राम रावण कथा 3 राम / Ram (Ram-Ravan Katha) Book 3 PDF Download Free in this Post from Google Drive Link and Telegram Link , All PDF Books Download Free and Read Online, राम रावण कथा 3 राम / Ram (Ram-Ravan Katha) Book 3 PDF Download PDF , राम रावण कथा 3 राम / Ram (Ram-Ravan Katha) Book 3 PDF Download Summary & Review. You can also Download such more Books Free - Hindi Novels PDF Download FreeHindi PDF Books DownloadDescription of राम रावण कथा 3 राम / Ram (Ram-Ravan Katha) Book 3 PDF Download
Name : | राम रावण कथा 3 राम / Ram (Ram-Ravan Katha) Book 3 PDF Download |
Author : | |
Size : | 4.2 MB |
Pages : | 362 |
Category : | Novels, Mythology |
Language : | Hindi |
Download Link: | Working |
रामकथा को अलौकिकता के दायरे से निकालकर, मानवीय क्षमताओं के स्तर पर परखने की शृंखला का नाम है ‘राम-रावण कथा’। इसकी विशेषता ही यह है कि इसमें राम नायक अवश्य हैं किंतु रावण भी खलनायक नहीं है। कथा का दूसरा खंड ‘दशानन’ रावण पर केंद्रित था, इसलिए क्योंकि कथा कालक्रमानुसार प्रगति कर रही है और रावण के चरमोत्कर्ष का काल राम के कर्मक्षेत्र में उतरने से पूर्व का है। इस तीसरे खंड ‘राम: सप्तम विष्णु का अभ्युदय’ में पूरी कथा में राम ही राम हैं। यह उनके विष्णु के अवतार के रूप में प्रतिष्ठित होने की कथा है। इस प्रतिष्ठा को सार्थक करने के उनके प्रयासों की कथा है। इस खंड की कथा राम के विश्वामित्र के साथ ताड़का-वध हेतु प्रस्थान से आरम्भ होकर उनके दण्डक-वन में प्रवेश तक की गाथा है। दूसरे शब्दों में वनगमन से पुनः वनगमन तक की कथा है। किस प्रकार राज्याभिषेक की देहरी तक पहुँचकर भी उन्होंने सहर्ष राज्य का मोह त्यागकर वनगमन स्वीकार किया, यही इस कथा का केन्द्रबिन्दु है। राम के वनवास की कथा हो और कैकेयी का उल्लेख न हो, ऐसा भला कैसे हो सकता है। किंतु इस कथा की कैकेयी से आप घृणा नहीं करेंगे, उससे भी आप प्यार करेंगे, उसका सम्मान करेंगे। इस सबके बीच अनेक बिन्दु आपकी चेतना को झकझोरेंगे भी कि अरे, यह तथ्य तो हमें भी ज्ञात है पर इससे पहले इसे इस दृष्टिकोण से क्यों नहीं देखा|
Summary of book राम रावण कथा 3 राम / Ram (Ram-Ravan Katha) Book 3 PDF Download
दोनों ही खंडों में कई कथायें समानांतर चलती हैं। अलग-अलग कथा में विभिन्न पृष्ठभूमियों से निकलकर विभिन्न पात्र बाद में एक कथा में सम्मिलित होंगे। पहले पूर्व-पीठिका की चर्चा करते हैं-
पहली कथा है सुमाली और बाद में रावणादि की-
स्वर्ग से विष्णु द्वारा खदेड़े गए माल्यवान, सुमाली और उनके पुत्रों ने मार्ग में दिवस व्यतीत करने हेतु, एक आम्र-वाटिका में शरण ले ली। वहाँ एक किशोरी से इनका विवाद हो गया। किशोरी को अनार्यों से तीव्र घृणा थी, वह किसी रक्ष को अपनी आम्र-वाटिका में एक पल के लिए भी सहन करने के लिए तैयार नहीं थी। विवाद में दुर्घटनावश किशोरी बुरी तरह घायल हो गयी। चपला नामक यही किशोरी आगे चलकर मंथरा के नाम से जानी गयी।
माल्यवान, सुमाली और माली, इन भाइयों ने ही लंका बसाई थी और फिर अपने पौरुष से इंद्र को परास्त कर स्वर्ग पर भी अधिकार किया था। इंद्र की प्रार्थना पर विष्णु ने इन्हें स्वर्ग से खदेड़ दिया था। विष्णु से युद्ध में इनका छोटा भाई माली मारा गया था। बचकर वापस लंका लौटने के उपरांत बड़े भाई माल्यवान ने संन्यास ले लिया। मँझला सुमाली विष्णु के भय से लंका से अपने सारे कुनबे को समेटकर भूमिगत हो गया और समय की प्रतीक्षा करने लगा।
भविष्य में उसे अवसर मिला। उसकी प्रेरणा से यौवन में प्रवेश करती उसकी सुंदरी कन्या कैकसी ब्रह्मा के पौत्र, पुलस्त्य के पुत्र महर्षि विश्रवा से विवाह करने में सफल हुई। विश्रवा से उसे तीन पुत्र- रावण, कुंभकर्ण व विभीषण और एक पुत्री- चन्द्रनखा प्राप्त हुई। सन्तानों को जन्म के उपरांत शीघ्र ही वह अपने पिता सुमाली के पास छोड़ती गयी। मात्र विभीषण ही अधिक समय तक विश्रवा के आश्रम में रहा।
