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बार में तीन व्यक्ति थे, जो बार के निकट ही बड़ी मेज के इर्द-गिर्द बैठे व्हिस्की की चुस्कियां ले रहे थे।
बाहर सड़क पर झुलसाने वाली धूप पड़ रही थी-परंतु बार का बड़ा-सा हॉल अपेक्षाकृत ठंडा था। तीनों आराम से बैठे व्हिस्की की चुस्कियां भरते गपशप लगा रहे थे।
बार का मोटा मालिक, जो बार के पीछे अपनी मोटी उंगलियों में डस्टर लिए खड़ा उन तीनों की बातें सुन रहा था, वह खुशामदाना अंदाज में उन तीनों की ‘हां’ में ‘हां’ मिलाए जा रहा था।
वाल्काट ने बड़ी परेशानी भरे अंदाज अपनी जेब में पड़े आखिरी सिक्के को टटोला। उसकेbपास बस यही एक सिक्का बचा था और इसी बात से उसे चिंता हो रही थी क्योंकि इस बार व्हिस्की का भुगतान उसी ने करना था। फ्रीडमैन और विल्सन उसे एक बार व्हिस्की पिला चुकेbथे और अब व्हिस्की पिलाने का उसी का नंबर था। वह अपनी बारी निभाने का साहस नहीं जुटा पा रहा था। उसका कमजोर पिवका हुआ वेहरा और भी ज्यादा दयनीय हो उठा। अपने गंदे-से अंगूठे से उसने अपनी मूंछों को छुआ और बेचैनी भरे भाव से पहलू बदलने लगा।
‘आजकल तो कहीं जाने को जी नहीं करता।’ विल्सन बोला- ‘कोई-न-कोई बदमाश भिखारी कुछ-न-कुछ मांगता हुआ मिल जाता है। यह सारा शहर तो जैसे भिखारियों से भरा पड़ा
है।’
‘यहां गर्मी भी तो बहुत अधिक है। है न…? इतनी तेज गर्मी में तो व्हिस्की चखने तक का दिल नहीं करता।’ वाल्काट जल्दी से बोला।