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दुर्योधन ने अगर श्रीकृष्ण को युद्ध के मैदान में सारथी के रूप में माँगा होता तो क्या आज जो गीता बनी है; वह वैसी ही रहती? नहीं; गीता बदल जाती। वह गीता श्रीकृष्ण और दुर्योधन के बीच हुए वार्त्तालाप पर आधारित होती।
यदि दुर्योधन की गीता बन जाती; उसके अठारह अध्याय बन जाते तो आज कितने लोगों को लाभ हो रहा होता; यह आप खुद सोच सकते हैं।
आज विश्व में कौन से लोग ज्यादा हैं—कौरव या पांडव? दुर्योधन या अर्जुन? किसकी गीता बनना ज्यादा महत्त्वपूर्ण है? अर्जुन यानी वह इनसान; जो सत्य सुनने के लिए तैयार है और दुर्योधन यानी वह; जो सत्य सुनना ही नहीं चाहता।
युद्ध के मैदान में यदि आप होते तो आपके सवाल क्या होते? आपकी गीता कैसी होती? आपकी गीता अर्जुन से अलग होती; आपके सवाल भी अलग होते; इसलिए कहा जाता है कि हर एक की गीता अलग है; आपकी गीता अलग है। अपनी गीता ढूँढ़ने का कर्म करें; अपने कृष्ण आप बनें; यही सच्चा कर्मयोग है।
हर एक की गीता अलग है
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भारत का प्रसिद्ध एवं पवित्र माना जानेवाला ग्रंथ है ‘श्रीमद भगवद् गीता’। युद्ध के मैदान के बीच हुए, भगवान्
श्रीकृष्ण और अर्जुन के बीच हुए वार्तालाप पर यह ग्रंथ आधारित है। यह ईश्वर द्वारा गाया गया भजन है, गीत है,
गीता है।
महाभारत के युद्ध में भगवान् श्रीकृष्ण अर्जुन के सारथी कैसे बने? श्रीकृष्ण से दुर्योधन और अर्जुन दोनों ने मदद
माँगी थी। श्रीकृष्ण ने कहा था, ‘प्रात: मेरी आँख खुलते ही तुम दोनों से मैं बात करूँगा।’
दुर्योधन सबसे पहले जाकर श्रीकृष्ण के मुख (सिरहाने) की ओर बैठ गया। अहंकार कभी चरणों में झुकना नहीं
चाहता। जब अर्जुन वहाँ पहुँचा तो वह जाकर श्रीकृष्ण के चरणों में बैठ गया। दुर्योधन हमेशा बुद्धि में जीता था,
इसलिए वह श्रीकृष्ण के सिर की ओर बैठा और अर्जुन चरणों में बैठा, यानी वह श्रीकृष्ण के आगे समर्पित था।
भगवान् श्रीकृष्ण ने जैसे ही आँखें खोलीं, उन्होंने सामने अर्जुन को बैठा पाया, इसलिए उसे पहले माँगने का
मौका मिल गया। श्रीकृष्ण ने उसे अपने और अपनी सेना में से एक को चुनने के लिए कहा। श्रीकृष्ण ने यह भी
कहा कि वे युद्ध नहीं करेंगे और न ही शस्त्र उठाएँगे, लेकिन अर्जुन ने फिर भी श्रीकृष्ण को ही चुना। यह सोचकर
दुर्योधन बहुत खुश हुआ कि ‘अर्जुन मूर्ख है, जो उसने श्रीकृष्ण की सेना नहीं माँगी। उनकी सेना कितनी बड़ी है।
अब मुझे श्रीकृष्ण की सेना मिलेगी।’ उसे वही चाहिए था।
जो लोग बुद्धि से निर्णय लेते हैं, उनके लिए दिखाई देनेवाली चीजें ज्यादा महत्त्वपूर्ण होती हैं। दुर्योधन को श्रीकृष्ण
की विशाल सेना दिखाई दे रही थी। उसे लगा कि सेना के बल से वह युद्ध आसानी से जीत जाएगा। अर्जुन ने हृदय
से निर्णय लिया। हृदय से निर्णय लेनेवाले के लिए दिखावटी सत्य महत्त्वपूर्ण नहीं होता।
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