‘अनोखा सफर’ – एक अद्भुत यात्रा (कहानी) – नवीन धनवर

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Description

आरम्भ 

मैं एक बस में सबसे पीछे बैठा था। उस बस में और उसके पीछे वाले बस में भी बहुत से मेरी उम्र के लड़के और लड़कियां बैठे थे। उन दोनों बसों में एक एक गाइड भी थे, और दोनों बसों की मंजिल भी एक ही थी।

बसें अपनी रफ़्तार से चली जा रहीं थीं। रास्ते में कई फलों के पेड़ भी लगे थे। मुख्यतः बेर के पेड़ थे। बस रास्ते भर सवारियों के मन मुताबिक रुकती जा रही थी, ताकि फलों का स्वाद उनके जुबान चख सकें।

अचानक बिना किसी चेतावनी के हल्की हल्की बारिश शुरू हो गई। हल्की बरसात और बाहर का नजारा किसी जन्नत से कम ना था। दोनों बसों के संचालक बारिश कि लय में बस चला रहे थे।

हम सब अलग अलग शहरों और बैकग्राउंड के थे। फिर भी हमनें कुछ ही समय में दोस्ती कर ली थी। अपना अपना छोटा सा ग्रुप भी बना लिया था, ताकि हम कहीं गुम न हो सकें।

सबसे पहले हमारी बसें एक मंदिर के बाहर रुकी। यह मंदिर बहुत पुराना लग रहा था। इस मंदिर की सबसे खास बात मुझे इसकी सीढ़ियां लगीं, पता नहीं क्यों पर इसका प्रभाव मुझ पर ज्यादा हुआ। मंदिर के बाहर एक बड़ा सा पेड़ था। इस पेड़ के नीचे बहुत से शिवलिंग स्थापित थे। इस मंदिर का पूरा जायजा लेने के बाद हम आगे बढ़ गए।

बहुत से खेतों के बीच बने कच्चे और पक्के रास्तों के मिले जुले गलियारों से हमारी बस चल रही थी। सब अंताक्षरी खेल रहे थे, यहां तक कि हमारे पीछे के बस वाले भी, उनकी आवाजें भी आ रही थी। मैं पहले कि तरह पीछे ही बैठा था। वैसे इस बस में रिजर्वेशन जैसा कुछ भी नहीं था। यहां फर्स्ट कम फर्स्ट सर्व वाला केस भी नहीं था। सब अपनी सहूलियत से बैठे थे।

शाम होने वाली थी। बरसात भी रुक गई थी। हमारा काफिला एक सस्ते से लेकिन अच्छे घर में रुका। यहां पर आस पास रात को भी खुली दुकानों की वजह से कुछ बहुत भीड़ थी, लेकिन इस कारण हमें खाने के बंदोबस्त में आसानी हुई। दोनों गाइडों ने हमें बताया कि इस स्थान के दुकान चौबीसों घंटे खुले रहते हैं। यहां पर कभी भी किसी भी वक्त कोई भी वस्तु मिल जाएगी।

मैं और कुछ और लड़के पास वाली जूस की दुकान में बैठे जूस पी रहे थे। जबकि लगभग सभी लड़कियां दोनों गाइड्स के साथ पूरा बाजार खरीदने निकल पड़ीं, उस समय हमारा तो यही ख्याल था। आखिर वे शॉपिंग करने निकलें और खाली हांथ आ जाएं, भला ये कैसे संभव है। रात बहुत हो चुकी थी। हम भी थोड़ा आराम करनें चले गए।

अल-सुबह मुझे एक लड़के ने उठाया और कहा कि हम बारह लड़के और एक गाइड यहां पास पर स्थित आर्कियोलॉजिकल साइट पर जा रहे हैं, क्या तू चलेगा? वैसे तो मैं वहां नहीं जाना चाहता था क्योंकि मुझे अपनी नींद प्यारी थी, लेकिन पता नहीं क्यों मैं उठा और अपना फोन चार्जर से निकाला और उनके साथ चला गया।