सुमाली ने अपने सभी दौहित्रों को योग और शस्त्रास्त्रों की शिक्षा देना आरंभ किया। उसने तीनों को योगसमाधि द्वारा ब्रह्मा का ध्यान करने के लिए प्रेरित किया। अंतत: ये लोग समाधि के द्वारा ब्रह्मा से सम्पर्क स्थापित करने में सफल हुए। ब्रह्मा अपने प्रपौत्रों से मिलकर अत्यंत प्रसन्न थे, उन्होंने इन्हें अनेक दिव्यास्त्र प्रदान करने के अतिरिक्त अनेक विद्याओं का भी ज्ञान दिया। उन्होंने चारों (चौथी चंद्रनखा) से मनचाहा वर माँगने को कहा।
रावण के माँगने पर उन्होंने वचन दिया कि मनुष्यों के अतिरिक्त अन्य कोई भी देव, दैत्य, दानव, यक्ष आदि युद्ध में उसका वध नहीं कर पायेंगे। यदि कभी वह इनके साथ युद्ध में पराजित होने की स्थिति में होगा तो ब्रह्मा स्वयं उसकी सहायता के लिए उपस्थित हो जायेंगे। मनुष्यों से लड़ाई में वे बीच में नहीं पड़ेंगे। मनुष्यों को ये लोग किसी गिनती में ही नहीं लाते थे, अत: कोई समस्या नहीं थी। कुम्भकर्ण ने माँगा कि वह खूब खाये और खूब सोये। ब्रह्मा ने कहा कि खूब खाओगे तो अपने आप खूब सोओगे भी। खाया हुआ नुकसान न करे इस हेतु उन्होंने उसे कुछ यौगिक क्रियायें और कुछ औषधियाँ बता दीं। विभीषण ने बस प्रभु के चरणों में अनुरक्ति माँगी और चन्द्रनखा ने त्रिलोक की सबसे सुन्दरी नारी होने की आकांक्षा प्रकट की। ब्रह्मा ने उन दोनों को भी उचित उपाय समझा दिए।
विश्रवा के पहली पत्नी देववर्णिनी से कुबेर उत्पन्न हुआ था। ब्रह्मा ने उसे लोकपाल का पद देकर खाली पड़ी लंका उसे प्रदान कर दी थी। जब रावणादि ब्रह्मा से वरदान प्राप्त कर चुके तब सुमाली ने उन्हें लंका पर पुन: अधिकार करने हेतु प्रेरित करना आरंभ किया। अंतत: विश्रवा की मध्यस्थता में लंका रावण को प्राप्त हुई। कुबेर ने कैलाश के निकट अलकापुरी नाम से, अपने नये राज्य की स्थापना की। लंका पर अधिकार प्राप्त होते ही संयोगवश अभियांत्रिकी में अपनी प्रवीणता के लिए विश्व-विख्यात, किंतु पत्नी के वियोग और पुत्रों की अभद्रताओं के कारण अर्द्धविक्षिप्त सा हो गया, दानवराज मय भटकता हुआ लंका आ पहुँचा। उसने रावण से अपनी सर्वगुण सम्पन्न कन्या मंदोदरी को स्वीकार करने का आग्रह किया। कोई बाधा थी ही नहीं रावण का मंदोदरी से विवाह हो गया। कुछ ही समय बाद कुंभकर्ण का वङ्काज्वाला और विभीषण का सरमा से विवाह हो गया। कुछ काल बाद रावण को मंदोदरी से प्रथम पुत्र मेघनाद की प्राप्ति हुई।
विष्णु से हुई पराजय सुमाली के हृदय में खटक रही थी। वह रावण के माध्यम से एक बार पुन: स्वर्ग पर अधिकार करने के सपने देख रहा था। उसने गुपचुप रूप से लंका की सैन्यशक्ति विकसित करनी आरंभ की साथ ही पड़ोसी द्वीपों में गुप्तचरों के माध्यम से अपना प्रभाव बढ़ाना भी आरंभ किया। दूसरी ओर उसने ऐसी कूटनीतिक चालें चलनी भी आरंभ कीं जिनसे रावण और कुबेर में वैमनस्य उत्पन्न हो गया। परिणामत: रावण ने कुबेर पर आक्रमण कर उसे पराजित कर दिया। रावण ने सुमाली की इच्छा के विरुद्ध, अलकापुरी पर अधिकार नहीं किया किंतु कुबेर से उसका विमान पुष्पक अवश्य हथिया लिया। सैन्य को लंका जाने का आदेश दे रावण सुमाली और कुछ अन्य मातुलों के साथ, पुष्पक पर सवार हो विहार के लिए चल पड़ा।
थोड़ा बढ़ने पर ही इन लोगों का टकराव शिव से हुआ। शिव की अविश्वसनीय शक्ति के सम्मुख रावण को अपनी तुच्छता का आभास हो गया। वह शिव का भक्त बन गया। शिव ने भी उसे अपनी कृपा और आशीर्वाद स्वरूप चंद्रहास नामक अपनी दिव्य कटार प्रदान की। शिव से विदा लेने के उपरांत रावण ने सबको लंका भेज दिया और स्वयं कैलाश के निकट ही वन में अपने अहंकार का प्रायश्चित करने के लिए तपस्या करने लगा।
