटबुक की टिप्पणियाँ ही इन सवालों का जवाब दे सकती हैं।
यह पुस्तक अखिल भारतीय खत्री सभा के अध्यक्ष श्री जितेंदर मेहराजी (बाबाजी), मेरी माताजी श्रीमती सुरिंदर कौर, मेरी बहन श्रीमती मंजुला तूर तथा मेरे जीजाजी श्री भूपेंदर सिंह तूर के आशीर्वाद के बिना पूरी नहीं हो सकती थी।
मैं इस पुस्तक को साकार रूप देने की प्रेरणा और सहयोग के लिए एडवोकेट तरिषि महाजन का अत्यंत आभारी हूँ।
निरंतर सहयोग के लिए मैं सर्वश्री एस.के. शर्मा, उमेद सिंह, शरीफ चौधरी, विपिन झा, दीपक शर्मा, (वरिष्ठ पत्रकार), ओमप्रकाश (वरिष्ठ संपाददाता) व अनीता भाटी (वरिष्ठ संवाददाता) का आभारी हूँ।
—यादविंदर सिंह संधु
जिंदगी का मकसद
“जिंदगी का मकसद अब मन पर काबू करना नहीं, बल्कि इसका समरसतापूर्ण विकास है। मौत के बाद मुक्ति पाना नहीं, बल्कि दुनिया में जो है, उसका सर्वश्रेष्ठ उपयोग करना है। सत्य, सुंदर और शिव की खोज ध्यान से नहीं, बल्कि रोजमर्रा की जिंदगी के वास्तविक अनुभवों से करना भी है। सामाजिक प्रगति सिर्फ कुछ लोगों की नेकी से नहीं, बल्कि अधिक लोगों के नेक बनने से होगी। आध्यात्मिक लोकतंत्र अथवा सार्वभौम भाईचारा तभी संभव है, जब सामाजिक, राजनीतिक और औद्योगिक जीवन में अवसरों की समानता हो।”

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