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Description of हनुमान चालीसा का वास्तविक अर्थ / Hanuman Chalisha Ka Vastavik Arth Hindi Book PDF Download
Name | हनुमान चालीसा का वास्तविक अर्थ / Hanuman Chalisha Ka Vastavik Arth Hindi Book PDF Download |
Author | Invalid post terms ID. |
Size | 0.5 MB |
Pages | 41 |
Category | Philosophical, Religious & Sprituality |
Language | Hindi |
Download Link | Working |
आप हनुमान जी को बस ऐसे सोचो कि ‘भूत पिशाच निकट नहीं आवे, महावीर जब नाम सुनावे’ — माने रास्ते में जा रहे हैं और भूतों से डर लगता है तो बीच-बीच में पाठ करते रहते हैं — तो ये दुरूपयोग कर लिया हनुमान का। आप समझे ही नहीं कि हनुमान किसके प्रतीक हैं। धर्म में सिर्फ प्रतीक होते हैं, तथ्य तो वहाँ होते ही नहीं। और उन प्रतीकों को पढ़ना पड़ता है, देखना पड़ता है कि इनका इशारा किधर को है। पश्चिम में जो कहते हैं कि भारतीय वानरों को पूजते हैं, ‘द मंकी गॉड’, उनको नहीं समझ आ रहा कि क्या दिखाया जा रहा है, क्योंकि वानर हम सब हैं शरीर से। पर वानर होते हुए भी कैसे राम की ओर बढ़ा जा सकता है, इसके प्रतीक हैं हनुमान। अब ये जाने बिना हनुमान भक्ति कर रहे हो तो क्या कर रहे हो? बस वही कि परीक्षा में पास करवा देना, नौकरी दिला देना, या और कामनाएँ। और सिर्फ़ वेदांत के ही आधार पर किसी भी कथा या दर्शन की व्याख्या की जा सकती है। वेदांत कुंजी है, उसी से सारे ताले खुलेंगे। वो कुंजी नहीं ली तो कोई द्वार नहीं खुलेगा तुम्हारे लिए। वेदांत अपनेआप में कुछ है नहीं, एक कुंजी भर है। उस कुंजी के साथ जिस धारा में प्रवेश करना है, कर लो।
Summary of book हनुमान चालीसा का वास्तविक अर्थ / Hanuman Chalisha Ka Vastavik Arth Hindi Book PDF Download
देखिए, बच्चों को और अल्पज्ञों को धर्म की धारा में प्रवेश मात्र दिलाने के लिए कई बार थोड़ा सगुण रूप से चर्चा करनी पड़ती है। मैं जब छोटा था और हनुमान चालीसा से मेरा परिचय हुआ था, तब मुझे कोई अविगत, अगोचर, निर्गुण-निराकार, ऐसी बातें करता तो निसंदेह मेरी समझ में नहीं आती। तो इसलिए संतो ने यह विधि करी कि आरंभ तो करा दो, और आरंभ कराने के लिए सगुण मार्ग ठीक है। क्योंकि हम होते ही ऐसे हैं न। हमारी इंद्रियाँ क्या देखती हैं? गुण ही तो देखती हैं, इंद्रियाँ तो प्रकृति को देखती हैं और प्रकृति त्रिगुणात्मक है। तो इंद्रियाँ तो गुण ही देख सकती हैं।
तो किसी का अगर धर्म में प्रवेश कराना है तो उससे सगुण चर्चा करो। उसको ऐसे बताओ जैसे राम कोई देहधारी थे। ठीक है? उससे लाभ होता है, उससे मुझे भी लाभ हुआ। लेकिन जो समझ सकते हैं, उनके लिए संतों ने साफ़ बता दिया है कि हम वही बात कह रहे हैं जो ऋषियों ने कही थी। ऋषि निर्गुण ब्रह्म के खोजी और उपासक रहे हैं और संतों ने भी स्पष्ट कर दिया है कि हाँ –
राम ब्रह्म परमारथ रूपा। अविगत अलख अनादि अनूपा।। सकल विकार रहित गतभेदा। कहि नित नेति निरूपहिं वेदा।।
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