‘अनोखा सफर’ – एक अद्भुत यात्रा (कहानी) – नवीन धनवर

TELEGRAM
0/5 No votes

Report this Book

Description

शेषनाग धारा

ट्रेन तेज रफ्तार से चल रही थी, जबकि मैं स्टेशन में उसे पकड़ने के लिए तैयार खड़ा था। ट्रेन तेजी से स्टेशन के पास आ रही थी और उसके साथ ही मेरी दिल की धड़कन भी लय बद्ध हो कर धड़क रही थी। ट्रेन स्टेशन से होकर जाने लगी लेकिन स्टॉपेज ना होने के कारण वह वहां रुकने वाली नहीं थी। मुझे उसे दौड़ कर ही पकड़ना था।

मैं तेजी से दौड़ कर उसके एक गेट पर लटक गया और उसके बाद कुछ प्रयास कर ट्रेन में चढ गया। ये एक स्लीपर क्लास बोगी था। वहां पर मौजूद सभी यात्री मुझे अजीब निगाहों से देख रहे थे। मुझे एक खाली शीट मिल गई। कुछ देर मैं उसी शीट पर लेट भी गया। जब आंखें खुली तो मैंने वहां पर कुछ नये लोगों को देखा। उनमें से दो आदमी थे और एक औरत।

वे तीनों एक ही परिवार के होने का दिखावा कर रहे थे, मगर मैं उन्हें देख कर ही बता सकता था कि वे लोग एक परिवार के नहीं हैं। मुझे उन पर शक हुआ। मैं उठा और गेट के पास चला गया।

शाम हो चली थी। बाहर बहुत ही हरियाली थी। मैंने देखा कोई स्टेशन आ गया है। ट्रेन अपनी रफ्तार से चली ही जा रही है। उस स्टेशन से एक लड़की दौड़ते हुए जनरल डिब्बे में चढ गई। मुझ में कुछ क्यूरियोसिटी उत्पन्न हुई। मैं बिना कुछ सोचे समझे दौड़ कर ट्रेन से उतरा और फिर दौड़ते हुए जनरल डिब्बे में चढ गया।

यहां स्लीपर के मुकाबले बहुत कम लोग थे। मैं उसी लड़की को ढूंढने लगा। वह लड़की सबसे पीछे बैठी थी, जहां पर कुछ दूर, कुछ अजीब से लोग थे। सब के सब भगवा वस्त्र और माला पहने थे, लेकिन उन्होंने देख कर नहीं लगता था कि वे लोग कोई बाबा थे।

उन लोगों और उस लड़की के बीच के क्षेत्र में कई शीट खाली थी, जहां पर मैं बैठ गया। उस लड़की के बैग के पीछे एक अजीब सी वस्तु बंधी थी, जिसे देख कर मैं उसके बारे में जानने को बेताब हो गया था। मैं अपने मोबाइल में इंटरनेट के जरिए आस पास के लोगों के मोबाइल की जानकारी चुराना चाहता था इसलिए अपना हॉट स्पॉट ऑन कर दिया। मुझे बाद में पता चला कि उन में से किसी के पास भी स्मार्ट फोन नहीं है। उनके पास केवल कीपैड वाला फोन था। अब मुझे और भी अजीब लग रहा था।

मैंने देखा एक वाईफाई कनेक्ट है। ये उस लड़की ने किया था। मैंने सोचा चलो इसकी ही कुछ इंफॉर्मेशन चुराया जाए। मैंने उसके इनकॉडेड सिस्टम से एक मैप अपने सिस्टम में कॉपी कर लिया।

बड़ी अजीब बात थी, एक मैप के लिए इनकोडिंग की गई थी।

शुरू से अब तक मुझे जितने भी लोग मिले सब अजीब थे। मैंने उसके मैप को टॉयलेट में जाकर देखा। उस मैप में नदियों, समुद्रों या कहें तो पूरे जल तंत्र का नक्शा था। उसमें किसी एक खास जल तंत्र को चमकीली रेखा से दर्शाया गया था और साथ ही जगह जगह पर क्रॉस का निशान था। मैंने मैप बंद किया और टॉयलेट से बाहर निकला ही था कि वह लड़की मुझे बाहर खड़ी मिली।

