दोस्तो आज हम एक ऐसे टॉपिक के बारे में बात करने वाले हैं जिसके बारे में हममें से हरेक ने सुना है। मगर जब हम इनवेस्टमेंट करते हैं तो इसी टॉपिक को हम पूरी तरीके से भूल जाते हैं। तो इस पोस्ट का इंटेंशन होगा कि अगली बार जब आप इनवेस्टमेंट करें तो इसे बिल्कुल ही इग्नोर न करें। तो आज का हमारा विषय है Inflation क्या है और इसे किस तरीके से हैंडल किया जाए।
क्या आपने ध्यान दिया एक किलो चावल की कीमत नौ सालों में 30 रुपए से लेकर 55 रुपए हो गई है। स्कूल एजुकेशन का खर्च जो 20 साल पहले सिर्फ तीन हजार रुपए प्रति साल हुआ करता था वो आज 35 हजार रुपए प्रति साल है। उच्च शिक्षा की कीमत उदाहरण के तौर पर आईआईएम अहमदाबाद की जो 2018 की बात है उसे लगभग 20 लाख रुपए फीस देनी पड़ी और ये 400 परसेंट की बढ़त है 2007 के कंपेरिजन में।
मेडिकल Inflation सालाना तौर पर लगभग 15 परसेंट के आसपास है। यही यदि कोई उदाहरण देखना चाहें तो नॉर्मल डिलिवरी का खर्च यानी चाइल्ड बर्थ का खर्च जो तीन साल पहले 20 हजार रुपए हुआ करता था वो आज 40 हजार रुपए है नॉन मेट्रोज में भी।
Inflation क्या है?
Inflation एक नियमित बढ़त है सामान और सर्विसेस की कीमतों में। इन्फ्लेशन का पर्सेंटेज के तौर पर गिना जाता है, एक्सप्रेस किया जाता है। और इनफ्लेशन जैसी स्थिति में आपको हर साल ज्यादा पैसे देने होते हैं उसी चीज या सर्विस को पाने के लिए। और सबसे महत्वपूर्ण बात जैसे कंपाउंड इंटरेस्ट में आपके रिटर्न, और ज्यादा रिटर्न कमाते हैं उसी तरीके से Inflation भी कंपाउंडिंग होता है।
Inflation कैसे कंपाउंडिंग होता है?
आइए एक उदाहरण देते हैं जिसे हम समझ पाएंगे कि कैसे Inflation कंपाउंडिंग होता है। मान लीजिए आज आपने कमोडिटी खरीदी 1000 में और Inflation इस साल 7 पर्सेंट रहा। तो अगले साल आपको इसी चीज को खरीदने के लिए 1070 रुपए देने होंगे। मान लीजिए अगले साल इनफ्लेशन 7 पर्सेंट ही रहा तब तीसरे साल में ईसी चीज को खरीदने के लिए आपको 1145 रुपए लगभग देने होंगे। तो ये 7 पर्सेंट तीसरे साल में 1070 पर कैलकुलेट होता है और ना के हजार रुपयों पर तो इस तरीके से इंफ्लेशन कंपाउंडिंग होता है।
मान लीजिए 20 सालों तक इनफ्लेशन 7 पर्सेंट ही रहा तो 20 सालों बाद आपको ईसी चीज को खरीदने के लिए लगभग 3900 रुपए देने होंगे। या एक तरीके से हम ये कह सकते हैं कि हमारे हजार रुपये की कीमत सिर्फ 271 रुपए ही रह जाएगी।
तो इस उदाहरण का इंटेंशन आपको डराना नहीं था बल्कि सिर्फ आपके ये ध्यान में लाना था कि जब भी आप कोई इनवेस्टमेंट करें तो इनफ्लेशन जैसे फैक्टर को हमेशा कंसीडर करके चलें। Inflation एक बढ़ती इकॉनमी का चिन्ह होता है तो इसलिए यह अच्छी बात है। इनफ्लेशन जैसी स्थिति में आपकी सैलरी बढ़ती है। सैलरी बढ़ने की वजह से आपके खर्चे बढ़ते हैं और इसी तरीके से साइक्लिंग स्वरूप में इकॉनमी चलती रहती है तो Inflation से डरने की जरूरत नहीं है बल्कि इसको मैनेज करने की जरूरत है। हैंडल करने की जरूरत है।
Inflation को Handle कैसे करें?
