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Description of जात अजात की क्या जात / Jaat Ajaat Ki Kya Jaat Hindi Book PDF Download
Name | जात अजात की क्या जात / Jaat Ajaat Ki Kya Jaat Hindi Book PDF Download |
Author | Invalid post terms ID. |
Size | 1.1 MB |
Pages | 90 |
Category | Philosophical |
Language | Hindi |
Download Link | Working |
जातिप्रथा एक जन्मगत भेद है व्यक्ति और व्यक्ति के बीच; जिसमें माना जाता है कि जन्म से ही एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से अलग है, कि एक श्रेष्ठ है और दूसरा निम्न। हम इसे मात्र एक कुरीति की तरह देखते हैं और हमारी मान्यता यही रहती है कि शिक्षा का स्तर बढ़ा देने से और इसके विरुद्ध कानून पारित कर देने से यह समस्या सुलझ जाएगी। पर ऐसा है नहीं। पढ़े-लिखे लोग भी जातिवादी मानसिकता रखते हैं, और समानता के पक्ष में कानून होने के बावजूद जातिप्रथा कायम है। आचार्य प्रशांत प्रस्तुत पुस्तक में इस विषय को गहराई से विश्लेषित करते हैं और इसे एक सामाजिक समस्या से पहले एक भीतरी समस्या बताते हैं। वे कहते हैं कि जाति हमारी अज्ञानता की उपज है; दूसरे को दूसरा समझना ही मूल समस्या है। आचार्य प्रशांत इसके समाधान के लिए हमें उपनिषद् और वेदान्त की ओर ले चलते हैं। वे कहते हैं – वेदान्त उसकी बात करता है जो अजात है, और मात्र उसी तल पर एकत्व है। पर उस अजात को समझा नहीं जा सकता जब तक हम जात को न समझें। इस पुस्तक में उस जात को ही गहराई से समझाया गया है। और इस जात की समझ से ही जाति का उन्मूलन संभव है।
Summary of book जात अजात की क्या जात / Jaat Ajaat Ki Kya Jaat Hindi Book PDF Download
हिन्दू धर्म में जातिवाद का ज़िम्मेवार कौन?
का जातिः। जातिरिति च । न चर्मणो न रक्तस्य न मांसस्य न चास्तिनः। न जातिरात्मनो जातिवर्णाधरप्रकल्पिता ।।
अनुवादः शरीर (त्वचा, रक्त, हड्डी आदि) की कोई जाति नहीं होती। आत्मा की भी कोई जाति नहीं होती। जाति तो व्यवहार में प्रयुक्त कल्पना मात्र है।
~ निरालंब उपनिषद (श्लोक क्रमांक १०)
आचार्य प्रशांत: आज जो हम श्लोक लेने जा रहे हैं आरंभ में ही उसका बड़ा समसामयिक महत्व है। वास्तव में ये श्लोक जो बात कह रहा है उसको साफ़-साफ़ समझ लिया जाए तो पूरे विश्व की, विशेषकर भारत की सामाजिक, राजनैतिक स्तिथि बिलकुल पलट जाएर्गी, सुधर जाएगी। बहुत सारी मान्यताएँ, जो आम जनमानस में ही नहीं बल्कि बुद्धिजीवियों में भी प्रचलित हैं उनका पूरी तरह से खंडन हो जाएगा।………….
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