उसने मेरी तरफ देखते हुए बोला – “किसी ने कुछ देर पहले मेरे सिस्टम में हांथ साफ किया है, और मुझे नहीं लगता कि तुम्हारे सिवा यहां पर कोई इतना काबिल होगा।” मैं इन बातों को सुन कर चौंक गया। उसने अचानक मुझे धकेल कर टॉयलेट के अंदर कर दिया और खुद भी अंदर आ कर गेट अंदर से बंद कर दिया। उसने कहा कि तुमने टॉप सीक्रेट फाइल को एक एजेंट के सिस्टम से कॉपी किया है, अब तुम मेरी मदद करो या मरने के लिए तैयार हो जाओ।

मैं बहुत गुस्सा हो गया और कहा कि गलती तुम्हारी है किसी भी अनजान वाईफाई से कनेक्ट ही क्यों किया मोबाइल को, अब मुझे मारने की धमकी दे रही हो।

फिर उसने कहा मैं तुम्हें नहीं मारने वाली, इस डब्बे में जो लोग हैं वो भी उसी चीज के पीछे पड़े हैं जिसको ढूंढने का मेरा मिसन है, उन लोगों को मुझ पर शक है। अब जब मैं तुम्हारे साथ हूं तो वे लोग मेरे साथ तुम्हें भी मार देंगे।

मैंने उससे कहा आखिर किस चीज की तुम बात कर रही हो। उसने कहा मैं तुम्हें अभी कुछ नहीं बता सकती, बस उस मैप को किसी के हांथ में पड़ने मत देना और मुझे यहां से बच कर निकलने में मदद करो।

हम सही सलामत तो निकल गए लेकिन मैं तमिलनाडु नहीं जा पाया। अब हम जंगल में पैदल चल रहे थे। उसने मुझे बताया कि ये मैप जिसे तुमने देखा होगा, ये शेषनाग धारा को दिखाता है। बारह हजार साल में एक बार शेषनाग धारा में कुछ अजीब घटना होती है, जिसके कारण वहां पर कुछ खास वस्तु प्रकट होती है।

मेरी समझ में कुछ नहीं आ रहा था और मैं इन बातों को बेवकूफी समझ रहा था। लेकिन इतने सारे मूर्ख इन बेकार सी बातों के पीछे पड़ जाएंगे इसका मुझे यकीन नहीं हुआ। उसकी सीरियस आंखों को देख कर मैंने पूछा वह वस्तु क्या है? उसने कहा मुझे पक्का कुछ नहीं पता, लेकिन सबकी अलग अलग थियोरी है। कोई उसे अमृत कलश कहता है, कोई सबसे शक्तिशाली अस्त्र, तो कोई सबसे बड़ा खज़ाना।

मैंने फिर उससे पूछ कि तुम इसे क्यों खोजना चाहती हो? तब उसने कहा कि पांच साल पहले नालंदा विश्वविद्यालय की लाइब्रेरी वाले खंडहर के पास खुदाई में एक बक्सा मिला था। जिसमें कई तांबे के पन्ने थे और साथ में कुछ अजीब से अवशेष भी। उनकी जांच से पता चला कि वे अवशेष कोई बहुत पुराने दस्तावेज थे जो नष्ट हो चुके हैं और शायद उन ताम्र पत्र में उसी के अनुवाद थे। कुछ शोधकर्ता ने उन पर शोध करके ये पूरी बात कही। उनमें से कुछ पत्र पढ़े नहीं जा सके। पता नहीं कैसे ये बात बाहरी लोगों को भी पता थी। वो वस्तु जो भी हो उसे सरकार ने किसी गलत हांथों में जाने से रोकने के लिए एक गुप्त अभियान चलाया था, जो कि अभी भी चल रहा है।

कुछ देर में कुछ लोगों ने हमें पिक कर लिया। वो दो लड़के और दो लड़कियां थी। उसमें से एक ने मेरे साथ वाली लड़की से कहा ये कौन है? उसने जवाब दिया – इसने मेरी जान बचाई है। ये भी उस रहस्य के बारे में जानता है। उसने मेरी तरफ देख कर कहा – इसे इसके दादाजी ने बताया था।

मैं समझ गया इसने उन लोगों से झूट क्यों बोला। मैं चुप ही रहा। मैंने उस लड़की से पूछा हम कहां जा रहे हैं। उसने कहा तुम मुझे मानसी कह सकते हो, हम पूरे शेषनाग धारा को ट्रेस कर रहे हैं।

मैं चौंक गया और बोला अब पूरा विश्व घूमना पड़ेगा। तब उसने कहा कि हमने पहले ही विदेश यात्रा कर ली है बस भारत भ्रमण ही करना बाकी है। यह कह कर वह मुस्कुरा दी।