जब हम वहां से वापस आए तब लड़कियां बहुत नाराज़ थीं। उन्हें भी वहां जाना था। हमनें सभी लड़कों को पूछा था लेकिन ज्यादातर इतिहास को जानने में इंटरेस्टेड नहीं थे। हमें लगा था लड़कियों को भी इसमें कोई इंटरेस्ट नहीं होगा इसलिए हमनें उनसे नहीं पूछा था। बड़ी मुश्किल से गाइड ने सब संभाल लिया। तब जाकर मामला शांत हुआ। सब तैयार थे। हम सबने नाश्ता किया और फिर आगे के सफर में निकल पड़े।

हम अब अपनी मंजिल यानी मंदिरों के शहर में पहुंच गए थे। यहां पर एक इमारत के चबूतरे पर सभी खड़े थे, की तभी एक लड़की ने एक ओर इशारा किया। हमनें देखा दूर एक भव्य और खूबसूरत नजारों के साथ एक मंदिर खड़ा था। मैं इमारत के एक खंबे के पास खड़ा होकर उधर देख रहा था।

कुछ समय बाद सब अपने अपने झुंड में बंट कर चारों ओर फैल गए। सब अपने अपने फोन और कैमरों से फोटो, सेल्फी और विडियोज लेने लगे। मैं और कुछ लोग उसी दूर से देखे गए मंदिर की ओर जाने लगे। वहां पर पहुंच कर कुछ फोटो और वीडियो शूट करने के बाद हम पार्क की ओर अग्रसर हो गए।

यह एक नेशनल पार्क तो नहीं, पर बहुत बड़ा था। यहां के कुछ क्षेत्र कीचड़ से भरे थे, जिनमें वह क्षेत्र भी शामिल था जहां पर आम लगे थे। लड़कियों को आम का लालच आ गया। जिस कारण मुझे और तीन और लड़कों को आम लानें उस कीचड़ से भरे रास्ते में जाना पड़ा। मेहनत रंग लाई थी, आम बहुत ही मीठे और रसदार थे।

पास में ही स्थित बड़े से झील के किनारे सब इकट्ठे हो गए। शाम का नजारा देखने में सुकून भरा था। किसी का भी उस नज़ारे को छोड़ कर वहां से उठने का मन नहीं कर रहा था।

सब बस की सीटों से चिपके सो रहे थे। बस धीरे धीरे चल रही थी। मैं बाहर की ओर खिड़की से टिककर देख रहा था। टिमटिम करते तारे, चमकते जुगनू और रातरानी की खुशबू, ये तीनों मन को मोहने के लिए काफी थे। रुक रुक कर रात के कीड़ों की आवाज़ें भी आ रही थी। पूरा शमा ही सुकून का था। धीरे धीरे मेरी पलकें भी भारी होते गईं और नींद की रानी ने मुझे कब अपने आगोश में ले लिया मुझे पता भी नहीं चला।

मेरी नींद खुली। सब बस में पहले की तरह अंताक्षरी खेल रहे थे। बस के एक ढाबे में रुकने पर सबने फ्रेश होने के बाद नाश्ता किया। नाश्ते में छोले भटूरे कॉमन था, इसके अलावा सबने अपने पसंद की चीजें भी खाईं।

हमारा इन दोनों बसों का सफर आगे एक साइन बोर्ड के पास खत्म हुआ। यहां से हमें आठ किलोमीटर पैदल चलना था, तब जाकर दो अलग नई बसें हमें मिलती जो कि वहां पर हमारा इंतजार कर रहीं थीं।

रास्ते भर पैदल चलते चलते सब कुछ न कुछ फोटो और वहां की यादें बटोर रहे थे। इन यादों में फोटो के अलावा अनोखे पत्थर, गुंजा के बीज और कुछ खूबसूरत फूल भी थे। एक साथ चलने में और रास्ते भर जुगलबंदी करने से रास्ते की दूरी का अंदाजा ही नहीं लगा।

हम बसों के पास पहुंच गए। दोनों बसें एक ढाबे पर खड़ी थीं। हमने ढाबे पर खाना खाया फिर कुछ देर वहीं पर रुके। गाइड ने बताया यहां पर दो किलोमीटर दूर एक पुरातन स्थल है और वहां पर एक तालाब भी है। हम सभी बस को वहीं रुकने का इशारा करते हुए दो किलोमीटर पैदल यात्रा के लिए निकल पड़े। वहां पर जा कर सबका मकसद नहाने का था। नहाने के बाद वहां पर कुछ टहल बाजी करने के बाद सभी वापस लौट गए।

बस पर बैठे इस बार सब पहेली बूझने वाला खेल खेलने लगे। उबाऊ सफर से बचने का दो ही उपाय था। एक तो बाहर के सुंदर नजारे देखना और दूसरा सुंदर नजारों के आभाव में कोई मन बहलाऊ खेल खेलना।

हमारी बस एक गांव में रुकी। यहां पर सब दो – दो के ग्रुप में बंट कर अपने अपने मेजबान घर में रुक गए, जिसका बंदोबस्त उसी गांव के मुखिया ने किया था। उस रात को उनका कोई कार्यक्रम होने वाला था, जिसमें हम सब आमंत्रित किए गए। सब एक दूसरे से शाम को कार्यक्रम में मिलने का वादा कर अपने अपने मेजबान घरों की ओर चल पड़े।

रात का समय था। मैं अपने साथ आए एक लड़के के उठाने से उठा। हम दोनों और हमारा मेजबान परिवार उस कार्यक्रम में शामिल होने गए। वहां का खाना बहुत अच्छा लगा। हम सब कार्यक्रम का पूरा आनंद ले रहे थे। मैं और कुछ लोग वहां पर बाकियों के साथ इंस्ट्रूमेंट्स के धुन के साथ नाचने लगे।

सुबह हम सबने उन लोगों से विदाई ली। मेरे मेजबान परिवार ने मुझे और मेरे साथ वाले लड़के को एक थैली भी दी जिसमें बहुत सारे काजू थे। जब हमने बस में कदम रखा, तब केवल हम दोनों के पास ही गिफ्ट था। हम दोनों ने उसे सबके साथ शेयर किया।

हम सब एक साथ अपने सफर के अंतिम पढ़ाव में पहुंचे। ये एक शराय था। यहां से सब अपने अपने घर जाने वाले थे। वहां सब बारी बारी नहा कर तैयार हो गए। सबने खाना खाया और कुछ देर के लिए आराम करने लगे।

सब आपस में बात करते हुए अपने अपने मंजिल तक के लिए साथी ढूंढ़ रहे थे। मैं जहां जाने वाला था, वहां तक के लिए दो लड़की मिल गईं, उन्हें भी वहीं जाना था। मैं शराय के बाहर कुछ देर के लिए टहलने लगा। मुझे दूर एक खाली स्थान दिखा जहां पर बैठने की व्यवस्था भी थी। यह स्थान शराय से दूर जंगल जैसी जगह में था।

मैं उस जगह पर बैठे बैठे वहां चारों तरफ अपनी नजरें घुमा रहा था। मैंने वहां पर कुछ दूर एक बैल को देखा। वह बैल जैसे ही उस बड़े से घेरे के अंदर आया जो कि उस बैंच के चारों तरफ दूर तक फैला था, जिसमें में बैठा था, वह एकदम से बूढ़ा हो गया और उसकी हालत दयनीय हो गई। मैं यह सब देख कर बहुत अचंभे में पड़ गया। जब वह बैल उस घेरे के बाहर गया तो वह फिर से अपनी पहले की स्थिति में लौट आया। मुझे इस रहस्य के बारे में पता नहीं था और न ही मैंने उस घेरे को नोटिस किया, जब तक उस शराय के मालिक ने मुझे नहीं बताया।

मैं शराय पर बैठे यह घटना उन दोनों लड़कियों को बता रहा था। बाकी सभी अपने अपने घरों के लिए निकल चुके थे, केवल हम तीनों ही बचे थे। हमारी बातों को सुन कर शराय के मालिक ने कहा कि बहुत से लोगों ने यह नजारा देखा है, सबको वह स्थान नहीं मिलता और दुबारा जाने से भी वह स्थान और वह नजारा नहीं दिखता।

हम तीनों अब अपने मंजिल के करीब थे। दोनों अपने घर की ओर चल पड़ीं और मैं अपनी।

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