जुहू चौपाटी | Juhu Chowpatty Hindi PDF Download Free in this Post from Google Drive Link and Telegram Link , No tags for this post. All PDF Books Download Free and Read Online, जुहू चौपाटी | Juhu Chowpatty Hindi PDF Download PDF , जुहू चौपाटी | Juhu Chowpatty Hindi PDF Download Summary & Review. You can also Download such more Books Free - Hindi Novels PDF Download FreeHindi PDF Books Download
Name : | जुहू चौपाटी | Juhu Chowpatty Hindi PDF Download |
Author : | Invalid post terms ID. |
Size : | 2.75 MB |
Pages : | 128 |
Category : | Novels |
Language : | Hindi |
Download Link: | Working |
दुनिया से अलग होने की क़ीमत चुकानी ही पड़ती है। ऐसी ही एक क़ीमत मीरा ने भी चुकाई। मीरा अपने सपनों की तलाश में शिमला से दिल्ली आती है, जहाँ से उसका अभिनेत्री बनने का सफ़र शुरू होता है, जो उसे मुंबई तक ले जाता है। उसे नाम, शोहरत, पैसा, प्यार सब मिलता है। अचानक उसके साथ एक हादसा हो जाता है, जो उसकी पूरी ज़िंदगी बदल देता है। एक दिन वह ख़ुद को अपने ही अपार्टमेंट में मरा हुआ पाती है। उसे ख़ुद को इस तरह देखकर विश्वास ही नहीं होता। उसका दिमाग़ भी काम करना बंद कर देता है। उसे यह भी याद नहीं आता कि यह कैसे हुआ, क्यों हुआ, किसने किया।
‘जुहू चौपाटी’ साधना जैन की पहली किताब है। इन्होंने अपने लिखने की शुरुआत दिव्य प्रकाश दुबे के राइटर्स रूम से की, जहाँ इन्होंने जल्द ही रिलीज हो रही एक ‘Audible Series’ के लिए तीन कहानियाँ भी लिखी हैं। बचपन से ही इन्हें पढ़ने का शौक था, लेकिन जब आर्थराइटिस नामक रोग ने कम उम्र में ही इनकी ज़िंदगी में अपना स्थाई घर बना लिया तो पढ़ना इनकी ज़रूरत बन गया। किताबों में इन्होंने अपने अकेलेपन को खोकर एकांत को खोजा, जिसने इन्हें मानसिक रूप से सबल बनाए रखा। इनका मानना है कि किताबों को पढ़ा जाना चाहिए, भाषा चाहे कोई भी हो। लेकिन, अगर आपको एक से ज़्यादा भाषाओं का ज्ञान है तो हर भाषा में पढ़ना चाहिए, क्योंकि हर भाषा के पास आपसे बाँटने के लिए कुछ-न-कुछ ख़ास होता है। इनकी पढ़ाई दिल्ली विश्वविद्यालय से हुई है। अब इनका सारा समय सिर्फ़ कहानियों की दुनिया में खोए हुए बीतता है।.
दुनिया से तो भागा जा सकता है, ख़ुद से नहीं। शाम के 4:30 बजे के आसपास की बात है। एक लड़की बांद्रा स्थित अपने अपार्टमेंट से सफ़ेद रंग की नाइटी पहने हुए निकली और बिना रुके बस बेतहाशा-सी भागी जा रही है। जिस दिशा में वह जा रही है वह रास्ता जुहू चौपाटी की तरफ़ जाता है। लड़की की हालत देखकर ऐसा लग रहा है जैसे कि कोई बहुत ही भयानक-सी चीज़ उसने देख ली हो, जिससे वह बहुत दूर चली जाना चाहती हो।
दूर कहीं टीवी पर…
अभी-अभी ख़बर आ रही है कि मशहूर अभिनेत्री मीरा अपने ही घर में मृत पाई गई हैं। उनकी मौत की वजह क्या है, यह अभी ठीक से कुछ कहा नहीं जा सकता। यह ख़बर सचमुच चौंका देने वाली है। ग़ौरतलब है कि उनकी उम्र अभी सिर्फ़ चालीस साल थी…
डूबती शाम