हम काशी में थे। वहां पर बहुत से जगहों में सर्च अभियान चलाया लेकिन कुछ हांथ नहीं लगा। मानसी ने बाकियों से कहा मैंने कुछ रिसर्च किया है और मेरी समझ में तो यही आया है कि उस पत्र में तो बारह हजार साल में एक बार इस घटना का होना बताया है लेकिन शायद इस बारह हजारवें साल में किसी एक दिन वह होगा और शायद कुछ समय के लिए रहेगा ना की एक बार घटित होने के बाद एक साल तक रहे।

हमने टीम बांट दिया। कैलाश और शिखा उत्तर भारत में, इन्द्र और सुलेखा मध्यभारत में, और मानसी और मैं दक्षिण भारत में। मुझे इन सब में पड़ने की जरूरत नहीं थी फिर भी सोचा कुछ खजाना ही मिल जाएगी तो अच्छे से जिंदगी कटेगी।

हम दक्षिण भारत के समुद्री तट की ओर बढ़ रहे थे और मैं डार्क और डीप वेब में इस शेषनाग धारा से जोड़ने वाले लिंक ढूंढ़ रहा था। मुझे कुछ मिला। ये एक मेसेज था, जो कि डीप वेब में एक अनजान आईडी से दूसरी अनजान आईडी में भेजा गया था। इसमें कुंभ मेले में विस्फोट की बात कही गई थी। मैंने तुरंत ये बात मानसी को बताई, उसने कंट्रोल रूम में इसकी सूचना दी और बाद में मुझसे कहा। डीप वेब में सर्फिंग करना इल्लीगल है मैं तुम्हें अरेस्ट भी कर सकती हूं। मैं कुछ नहीं बोला चुपचाप ही बैठा रहा। उसने गाड़ी बायी तरफ मोड़ी और मेरी तरह देखते हुए मुझे शुक्रिया कहा।

हम समुद्र तट पर थे। आगे एक छोटा सा जमीन दिखा जो कि समुद्र में होते हुए भी पानी से अछूता था। पानी कम गहरा होने के कारण केवल घुटनों तक भीगते हुए हम वहां पहुंचे। हम वहां कुछ मिलने कि उम्मीद से घूमने लगे। मेरे दिमाग में एक ख्याल आया। मैंने मानसी से कहा कुंभ कब है। उसने कहा आज ही है। मैंने उसे बताया शायद कुंभ जिस समय में शुरू होता है वही समय और कुंभ होने के स्थान यानी संगम में वह बेकार सी घटना होगी जिसके पीछे सब मूर्ख पड़े हैं। उसने मुझे घूरते हुए देखा, तब मैंने कहा – बस तुम ही एक समझदार मिली हो मुझे, मैं मूर्ख तो बाकियों को कह रहा हूं।

मानसी ने कहा तुम भी बहुत बड़े मूर्ख हो ये बात अभी बता रहे हो। कुंभ का समय तीन घंटे में होगा। मैंने कहा तुम समझदार तो हो लेकिन भुलक्कड़ भी हो। कुंभ वाले स्थान के पास अभी इन्द्र और सुलेखा होंगे।

मानसी ने सुलेखा को फोन किया तब उसने कहा यहां पर तो पहले से ही दुनिया भर के सौ से ज्यादा खजाना चोर घात लगाए बैठे हैं, लेकिन हम कुछ नहीं कर सकते, वर्ना हमारी असलियत उन्हें पता लग जाएगी।

कुछ देर में वहां पानी अजीब तरह से बढ़ने लगा जिसे देख कर मुझे डर लगने लगा था। मैं पानी को छूना भी नहीं चाहता था। मेरे द्वारा पानी में ना जाने की वजह से मानसी भी मेरे साथ रुकी रही जबकि वह तैर सकती थी। किसी का फोन भी नहीं लग रहा था। वहां पर मानसी की एक सहेली इंजन वाली बोट लेकर पहुंची, वह वही औरत के साथ थी जो मुझे स्लीपर कोच में दो आदमियों के साथ दिखी थी।

हम तट में उतरे और उससे दूर जाने लगे, जबकि वह ट्रेन वाली औरत बोट लेकर वहां से चली गई।

मानसी और उसकी सहेली को मैंने कहा तुम्हारा काम हो गया अब मुझे मेरी मंजिल की ओर जाने दो। उसने मेरा प्रस्ताव ठुकरा दिया। उसने कहा जब तक वह कथित खजाना सरकार के पास नहीं पहुंच जाता मैं तुम्हारे पीछे ही पड़ी रहुंगी।

हम हम्पी के पास थे, वहां से कुछ दूर जाने पर हमें एक बड़ा तालाब मिला। मैं यहीं आने के लिए तमिलनाडु जा रहा था, ताकि वहां से यहां आ सकूं।