वन में ही उसकी भेंट बृहस्पति की पौत्री वेदवती से हुई। वेदवती के पिता कुशध्वज का विचार था कि उनकी कन्या के योग्य वर त्रिलोक में मात्र विष्णु हैं। अत: उन्होंने वेदवती को उनकी आराधना में प्रवृत्त कर दिया था। पिता की मृत्यु के उपरांत भी वेदवती उसी वन में विष्णु की आराधना में प्रवृत्त थी। परिस्थितिवश रावण और वेदवती में निकटता बढ़ी, परिणामस्वरूप वेदवती ने एक कन्या को जन्म दिया किंतु संकल्प से च्युत होने की आत्मग्लानि के चलते उसने कन्या रावण को सौंपकर चितारोहण कर लिया।
इसी समय सुमाली रावण को लिवाने आ गया। वेदवती के आत्मदाह से रावण गहरे मनस्ताप की स्थिति में था। सुमाली ने इस प्रकार व्यवस्था की कि कन्या साधु स्वभाव के मिथिला नरेश सीरध्वज जनक के पास पहुँच गयी। यही कन्या कालांतर में सीता के नाम से विख्यात हुई। इस बीच रावण की अनुपस्थिति में चंद्रनखा विद्युज्जिव्ह नामक एक कालकेय दैत्य के प्रेम में पड़ गयी थी। अचानक विद्युत को संदेश मिला कि पिता ने उसे अविलम्ब बुलाया है। शीघ्रता में चंद्रनखा ने विद्युत के साथ गंधर्व विवाह कर लिया।
दूसरी कथा है दशरथ की-
दशरथ की माता इंदुमती का निधन उनके शिशुकाल में ही हो गया था। पिता अज को अपनी पत्नी से अगाध स्नेह था। जैसे ही दशरथ कुछ बड़े हुए, अज ने सारा राज्यभार उन्हें सौंपकर, आहार त्याग मृत्यु का वरण कर लिया। कम आयु में सत्ता प्राप्त हो जाने से दशरथ उद्धत स्वभाव के हो गए। एक दिन मित्रों के साथ आखेट के लिए गए दशरथ से धोखे से एक मुनिकुमार श्रवण कुमार की हत्या हो गयी। श्रवण के अंधे माता पिता ने भी उसकी चिता में ही आत्मदाह कर लिया। मृत्यु का वरण करने से पूर्व श्रवण की माता ने दशरथ को भी पुत्र के वियोग में इसी प्रकार तड़प-तड़प कर प्राण त्यागने का श्राप दे दिया। दशरथ ने इस घटना के विषय में किसी को कुछ नहीं बताया।
महामात्य जाबालि और आमात्य सुमंत्र के प्रस्ताव के अनुरूप गुरुदेव वशिष्ठ ने दशरथ के विवाह हेतु उत्तर कोशल की राजकुमारी, महाराज भानुमान की पुत्री कौशल्या का चयन किया। उत्तर कोशल के साथ कोशल के संबंध अच्छे नहीं थे, भानुमान ने प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया तो दशरथ ने बलात कौशल्या का अपहरण कर लिया और गुरुदेव के निर्देशन में उनसे विवाह किया।
राम रावण कथा 3 राम / Ram (Ram-Ravan Katha) Book 3 PDF Download link is given below
We have given below the link of Google Drive to download in राम रावण कथा 3 राम / Ram (Ram-Ravan Katha) Book 3 PDF Download Free, from where you can easily save PDF in your mobile and computer. You will not have to pay any charge to download it. This book is in good quality PDF so that you won't have any problems reading it. Hope you'll like our effort and you'll definitely share the राम रावण कथा 3 राम / Ram (Ram-Ravan Katha) Book 3 PDF Download with your family and friends. Also, do comment and tell how did you like this book?
Copyright/DMCA: We DO NOT own any copyright of this PDF File. This राम रावण कथा 3 राम / Ram (Ram-Ravan Katha) Book 3 PDF Download Free was either uploaded by our users or it must be readily available on various places on public domains and in fair use format. as FREE download. Use For education purposes. If you want this राम रावण कथा 3 राम / Ram (Ram-Ravan Katha) Book 3 PDF Download to be removed or if it is copyright infringement then Report us by clicking Report option below Download Button or do drop us an email at [email protected] and this will be taken down within 48 hours!