यूपी 65 / UP 65 Book PDF Download

बेस्ट सेलिंग किताबों ‘नमक स्वादानुसार’ और ‘ज़िंदगी आइस पाइस’ के लेखक निखिल सचान का पहला उपन्यास। उपन्यास की पृष्ठभूमि में आइआइटी बीएचयू (IIT BHU) और बनारस है, वहाँ की मस्ती है, बीएचयू के विद्यार्थी, अध्यापक और उनका औघड़पन है। समकालीन परिवेश में बुनी कथा एक इंजीनियर के इश्क़, शिक्षा-व्यवस्था से उसके मोहभंग और अपनी राह ख़ुद बनाने का ताना-बाना बुनती है। यह हिंदी में बिलकुल नये तेवर का उपन्यास है, जो आपको अपनी ज़िंदगी के सबसे सुंदर सालों में वापस ले जाएगा, आपको आपके भीतर के बनारस से मिलाएगा। इस उम्मीद में कि बनारस हम सबके भीतर बना रहे, हम अलमस्त, औघड़ रहें और बे-इंतहा हँस सकें।
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Author
Nikhil Sachan
Size
1.8 MB
Pages
143
Language
Hindi

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Name : यूपी 65 / UP 65 Book PDF Download
Author : Invalid post terms ID.
Size : 1.8 MB
Pages : 143
Category : Novels
Language : Hindi
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बेस्ट सेलिंग किताबों ‘नमक स्वादानुसार’ और ‘ज़िंदगी आइस पाइस’ के लेखक निखिल सचान का पहला उपन्यास। उपन्यास की पृष्ठभूमि में आइआइटी बीएचयू (IIT BHU) और बनारस है, वहाँ की मस्ती है, बीएचयू के विद्यार्थी, अध्यापक और उनका औघड़पन है। समकालीन परिवेश में बुनी कथा एक इंजीनियर के इश्क़, शिक्षा-व्यवस्था से उसके मोहभंग और अपनी राह ख़ुद बनाने का ताना-बाना बुनती है। यह हिंदी में बिलकुल नये तेवर का उपन्यास है, जो आपको अपनी ज़िंदगी के सबसे सुंदर सालों में वापस ले जाएगा, आपको आपके भीतर के बनारस से मिलाएगा। इस उम्मीद में कि बनारस हम सबके भीतर बना रहे, हम अलमस्त, औघड़ रहें और बे-इंतहा हँस सकें।

 

Summary of book यूपी 65 / UP 65 Book PDF Download


इस किताब को शायद कुछ एक बरस पहले ही आ जाना चाहिए था । बनारस और BHU का मेरे जहन पर मन भर उधार रहा है। दोनों जगहों ने मुझे जो कुछ दिया है, यह किताब उसका मोल चुकाने की अदना- सी कोशिश भर है।
फिर भी तमाम साल मैं इस किताब को लिखने से बचता रहा जिसकी मूल रूप से तीन वजहें रहीं। पहली यह कि मैं नहीं चाहता था कि मैं IIT और कॉलेज लाइफ़ पर एक और किताब लिखकर स्टीरियो – टाइप कर दिया जाऊँ और इस किताब को बिना पढ़े ही एक और ‘फ़ाइव प्वाइंट सम वन’ कह दिया जाए। दूसरी यह कि सत्य भाई की ‘बनारस टाकीज़’ आने के बाद, मैं दोबारा संशय में था कि BHU और बनारस पर इतनी बेहतरीन किताब के बाद, एक और किताब का स्वागत किस हद तक होगा । या नहीं भी । तीसरी यह कि मैं इस बात से भी बचता रहा कि किताब का कथानक गूढ़ – गंभीर न होने से उसे एक बड़ा वर्ग फ़ौरी तौर पर सिरे से दरकिनार तो न कर देगा।
वैसे भी हिंदी साहित्य में लेखक कम हैं, आलोचक अधिक । इस संशय के लिए BHU बार – बार मुझे कोसता रहा और मैं ख़ुद को । फिर एक अलमस्त शाम मैंने ख़ुद से सवाल किया, कि किवाड़ पर खड़ा मेरा सबसे ख़ूबसूरत मेहमान जो अभी बार-बार प्यार से कुंडी खटखटाता है, वह कल को ख़फ़ा हो गया तो मैं उसे वापस कैसे लाऊँगा । मैंने ख़ुद को याद दिलाया कि मैं एक ख़ुदगर्ज़ लेखक हूँ और मैंने एक-एक अक्षर सिर्फ़ अपने

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