कोश लिखने का शौक मुझे पागलपन की हद तक शुरू से ही है। अब से १५-१६ वर्ष पहले इसका श्रीगणेश पाली-उर्दू शब्दकोश से हुआ। इसके पश्चात् हिन्दी-उर्दू, फिर संस्कृत-उर्दू, फिर अरबी, फारसी, तुर्की- उर्दू के बड़े-बड़े कोश लिखे। सन् १६५० में मेरे जेल के साथी आरणीय श्री नारायण प्रसाद जी अरोड़ा ने कहा कि ‘उर्दू साहित्य बड़ी तेजी से हिन्दी में लिप्यन्तरित हो रहा है, तुम एक उर्दू-हिन्दी-कोश केवल हिन्दी जाननेवालों के लिए हिन्दी लिपि में लिख दो।’ बात अच्छी थी, बहुत पसन्द आयी और मैंने लिखना प्रारम्भ कर दिया। जब मैं उसे काफ़ी लिख चुका तो अचानक ध्यान आया कि यदि किसी समय भारत से उर्दू लिपि खत्म हो गयी तो क्या होगा ? भारत का सारा प्राचीन इतिहास फ़ारसी लिपि में हैं और एक समय उसका अनुवाद होना अनिवार्य है। ऐसी दशा में एक ऐसे कोश की आवश्यकता महसूस होगी, जो इस कठिनाई का समाधान कर सके और हमें प्राचीन फ़ारसी ग्रन्थों का अनुवाद करने में कोई विशेष परिश्रम न करना पड़े, इसलिए मैंने फिर से अपना काम शुरू किया। अब दृष्टिकोण दूसरा था, इसलिए काम बहुत क्लिष्ट हो गया और एक वर्ष के बजाय उसमें साढ़े साल लग गये।
अब यह पूर्ण रूप से मुकम्मल है और आशा है कि भविष्य में इस पर कुछ विशेष बढ़ाया न जा सकेगा। अंग्रेजी में संसार की सारी भाषाओं के कोश मिलते हैं, यहाँ तक कि उन भाषाओं के शब्दकोश भी हैं, जो बहुत कम प्रचलित हैं या बहुत थोड़े क्षेत्र में बोली जाती हैं।
भारत को भी यह सब करना है। यद्यपि अभी उसे स्वतंत्र हुए बहुत कम समय बीता है, फिर भी उसे यह करना होगा। यदि मेरे जीवन ने कुछ और साथ दिया तो एक तुर्की-हिन्दी एक आधुनिक अरबी-हिन्दी, एक आधुनिक फ़ारसी – हिन्दी कोश और लिखूंगा। इस समय तो मैं सारा जोर एक हिन्दी – हिन्दी कोश पर दे रहा हूँ, जिसकी बहुत अधिक आवश्यकता है, और वह है प्राचीन हिन्दी शब्दों का संग्रह और उनका अर्थ जो चन्दवरदाई, सूर, जायसी, तुलसीदास, बिहारी और अन्य प्रमुख कवियों ने अपनी रचनाओं में प्रयुक्त किये हैं, और जिनका कोई मुकम्मल ग्रन्थ नहीं है, यहाँ तक कि ‘नागरी प्रचारिणी सभा’ के शब्द सागर में भी उनमें से बहुत-से शब्द नहीं हैं।
मैं अपना यह साहित्यिक परिश्रम माननीय श्री डाक्टर सम्पूर्णानन्दजी की सेवा में उपस्थित करते हुए गर्व महसूस करता हूँ, क्योंकि वह हमारे प्रदेश के मुख्यमंत्री ही नहीं हैं, बल्कि बड़े साहित्य-मर्मज्ञ, विद्वान् और सहृदय व्यक्ति हैं, मेरी उनसे यह भी प्रार्थना है कि वह ऐसे महत्त्वपूर्ण कामों के लिए भी एक रकम हर साल बजट में सुरक्षित कर दिया करें।
मुमकिन है, इन कामों को अभी लोग महत्त्व न दें लेकिन समय आयेगा जब लोग इसकी कद्र करेंगे। मैंने यह काम उसी समय के लिए किया है।