कुल्हड़ भर इश्क़: काशीश्क़ / Kulhad Bhar Ishq: Kashishq PDF Download Free in this Post from Google Drive Link and Telegram Link ,
Description of कुल्हड़ भर इश्क़: काशीश्क़ / Kulhad Bhar Ishq: Kashishq PDF Download
Name : | कुल्हड़ भर इश्क़: काशीश्क़ / Kulhad Bhar Ishq: Kashishq PDF Download |
Author : | Invalid post terms ID. |
Size : | 0.5 MB |
Pages : | 107 |
Category : | Novels |
Language : | Hindi |
Download Link: | Working |
दवा और प्रसाद उतना ही लेना चाहिए जितना देने वाले देते हैं, अधिक लेने के लिए जबर्दस्ती नहीं की जाती। इश्क की खुराक इतना आतुर करती है कि लोग खुद पर नियंत्रण नहीं रख पाते और अपनी तबीयत की औकात से ज्यादा ले लेते हैं फिर पढ़ाई पर गाज गिर जाती है। कुल्हड़ भर इश्क : काशीश्क, प्यार की शीशी पर मार्कर से गोला करके खुराक बताने वाला है जिससे ये पता चलता रहे कि कितना इश्क जीना है और कितनी पढ़ाई करनी है।
कुल्हड़-सा सौंधापन है काशी के इश्क में, कुल्हड़ भर कहने से आशय इश्क को संकुचित करने से नहीं बल्कि नियमित और संतुलित मात्रा में सेवन से है।
Summary of book कुल्हड़ भर इश्क़: काशीश्क़ / Kulhad Bhar Ishq: Kashishq PDF Download
बीएचयू का शिक्षा संकाय मेन कैंपस में नहीं है, उसे टीचिंग ट्रेनिंग की सुविधा से सेंट्रल हिंदू बॉयज स्कूल के पास कमच्छा में बनाया गया है। और अगर आप पूर्व में मेन कैंपस से कोई कोर्स करके आए हैं, तो सचमुच शुरुआत के एक-दो महीने यह काला पानी ही लगेगा। यहाँ पर काला पानी में निरंतर कालिख डालते रहने वाले जेलर भी तो हैं, पानी रंगीन ही नहीं होने देते हैं, पूरा अनुशासन सिखा देंगे। खैर, मास्टर बनने आए हैं, तो सदाचार ही न सिखाया जाएगा, लौंडियाबाजी थोड़े न सिखाई जाएगी।
सुबोध जी की शुरुआत बहुत ‘एडवेन चरस’ रही यहाँ । जब वो आइसक्रीम की दुकान के पास वाले रास्ते से फैकल्टी में घुसने की कोशिश में थे, तो काफी उछल-कूद करनी पड़ी, चूँकि वहाँ बरसात के मौसम में कभी-कभी पानी जमा हो जाता है। जोश तो इंट्रेंस निकलने का बहुत था ही, उसी जोश में इतनी जोर लगाकर छलांग लगा दी कि पीछे आने वाली लड़की का छींटों से भर गया।
एकदम बानर हो का बे? (लड़की ने कहा)
न..न..न..नहीं.. सारी, सारी (सुबोध जी सकपकाते हुए बोले) मतलब, देह कुंभकरण और काम सलमान खान… स्साला पूरा मेकअप खराब कर दिया। (लड़की ने कहा)
ये लीजिए पानी, साफ कर लीजिए। (सुबोध जी ने बोतल थमाते हुए कहा )
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