श्रीमद भागवत पुराण / Shrimad Bhagwat Puran Hindi Book PDF Download
Religious & Sprituality
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Name : | मैं समय हूँ | Main Samay Hoon Book PDF Download |
Author : | Invalid post terms ID. |
Size : | 5 MB |
Pages : | 220 |
Category : | Religious & Sprituality, Self Help Books |
Language : | Hindi |
Download Link: | Working |
मैं ‘समय’ हूँ। मेरे बाबत आप कुछ-कुछ जानते भी हैं, और आज के इस आपा-धापी व दौड़-भाग वाले जीवन में मेरी अहमियत बढ़ भी गई है। वैसे तो मनुष्य के अस्तित्व में आते ही दिन और रात के कारण मुझे पहचान मिली, परंतु घ़ड़ी के आविष्कार ने तो मुझे मनुष्यों के लिए अपने हिसाब से डिवाइड ही कर दिया। अब तो मुझे सेकंड, घंटा, दिन, माह, वर्ष, सदी वगैरह के आधार पर विभाजित कर मेरा अपनी दिनचर्या के लिए अच्छे से उपयोग भी किया जाने लगा है। और शायद इसी तर्ज पर आप मुझे पहचानते भी हैं। लेकिन एक राज की बात बता दूं कि यही एक मेरा इंट्रोडक्शन नहीं। मेरे तो करोड़ों-करोड़ों स्वरूप हैं। हकीकत तो यह है कि यह जगत अस्तित्व में ही एक मेरे कारण आया हुआ है, और इस कारण यहां के हर कण पर मेरी छाप है। यहां का कण-कण मुझसे प्रभावित भी है व चलायमान भी। और फिर बाकी सबकी बात क्या करूं, आपके जीवन को भी सर्वाधिक प्रभावित मैं ही करता हूँ। लेकिन यह आश्चर्य की बात है कि इतना महत्त्वपूर्ण होने के बाद भी ना तो मेरी इतनी चर्चा है, और ना ही मेरे बाबत कोई कुछ विशेष जानता ही है। मेरे घ़ड़ी-रूपी जिस स्वरूप के कारण मुझे जानने के भ्रम में आप जी रहे हैं, वह तो मेरे स्वरूपों व कार्यकलापों का अरबवां हिस्सा भी नहीं।
सो, आज न जाने क्यों मुझे अपने सारे स्वरूपों और उनके प्रभावों की विस्तार से चर्चा करने की इच्छा हो रही है। यहां तक कि मैं अस्तित्व में कैसे आया, यह तक आप को बताने को मेरा मन मचल रहा है। और शुरुआत भी मैं इसी से करता हूँ।
***
मेरा जन्म
निश्चित ही यह बात अरबों-खरबों वर्ष पुरानी है और प्रारंभिक तौर पर यह थोड़ा कॉम्प्लीकेटेड भी लग सकता है। लेकिन जैसे-जैसे मैं अपने बाबत बताता जाऊंगा, निश्चित ही बात आपके जहन में साफ होती चली जाएगी। क्योंकि आखिर आप भी इसी कॉम्प्लीकेशन का एक हिस्सा हैं।
खैर! अभी तो मैं यह बात वहां से प्रारंभ करता हूँ जब मैं अस्तित्व में आया ही नहीं था, तब मात्र एक ‘एहसास’ अस्तित्व में था; और वह अपने होने-मात्र से संतुष्ट था। तथा चूंकि वह अपने होने-मात्र से संतुष्ट था, अतः शक्ति से भरपूर भी था। यह बात हमेशा के लिए जहन में बिठा लेना कि जो भी अपने होने से संतुष्ट होगा, वह हमेशा शक्ति से भरपूर होगा। फिर यह बात सूर्य के संदर्भ में की जाए या बुद्ध व एडीसन जैसों के व्यक्तित्व के बाबत। खैर अभी तो वापस एहसास पर लौट आऊं। और वहां…अचानक इस एहसास की इच्छा-शक्ति के कारण उसकी कोख से मेरा जन्म हुआ और मैं अस्तित्व में आया। और चूंकि मेरा जन्म ही इच्छा-शक्ति के बल पर हुआ था, अतः इच्छा मेरा प्रथम स्वभाव बनकर उभरा। और फिर पल-पलकर जैसे-जैसे मैं एहसास की कोख से निकलता गया, मेरी इच्छानुसार समानांतर रूप से ‘‘स्पेस’’ भी डेवेलप होता चला गया।
और तब से एहसास की कोख से एक-एक क्षण कर मेरा विस्तार होना अब भी जारी है तथा उसी के समानांतर मेरे द्वारा स्पेस का विस्तार होना भी जारी है। और चूंकि हर नए दिन के साथ मेरा विस्तार हो रहा है, अतः रोज-रोज यह ब्रह्मांड भी फैलता ही जा रहा है। …अब तो विज्ञान की अनुभूति में भी यह सत्य आ ही चुका है कि ब्रह्मांड का रोज-रोज विस्तार हो रहा है। खैर, इस पूरे प्रकरण में सबसे महत्त्वपूर्ण समझने लायक बात यह कि मैं और स्पेस एक डोर से बंधे हुए हैं। और मजे की बात यह कि भले ही यहां का हर कण मेरे और स्पेस के मिलन से व्याप्त है, परंतु हमें व्यवहार की स्वतंत्रता कुछ भी नहीं है, क्योंकि हमारे अस्तित्व में आते ही एहसास हम दोनों को नियम की एक डोर से बांधता चला जा रहा है। यानी, अब हम दोनों में से एक भी ना तो उस नियम के बाहर कोई व्यवहार कर सकता है और ना ही हम अब एक-दूसरे से अलग हो सकते हैं। यानी समय है तो स्पेस है, और स्पेस है तो समय होना ही है; लेकिन बावजूद इसके हरहाल में बरतना तो हम दोनों को एहसास के बांधे नियम के दायरे में ही है। अर्थात् जहां एक ओर हमारा विस्तार होता जा रहा है, वहीं हाथोंहाथ हमारे हर विस्तार को एहसास अपने हिसाब से नियम-बद्ध भी करता चला जा रहा है।
अब उस एहसास को आप चाहे जितने बड़े या चाहे जिस नाम से बुलाओ, कोई फर्क नहीं पड़ता। उसे शक्ति या शून्य से लेकर भगवान तक का नाम आप अपनी रुचि व प्रज्ञानुसार दे सकते हैं, परंतु वास्तव में मेरा या स्पेस का अब उससे कुछ लेना-देना नहीं। यह बात अच्छे से समझ लें कि अब तो जो कुछ भी है, बस वे नियम ही हैं जिनकी डोर से वह हमें बांध चुका है। और चूंकि मेरी इच्छानुसार मेरे करोड़ों स्वरूप हैं, अतः उसी के अनुसार स्पेस के भी करोड़ों रूप हैं। और मजा यह कि दोनों के हर मिलन का हर कॉम्बीनेशन भी एहसास द्वारा ऐसे ही करोड़ों नियम से आबद्ध है।
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