तो Inflation को हम हैंडिल कैसे करेंगे। दो प्रकार के इंस्ट्रूमेंट होते हैं। एक तो सेविंग्स दूसरे होते हैं इनवेस्टमेंट इंस्ट्रूमेंट्स।
सेविंग्स इंस्ट्रूमेंट आपको फिक्स इंटरेस्ट रेट देते हैं और ये इंटरेस्ट रेट महंगाई के दर के आधा परसेंट एक परसेंट ऊपर रिटर्न्स आपको देते हैं।
सेविंग इंस्ट्रूमेंट्स के उदाहरण हैं पीपीएफ, पोस्ट ऑफिस स्कीम्स, एफडी इत्यादि।
जो इन्वेस्टमेंट इंस्ट्रूमेंट होते हैं वो मार्केट लिंक्ड आपको रिटर्न देते हैं और ये रिटर्न महंगाई के दर के काफी ऊपर होते हैं। इन्वेस्टमेंट इंस्ट्रूमेंट के उदहारण हैं म्यूचुअल फंड्स, डिविडेंड, स्टॉक्स इत्यादि।
तो इस महंगाई के दर को हैंडल करने के लिए आपको अपने लंबे समय के वित्तीय लक्ष्यों के लिए इनवेस्टमेंट इंस्ट्रूमेंट का चुनाव करना चाहिए और ना कि सेविंग्स इंस्ट्रूमेंट्स।
अभी एक उदाहरण देखेगी जिससे स्पष्ट हो जाएगा कि यदि आपने सारे वित्तीय लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सेविंग्स इंस्ट्रूमेंट का इस्तेमाल करेंगे जो आपको पोस्ट टैक्स रिटर्न जनरली महंगाई के दर इतने देंगे तो फिर आपके पैसों की खरीदने की क्षमता बढ़ नहीं पाएगी और आपको इस स्थिति में अपनी रिटायरमेंट को पोस्टपोन करना पड़ सकता है। या फिर किसी दूसरे वित्तीय लक्ष्य के लिए जो आपने पैसे जोड़े हैं उसका इस्तेमाल आपके नजदीकी वित्तीय लक्ष्यों के लिए शायद करमान लीजिए आपकी उम्र 30 साल की है।
आपके जो वित्तीय लक्ष्य हैं उनके लिए कितने पैसे आपको भविष्य में लगेंगे इसका आपको अंदाजा नहीं है। आपने इसके बारे में कभी सोचा नहीं है। मगर आप रेग्युलर सेविंग करते हैं तो मान लीजिए हर महीने आप 10 हजार रुपए फिक्स्ड डिपॉजिट में डालते हैं। आप फिक्स्ड डिपॉजिट पर 7 पर्सेंट का सालाना बेसिस पर इंटरेस्ट रेट मिलता है। आप 20 पर्सेंट के टैक्स ब्रैकेट में आते हैं तो आपके पोस्ट टैक्स रिटर्न्स बनेंगे 5.6 पर्सेंट के। आप अपने एफडी इनवेस्टमेंट में 10 पर्सेंट की हर साल बढ़ोतरी करते हैं। अब एफडी छोड़ के आपके पास दूसरे कोई ऐसेट नहीं हैं जो बाकी के एसेट आपके पास हैं वह हैं गोल्ड और रियल एस्टेट।
तो 18 साल के बाद मान लीजिए fd build करने के बाद आपके सामने एक लक्ष्य आ जाता है जहां पर आपकी बेटी पोस्ट ग्रैजुएशन के लिए फॉरेन जाना चाहती है। जहां पर जाने का खर्च 50 लाख रुपए तो ऐसे में आप क्या करते हैं। तो आप अपने एसेट्स की ओर देखते हैं। पहला है fd फिर गोल्ड और रियलिस्टिक। अब शगोल्ड 50 लाख रुपये का आपके पास ना हो तो जो भी गोल्ड है उसमें से कुछ रकम आपको मिल सकती है। रियल एस्टेट एक इतना बड़ा असेट है जिसे आप टुकड़ों में बेच नहीं सकते। आपको पूरा का पूरा बेचना होता है।
जनरली लोग रीयल एस्टेट बेचने में काफी विलक्षण होते हैं। रियल एस्टेट बेचकर वो अपने कई सारे goals को पूरे नहीं कअगर फिर भी मान लीजिए आप रियल एस्टेट को बेचने के लिए तैयार हो जाते हैं तो जब आपको तुरंत पैसों की जरूरत होती है ऐसी सिचुएशन में रियल एस्टेट के मामले में डिस्ट्रेस सेलिंग हो सकता है जहां पर अपनी अपेक्षा से कम आपको पैसे मिलने की संभावना होती है।
तो मान लीजिए यहां पर आप गोल्ड रियल एस्टेट को कंसीडर नहीं करते। एफडी में से अपनी बेटी का पोस्ट ग्रैजुएशन स्पांसर करते हैं। तो यहां पर 50 लाख रुपए निकाल लेने के बाद एफडी इसमें सिर्फ आपके साढ़े 13 लाख रुपए बच जाएंगे और इसके बाद बेटी का फॉरेन कंट्री में रहने का खर्च है, आपके बाकी के वित्तीय लक्ष्य है, जैसे कि आपकी बेटी की शादी आपका अपना रिटायमेंट इत्यादि। तो क्या गोल्ड और रियल एस्टेट में से यह सारा स्पांसर हो जाएगा। और आपके पास 12 साल हैं। इन सारे वित्तीय लक्ष्यों को पूरा करने के लिए।
मगर इसी सारी सिचुएशन में यदि आप FDs को ना चुनकर ELSS फंड्स को चुनते हैं जिन्होंने पिछले पांच सालों में लगभग ओन एंड एवरेज 19 पर्सेंट के रिटर्न सालाना बेसिस पर दिया है तो पोस्ट टैक्स यदि हम 18 पर्सेंट रिटर्न्स भी पकड़ के चलते हैं तो आपकी जमा राशि होती 2 करोड़ 32 लाख रुपए। जिसमें से आसानी से आपके बेटी का पोस्ट ग्रैजुएशन स्पांसर हो सकता था। और आपके हाथ में और 12 साल होते अपने बाकी के वित्तीय लक्ष्य पूरे करने के लिए।
इसीलिए जब आप कमा रहे हों ये बहुत जरूरी है कि आपके पैसे आपसे भी ज्यादा मेहनत करें और इसी लिए एक सही साधन चुनना जरूरी है। तो अपने लंबे समय के वित्तीय लक्ष्यों के लिए पैसे जमा करते समय इन्वेस्टमेंट इंस्ट्रूमेंट्स का इस्तेमाल करें क्योंकि ये काफी इफेक्टिव होते हैं Inflation को हैंडल करने में। अपने कम समय के लंबे समय के वित्तीय लक्ष्यों को लिखें और भविष्य में कितने पैसे आपको इन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए चाहिए इसका अंदाजा लें।
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