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बेटी का धन / Beti Ka Dhan Hindi Book PDF Download

बेटी का धन / Beti Ka Dhan Hindi Book PDF Download
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Name  बेटी का धन / Beti Ka Dhan Hindi Book PDF Download
Author  Invalid post terms ID.
Size   1.3 MB
Pages  79
Category  Magazines, Stories
Language  Hindi
Download Link  Working


‘बेटी का धन’ हिंदी के प्रसिद्ध लेखक ‘मुंशी प्रेमचंद’ द्वारा लिखी एक प्रसिद्ध कहानी है। ग्रामीण परिवेश का खूबसूरत चित्रण और उस समय की भारत देश की परिस्थितियां कहानी को अत्यधिक रोचक बनाते जाते है.

 

Summary of book बेटी का धन / Beti Ka Dhan Hindi Book PDF Download


बेटी का धन
बेतवा नदी दो ऊंचे कगारों के बीच इस तरह मुंह छिपाये हुए थी जैसे निर्मल हृदयों में साहस और उत्साह की मध्यम ज्योति छिपी रहती है। इसके एक कगार पर एक छोटा-सा गांव बसा है जो अपने भग्न जातीय चिन्हों के लिए बहुत ही प्रसिद्ध है। जातीय गाथाओं और चिन्हों पर मर मिटने वाले लोग इस भावन स्थान पर बड़े प्रेम और श्रद्धा के साथ आते और गांव का बूढ़ा केवट सुक्खू चौधरी उन्हें उसकी परिक्रमा कराता और रानी के महल, राजा का दरबार और कुंवर के बैठक के मिटे हुए चिन्हों को दिखाता। वह एक उच्छवास लेकर रुंथे हुए गले से कहता, महाश्य! एक वह समय था कि केवटों को मछलियों के इनाम में अशर्फियां मिलती थीं। कहार महल में झाडू देते हुए अशर्फियां बटोर ले जाते थे। बेतवा नदी रोज चढ़ कर महाराज के चरण छूने आती थी। यह प्रताप और यह तेज था, परन्तु आज इसकी यह दशा है। इन सुन्दर उक्तियों पर किसी का विश्वास जमाना चौधरी के वश की बात न थी, पर सुनने वाले उसकी सहृदयता तथा अनुराग के जरूर कायल हो जाते थे।
सुक्खू चौधरी उदार पुरुष थे, परन्तु जितना बड़ा मुंह था, उतना बड़ा ग्रास न था। तीन लड़के, तीन बहुएं और कई पौत्र पौत्रियां थीं। लड़की केवल एक गंगाजली थी जिसका अभी तक गौना नहीं हुआ था। चौधरी की यह सबसे पिछली संतान थी। स्त्री के मर जाने पर उसने इसको बकरी का दूध पिला पिला कर पाता था। परिवार में खाने वाले तो इतने थे, पर खेती सिर्फ एक हल की होती ती थी। ज्यों-त्यों कर निर्वाह होता था। परन्तु सुक्खू की वृद्धावस्था [और पुरातत्वज्ञान ने उसे गांव में वह मान और प्रतिष्ठा प्रदान कर रक्खी थी। जिसे देख कर झगडू साहू भीतर ही भीतर जलते थे। सुक्खू जब गांव वालों के समक्ष, हाकिमों से हाथ फेंक-फेंक कर बातें करने लगता और खंडहरों को घुमा-फिरा कर दिखाने लगता था तो झगडू साहू-जो चपरासियों के धक्के खाने के डर से करीब नहीं फटकते थे-तड़प-तड़प कर रह जाते थे। अतः वे सदा उस शुभ अवसर की प्रतीक्षा करते रहते थे, जब सुक्खू पर अपने धन द्वारा प्रभुत्व जमा सकें।

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