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‘कहाँ पर?’ मैंने हाँफते हुए पूछा।
इंटरव्यू शुरू होने में दो मिनट का वक्त बाकी था और मुझे अपना रूम नहीं मिल रहा था। सेंट स्टीफेंस कॉलेज के भूलभुलैयानुमा गलियारों में भटकते हुए मुझे जो मिलता, मैं उसी से रास्ता पूछने लगता।
बहुत-से स्टूडेंट्स ने मुझे इग्नोर कर दिया। कुछ तो मुझे देखकर खी-खी कर हँसने लगे।
पता नहीं क्यों।
वेल, अब मुझे पता चला क्यों गेरा लहजा। साल 2004 में मेरी इंग्लिश बिहारीनुगा हुआ करती थी। उसे इंग्लिश नहीं कहा जा सकता था। वह तो नब्बे फीसदी बिहारी-हिंदी मिक्स थी, जिसमें दस फीसदी खराब इंग्लिश मिक्स कर दी गई थी। मिसाल के तौर पर, मैं इन शब्दों में
अपने रूम का पता पूछ रहा था : ‘कम्टी रूम… बतलाइएगा जरा? हमारा इंटरव्यू है ना वहाँ… मेराखेल का कोटा है… किस तरफ है?
‘व्हेयर यू फ्रॉम, मैन?’ एक लड़के ने पूछा, जिसके बाल बहुतेरी लड़कियों से भी लंबे होंगे।
‘मी माधव झा फ्रॉम सिमराँव बिहार’
उसके दोस्त हँस पड़े। यह तो मुझे बाद में पता चला कि लोग अकसर इस तरह के प्रश्न पूछते हैं, जिन्हें वे रिटरिकल क्वेश्चन’ कहते हैं यानी एक ऐसा सवाल, जिसे वे महज कुछ साबित करने
के लिए पूछते हैं, कोई जवाब पाने के लिए नहीं। यहाँ, उसके इस सवाल का मतलब यह साबित करना था कि मैं उन लोगों के बीच एलियन था।
‘तुम किस चीज के लिए इंटरव्यू देने आए हो? पियून के लिए?’ लंबे बालों वाले लड़के ने कहा और हँस दिया।
मुझे तब इतनी इंग्लिश भी नहीं आती थी कि मैं उसकी इस बात को समझकर उसका बुरा मान सकूँ। फिर मैं जल्दी में भी था। ‘आपको पता है रूम कहाँ है?’ मैंने उसके दोस्तों की ओर एक….