काव्यों में नाटक सुन्दर माने जाते हैं ; नाटकों में “अभिज्ञान शाकुन्तल’ सबसे श्रेष्ठ है ; शाकुन्तल में भी चौथा अंक और उस अंक में भी चार श्लोक अनुपम हैं। एक अनुभवी और विद्वान् आलोचक के इस कथन के बाद ‘अभिज्ञान शाकुन्तल’ के बारे में और यह कहा जा सकता है कि भारत की गोस्वशाती और समृद्ध परम्परा, सांस्कृतिक वैभव, प्रकृति के साथ मानवीय अंतरंगता, यहाँ तक कि वन्य जीवों के साथ भी बन्धुत्व की भावना-इन सबका महाकवि कालिदास ने इस नाटक में जैसा वर्णन किया है, वह वास्तव में अनुपम है। विश्व की अनेक भाषाओं में “अभिज्ञान शाकुन्तल’ का अनुवाद हुआ है और सभी ने इसकी मुक्त की से प्रशंसा की है।
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कालिदास का स्थान और काल
विद्वानों में इस बात पर ही गहरा मतभेद है कि यह कालिदास कौन थे? कहाँ के रहने वाले थे? और कालिदास नाम का एक ही कवि था, अथवा इस नाम के कई कवि हो चुके हैं? कुछ विद्वानों ने कालिदास को उज्जयिनी निवासी माना है, क्योंकि उनकी रचनाओं में उज्जयिनी, महाकाल, मालवदेश तथा क्षिप्रा आदि के वर्णन अनेक स्थानों पर और विस्तारपूर्वक हुए हैं। परन्तु दूसरी ओर हिमालय, गंगा और हिमालय की उपत्यकाओं का वर्णन भी कालिदास ने विस्तार से और रसमग्न होकर किया है। इससे कुछ विद्वानों का विचार है कि ये महाकवि हिमालय के आसपास के रहने वाले थे। बंगाल के विद्वानों ने कालिदास को बंगाली सिद्ध करने का प्रयत्न किया है और कुछ लोगों ने उन्हें कश्मीरी बतलाया है। इस विषय में निश्चय के साथ कुछ भी कह पाना कठिन है कि कालिदास कहाँ के निवासी थे। भारतीय कवियों की परम्परा के अनुसार उन्होंने अपने परिचय के लिए अपने इतने बड़े साहित्य में कहीं एक पंक्ति भी नहीं लिखी। कालिदास ने जिन-जिन स्थानों का विशेष रूप से वर्णन किया है, उनके आधार पर केवल इतना अनुमान लगाया जा सकता है कि कालिदास ने उन स्थानों को भली- भाँति देखा था। इस प्रकार के स्थान एक नहीं, अनेक हैं; और वे एक-दूसरे से काफी दूर-दूर हैं। फिर भी कालिदास का अनुराग दो स्थानों की ओर विशेष रूप से लक्षित होता है : एक…………….
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Category | Novels |
Language | Hindi |
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