कुंभ योग लगने में बीस मिनट बाकी थे। मानसी अपनी सहेली प्रिया से संगम में होने वाली विशेष घटना को ना देख पाने असमर्थता जाहिर कर रही थी। और मैं उस मैप को देख रहा था। मैंने मानसी से कहा कि मैं अगर गलत नहीं हूं तो ये जितने भी क्रॉस इस मैप में हैं ये दो जल धारा के मिलने की बात बताते हैं, है ना। उसने हामी भरी और पूछा तुम यहां क्यों आना चाहते थे, तब मैंने कहा यह तालाब जो तुम देख रही हो यह पहले समुद्र से जुड़ा था। अभी भी इसके नीचे एक सुरंगनुमा रास्ता है उससे यह त्रिवेणी से जुड़ा है। इसलिए यहां का पानी पवित्र माना जाता है और यहां पर राजा कृष्णदेव राय स्नान किया करते थे।

बातों ही बातों में हम तीनों की दिमाग की बत्ती जली। प्रिया ने हर जगह कैमरा सेट किया। मानसी ने वहां के पानी को एक ट्यूब से जोड़ा और परीक्षण करने लगी और उसने मुझे एक हीट ऑब्जर्वेशन कैमरा जैसा कुछ दिया, जिससे में एक पेड़ पर चढ़ कर उस विशाल तालाब का निरीक्षण करने लगा।

कुंभ योग लग गया था। हम तीनों की सांसें और दिल की धड़कन बढ़ गई थी। मेरे गैजेट में कुछ आकृति बनने लगी उसने कुछ हीट वाली गतिशील वस्तु को डिटेक्ट किया था। हमने पानी कि सतह से कुछ नीचे एक विशाल सांप को देखा। ये  जरूर शेषनाग होगा, मगर इसका केवल एक ही सिर था। वह बहुत विशाल और चमकीले रंग का सांप हमें पानी के अंदर तैरते हुए साफ साफ दिख रहा था। उस समय हम तीनों के अलावा वहां कोई भी नहीं था। हम केवल उसे निहारे जा रहे थे। प्रिया ने कहा देखो वह कुछ उगल रहा है।

उसने एक बड़ा चमकने वाले वस्तु को उगला था और वहां पर कुंडली मार कर सो गया था। तालाब भले ही बहुत बड़ा था लेकिन ज्यादा गहरा नहीं था। हम अपने गैजेट्स से जब ये पता लगाने लगे कि वह चमकीली चीज क्या है तो पता चला कि वह एक शिवलिंग है। मानसी और प्रिया उसे लेने के लिए प्लान तैयार करने लगे लेकिन मैंने उन्हें ऐसा ना करने को कहा। इसमें कुछ अलग बात थी, अगर यह शिवलिंग किसी गलत हांथो में पड़ गया तो कुछ भी हो सकता है।

कुछ देर बाद वह सांप शिवलिंग को निगल गया और दो तीन चक्कर लगा कर कहीं चला गया। मानसी ने रिकॉर्ड किए हुए फुटेज को किसी “कोड नेम पास्कल” को भेजा और इसका रिपोर्ट बनाने के लिए प्रिया को कहा।

हम दो दिन बाद वहां से प्रयागराज चले गए जहां पर मानसी अपने साथियों से मिली। मैं अब अपने घर लौटने के लिए तैयार था। मानसी ने कहा रुको हम दोनों साथ में चलेंगे।

हम अपनी मंज़िल में पहुंच चुके थे। मानसी अपने घर जाने के लिए ट्रेन में बैठी थी और मैं स्टेशन में खड़ा उससे बातें कर रहा था। ट्रेन का सिग्नल हो चुका था, ट्रेन धीरे धीरे आगे चल पड़ी थी। मैंने और मानसी ने एक दूसरे को अलविदा कहा।

मैं दौड़ते हुए उसकी खिड़की के पास गया और उससे पूछा जब मैंने तुम्हें पहली बार देखा था तो तुम्हारे बैग में कुछ बंधा हुआ था वह क्या था। मानसी ने धीरे से कहा वह एक खजाने के बारे में सुराग था। मैं यह सुना और बोला तुम उसे ही ढूंढने जा रही हो ना। उसने हामी भरी और कहा मैंने दो टिकट्स लिए हैं। यह सुनते ही मैं लपक कर ट्रेन में चढ गया। मेरा और मानसी का दूसरा सफर शुरू हो चुका था।

Pages: 1 2 3

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *