जीवनी
जीवनी किसी शायर के शेर लिखने के ढंग आपने बहुत सुने होंगे। उदाहरणतः, ‘इक़बाल’ के बारे में सुना होगा कि वे फ़र्शी हुक़्क़ा भरकर पलंग पर लेट जाते थे और अपने मुंशी को शेर डिक्टेट (लिखाना) कराना शुरू कर देते थे। ‘जोश’ मलीहाबादी सुबह-सवेरे लम्बी सैर को निकल जाते हैं और यों प्राकृतिक दृश्यों से लिखने की प्रेरणा प्राप्त करते हैं। लिखते समय बेतहाशा सिगरेट फूँकने, चाय की केतली गर्म रखने और लिखने के साथ-साथ चाय की चुस्कियाँ लेने के बाद (यहाँ तक कि कुछ शायरों के सम्बन्ध में यह भी सुना होगा कि उनके दिमाग़ की गिरहें शराब के कई पैग पीने के बाद) खुलनी शुरू होती हैं। लेकिन यह अन्दाज़ शायद ही आपने सुना हो कि शायर शे’र लिखने का मूड लाने के लिए सुबह चार बजे उठकर बदन पर तेल की मालिश करता हो और फिर ताबड़तोड़ डंड पेलने के बाद लिखने की मेज़ पर बैठता हो। यदि आपने नहीं सुना तो सूचनार्थ निवेदन है कि यह शायर ‘क़तील’ शिफ़ाई है।
‘क़तील’ शिफ़ाई के शे’र लिखने के इस अन्दाज़ को और उसके लिखे शे’रों को देखकर आश्चर्य होता है कि इस तरह लंगर-लँगोट कसकर लिखे गए शे’रों में कैसे झरनों का-सा संगीत, फूलों की-सी महक और उर्दू की परम्परागत शायरी के महबूब की कमर-जैसी लचक मिलती है। अर्थात् ऐसे वक़्त में जबकि उसके कमरे से ख़म ठोकने और पैंतरे बदलने की आवाज़ आनी चाहिए, वहाँ के वातावरण में कुछ ऐसी गुनगुनाहट बसी होती है :
चौधवीं रात के चाँद की चाँदनी खेतियों पर हमेशा बिखरती रहे
ऊँघते रहगुज़ारों पे फैले हुए हर उजाले की रंगत निखरती रहे
नर्म ख़्वाबों की गंगा बिफरती रहे
या
रात भर बूँदियाँ रक़्स करती रहीं,
भीगी मौसीक़ियों ने सवेरा किया
या
सोई सोई फ़ज़ा आँख मलने लगी,
सेली-सेली हवाओं के पर तुल गए
और इसके साथ यदि आपको यह भी मालूम हो जाए कि ‘क़तील’ शिफ़ाई जाति का पठान है और एक समय तक गेंद-बल्ले, रैकट, लुंगियाँ और कुल्ले बेचता रहा है, चुँगीख़ाने में मुहर्रिरी और बस-कम्पनियों में बुकिंग-क्लर्की करता रहा है तो उसके शे’रों के लोच-लचक को देखकर आप अवश्य कुछ देर के लिए सोचने पर विवश हो जायेंगे। इस पर यदि कभी आपको उसे देखने का अवसर मिल जाए और आपको पहले से मालूम न हो कि वह ‘क़तील’ शिफ़ाई है, तो आज भी आपको वह शायर की अपेक्षा एक ऐसा क्लर्क नज़र आएगा जिसकी सौ-सवा सौ की तनख्वाह के पीछे आधा दर्जन बच्चे जीने का सहारा ढूँढ़ रहे हों। उसका क़द मौज़ूँ है, नैन-नक़्श मौज़ूँ हैं। बाल काले और घुँघराले हैं। गोल चेहरे पर तीखी मूँछें और चमकीली आँखें हैं और वह हमेशा ‘टाई’ या ‘बो’ लगाने का आदी है। फिर भी न जाने क्यों पहली नज़र में वह ऐसा ठेठ पंजाबी नज़र आता है जो अभी-अभी लस्सी के कुहनी-भर लम्बे दो गिलास पीकर डकार लेने के बारे में सोच रहा हो।
पहली नज़र में वह जो भी नज़र आता हो, दो-चार नज़रों या मुलाक़ातों के बाद बड़ी सुन्दर वास्तविकता खुलती है—कि वह डकार लेने के बारे में नहीं, अपनी किसी प्रेमिका के बारे में सोच रहा होता है—उस प्रेमिका के बारे में जो उसे विरह की आग में जलता छोड़ गई, या उस प्रेमिका के बारे में जिसे इन दिनों वह पूजा की सीमा तक प्रेम करता है। प्रेम और पूजा की सीमा तक प्रेम उसने अपनी हर प्रेमिका से किया है और उसकी हर प्रेमिका ने वरदान-स्वरूप उसकी शायरी में निखार और माधुर्य पैदा किया है, जैसे ‘चन्द्रकान्ता’ नाम की एक फ़िल्म ऐक्ट्रेस ने किया है जिससे उसका प्रेम केवल डेढ़ वर्ष तक चल सका और जिसका अन्त बिलकुल नाटकीय और शायर के लिए अत्यन्त दुखदायी सिद्ध हुआ। लेकिन ‘क़तील’ के कथनानुसार :
यदि यह घटना न घटी होती तो शायद अब तक मैं वही परम्परागत ग़ज़लें लिख रहा होता, जिनमें यथार्थ की अपेक्षा बनावट और फ़ैशन होता है। इस घटना ने मुझे यथार्थवाद के मार्ग पर डाल दिया और मैंने व्यक्तिगत घटना को सांसारिक रंग में ढालने का प्रयत्न किया। अतएव उसके बाद जो कुछ भी मैंने लिखा है वह कल्पित कम और वास्तविक अधिक है।
चन्द्रकान्ता से प्रेम और विछोह से पहले ‘क़तील’ शिफ़ाई आर्तनाद क़िस्म की परम्परागत शायरी करता था और ‘शिफ़ा’ कानपुरी नाम के एक शायर से अपने कलाम पर इस्लाह लेता था (इसी सम्बन्ध से वह अपने को ‘शिफ़ाई’ लिखता है)। फिर उसने अहमद नदीम क़ासमी से मैत्रीपूर्ण परामर्श लिये। लेकिन किसी की इस्लाह या परामर्श तब तक किसी शायर के लिए हितकर सिद्ध नहीं हो सकते जब तक कि स्वयं शायर के जीवन में कोई प्रेरक वस्तु न हो। लगन और क्षमता का अपना अलग स्थान है, लेकिन इस दिशा की समस्त क्षमताएँ मौलिक रूप से उस प्रेरणा ही के वशीभूत होती हैं, जिसे ‘मनोवृत्तान्त’ का नाम दिया जा सकता है। चन्द्रकान्ता उसे छोड़ गई लेकिन उर्दू शायरी को एक सुन्दर विषय और उस विषय के साथ पूरा-पूरा न्याय करने वाला शायर ‘क़तील’ शिफ़ाई दे गई। अपने व्यक्तिगत ग़म और गुस्से के बावजूद जब ‘क़तील’ ने चन्द्रकान्ता को अपना काव्य-विषय बनाया—एक ऐसी नारी को जो अपना पवित्र नारीत्व खो चुकी थी और खो रही थी—तो न केवल उसने सामाजिक विवशताओं को स्थगित नहीं किया बल्कि एक सच्चे कलाकार की तरह यह खटक भी शामिल कर दी कि वह नारी इस भाव या अनुभव से वंचित नहीं कि जो कुछ वह कर रही है, अच्छा नहीं है। * अच्छा क्या है—मुहब्बत की नाकामी ने ‘क़तील’ को इस सर्वव्यापी प्रश्न पर सोचने की प्रेरणा दी। समय, अनुभव और साहित्य की प्रगतिशील धारा से सम्बन्धित होने के बाद जिस परिणाम पर वह पहुँचा, उसकी आज की शायरी उसी की प्रतीक है। उसकी आज की शायरी समय के साज़ पर एक सुरीला राग है—वह राग जिसमें प्रेम-पीड़ा, वंचना की कसक और क्रान्ति की पुकार, सभी कुछ विद्यमान है। उसकी आज की शायरी समाज, धर्म और राज्य के सुनहले कलशों पर मानवीय-बन्धुत्व के गायक का व्यंग्य है।
पंजाब के इस अलबेले गायक का जन्म 24 दिसम्बर, 1919 में तहसील हरीपुर ज़िला हज़ारा (पाकिस्तान) में हुआ। प्रारम्भिक शिक्षा इस्लामिया मिडिल स्कूल, रावलपिंडी, में प्राप्त की, उसके बाद गवर्नमेंट हाई स्कूल में दाखिल हुआ, लेकिन पिता के देहान्त और कोई अभिभावक न होने के कारण शिक्षा जारी न रह सकी और पिता की छोड़ी हुई पूँजी समाप्त होते ही उसे तरह-तरह के व्यापार और नौकरियाँ करनी पड़ीं। साहित्य की ओर ध्यान इस तरह हुआ कि क्लासिकल साहित्य में पिता की बहुत रुचि थी और ‘क़तील’ के कथनानुसार, “उन्होंने शुरू में मुझे कुछ पुस्तकें लाकर दीं जिनमें ‘क़िस्सा चहार दरवेश’, ‘क़िस्सा हातिमताई’ आदि भी थीं। मैं अक्सर उन्हें पढ़ता रहता था जिससे मुझे भी लिखने का शौक़ हुआ। अतएव प्रारम्भ में मैंने कहानियाँ लिखनी शुरू कीं, लेकिन कहानियों में कठिनाई यह थी कि मुझे उन्हें नक़ल करते समय बड़ा कष्ट होता था। मैंने कहानियाँ लिखनी छोड़ दीं और नज़्में लिखने की कोशिश की। सबसे पहले पाठशाला के दिनों में मैंने एक नाअ़त (मुहम्मद साहिब की छन्दोबद्ध प्रशंसा) लिखी जिस पर मुझे काफ़ी प्रोत्साहन मिला और मैंने बाक़ायदा नज़्में लिखनी शुरू कर दीं। उन्हीं दिनों पिता का देहान्त हो गया। फिर ताऊ चल बसे और एक वर्ष भी नहीं गुज़रा था कि फूफी भी उठ गईं। इन घटनाओं का मुझ पर गहरा असर हुआ और मैं बेहद भावुक हो गया। जब तक हरीपुर में रहा, परम्परागत क़िस्म की शायरी से जी बहलाता रहा लेकिन जब रावलपिंडी में आया तो साहित्य की नई धारा, जिसे प्रगतिशील धारा कहा जाता है, के अनुकरण में शैली के नए-नए प्रयोग किए। यहीं अहमद नदीम क़ासमी से मेरा पत्र-व्यवहार प्रारम्भ हुआ और कविता-सम्बन्धी उनके परामर्शों ने मेरी बड़ी सहायता की, और जब जनवरी 1947 में मैं लाहौर आया (प्रसिद्ध मासिक पत्रिका ‘अदबे-लतीफ़’ के सम्पादक की हैसियत से) तो मैंने वास्तविक अर्थों में कुछ नई चीज़ें दीं और यों शायर के रूप में बाक़ायदा तौर पर मेरा परिचय हुआ।”
और फिर चन्द्रकान्ता के प्रेम और विछोह के बाद उस पर यह नया भेद खुला कि काव्य की परम्पराओं से पूरी जानकारी रखने, शैली में वृद्धि करने तथा नए विचार और नए शब्द देने के साथ-साथ केवल वही शायरी अधिक अपील कर सकती है जिसमें शायर का व्यक्तित्व या ‘मनोवृत्तान्त’ (जो अनिवार्य रूप से बाह्य परिस्थितियों से जन्म लेता और बनता है) विद्यमान हों।
इस प्रकार हम देखते हैं कि दूसरे महायुद्ध के बाद नई पीढ़ी के जो शायर बड़ी तेज़ी से उभरे और जिन्होंने उर्दू की ‘रोती-बिसूरती’ शायरी के सिर में अन्तिम कील ठोंकने, विश्व की प्रत्येक वस्तु को सामाजिक पृष्ठभूमि में देखने और उर्दू शायरी की नई डगर को अधिक-से-अधिक साफ़, सुन्दर, प्रकाशमान बनाने में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, उनमें ‘क़तील’ शिफ़ाई का विशेष स्थान है। बल्कि संगीतधर्मी छंदों के चुनाव, चुस्त सम्मिश्रण और गुनगुनाते शब्दों के प्रयोग के कारण उसे शायरों के दल में से तुरन्त पहचाना जा सकता है।
मर्हूम शायर ‘क़तील’ शिफ़ाई की कुल प्रकाशित कृतियों की संख्या 14 है, जिनके नाम इस प्रकार हैं : हरियाली, गजर, जलतरंग, रौज़न, झूमर, मुतरिबा, छतनार, गुफ़्तगू, पैराहन, आमोख़्ता, अबाबील, बरगद, घुंघरू तथा समंदर में सीढ़ी। उनकी चुनिंदा शायरी का यह संकलन इन्हीं की सहायता से बनाया गया है।
—प्रकाश पंडित
* इस विषय पर लिखी गई ‘शम्मअ-ए-अंजुमन’, ‘रास्ते का फूल’, ‘एल्बम’ आदि कुछ नज़्में इस संकलन में शामिल हैं। यहाँ भी ‘ऐक्ट्रेस’ नामक एक नज़्म के तेवर देखिए:
थरथराती रही चिराग की लौ अश्क पलकों पे काँप-काँप गए
कोई आँसू न बन सका तारा शब के साये नज़र को ढाँप गए
कट गया वक़्त मुस्कराहट में क़हक़हे रूह को पसन्द न थे
वो भी आँखें चुरा गए आख़िर दिल के दरवाज़े जिन पे बन्द न थे
सौंप जाता है मुझको तनहाई
जिस पे दिल एतबार करता है
बनती जाती हूँ नख्ले-सहराई 1
तूने चाहा तो मैंने मान लिया घर को बाज़ार कर दिया मैंने
बेचकर अपनी एक-एक उमंग तुझको ज़रदार 2 कर दिया मैंने
अपनी बेचारगी पे रो-रोकर दिल तुझे याद करता रहता है
कुमकुमों के 3 सियाह उजाले में जिस्म फ़र्याद करता रहता है
1. मरुस्थल का पेड़ 2. धनाढ्य 3. बिजली के हंडों के।
शा’यरी सच बोलती है
तेरे ख़तों की ख़ुशबू
5 . रेगिस्तान
तीन कहानियाँ
शम्म-ए-अन्जुमन 1
बाँझ
खंडहर
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