कई बार हम ऐसा कुछ कर जाते हैं जिसे करने के बाद हमें ख़ुद हैरानी होती है। कुछ ऐसा जो हम कब का करना छोड़ चुके होते हैं या वह हमने अपनी ज़िंदगी में कभी किया ही नहीं होता। फिर अचानक ऐसा कुछ घट जाता है जिसके बाद हम वह काम इस तरह से कर जाते हैं, मानो ये प्यास लगने पर पानी पीने जैसी आम बात हो। मैं भी यहाँ आना सालों पहले छोड़ चुकी थी। लेकिन मैं आज यहाँ ऐसे आ गई जैसे आदमी हर शाम थका-हारा लौटकर घर जाता है। मैंने कभी यहाँ दोबारा आने का सोचा नहीं था। मुंबई का ये जुहू चौपाटी और इससे लगता ये गहरा विशाल समुद्र। आज सिर्फ़ यही एक हादसा मेरे साथ नहीं हुआ। आज डूबता हुआ सूरज भी मुझे बहुत अपना-सा लग रहा है। और ये भी मेरे लिए किसी हादसे से कम नहीं। पहले मैं जब भी इसे देखती थी एक अजीब-सा ख़ालीपन मेरे मन में उतर जाता था। अजीब इसलिए कि यह ऐसा ख़ालीपन नहीं था जो किसी के न होने पर महसूस होता है। या जो हमारी किसी बहुत प्यारी चीज़ के टूट जाने पर या जो अपने घर से बहुत दिनों तक दूर रहने पर हमारे अंदर घर कर लेता है। ये ऐसा ख़ालीपन था जो तब महसूस होता है जब हमें लगता है कि हमारी ज़िंदगी में सब सही है। हम ख़ुश हैं। लेकिन आज इसे देखकर कोई ख़ालीपन नहीं, कोई उदासी नहीं और न ही कोई सवाल है मन में। आज जैसे हम दोनों ही समझ रहे हैं कि हमारा मिलना पहले से ही तय था। अक्सर सबसे ज़्यादा सुकून हमें वहीं मिलता है जहाँ से हम बहुत दूर भाग जाना चाहते हैं।
हम हर पल में नये होते रहते हैं। हमारी सोच, हमारे विचार, हमारी भावनाएँ, हमारी पसंद सब वक़्त के साथ बदल जाते हैं। और ये बदलाव पलक झपकते ही नहीं हो जाता। ये प्रक्रिया हर सेकंड चालू रहती है जिसका हमें पता भी नहीं चलता। और एक दिन हम पाते हैं हम वह रहे ही नहीं जो कल थे। इस बात का पता हमें तब चलता है जब हम अपने बीते हुए कल से टकराते हैं और वह कल हमें अजनबी-सा लगने लगता है। जैसे हम उससे आज पहली बार मिल रहे हों। हमारा वर्तमान हमारे अतीत का अपग्रेड वर्ज़न ही तो है। हम चाहें भी तो अपने ओल्डसेल्फ़ में वापस नहीं जा सकते। जिस तरह मुँह से निकले हुए हमारे शब्द पराए हो जाते हैं, उसी तरह हमारा जिया हुआ कल हमारे आज से अजनबी होता जाता है। ये सब मैंने कहीं पढ़ा था। अब याद नहीं कहाँ पढ़ा था। इस बात को मैं सिर्फ़ इसलिए नहीं मानती क्योंकि इसे मैंने कहीं पढ़ा था। इस बात का अनुभव मैंने अपनी अब तक कुल-मिलाकर गुज़ारी चालीस साल की ज़िंदगी में कई बार किया है। मेरी ज़िंदगी को छोड़कर अब तक बहुत से लोग जा चुके हैं। इसलिए मैंने लोगों को अपनी आदत ही बनाना छोड़ दिया था ताकि वो जाएँ भी तो मैं उनकी यादों में क़ैद होकर ख़ुद को न खो दूँ।
मैं भी क्या सोचते-सोचते क्या ही सोचने लगी? कैसे हम कुछ सोचते-सोचते कुछ और ही सोचने लगते हैं? इसीलिए शायद अँग्रेज़ी में इस तरह के सोचने को Train of Thoughts कहा जाता है। मुझे सोचना पसंद है, ठीक वैसे ही जैसे मुझे सफ़र में रहना पसंद है। सोचना भी तो एक सफ़र जैसा ही होता है। इस सफ़र में जाने कितनी नयी सोच हमारी हमसफ़र बनती हैं, फिर उस सफ़र में ही बिछड़ भी जाती हैं और हम फिर से अपने सफ़र पर चल पड़ते हैं।
आज समुद्र कितना शांत है! बिलकुल मेरे मन के विपरीत। एक लहर भी नहीं जो किनारे के साथ छेड़खानी कर रही हो। किनारा भी कैसे बुझा-बुझा नज़र आ रहा है। हालाँकि यहाँ बहुत से लोग हैं, लेकिन किनारे को तो जैसे सिर्फ़ लहरों का ही इंतज़ार है। किनारे को भी तो लहर की आदत-सी हो गई होगी। इसीलिए मैं ख़ुद को किसी भी आदत की आदी नहीं होने देती। एक भी दिन आदत के अनुसार न गुज़रे तो मन भी बुझ जाता है। और बुझी हुई चीज़ें सिर्फ़ अँधेरा करती हैं।
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