Description of सम्राट अशोक का सही इतिहास PDF / Samrat Ashoka ka Sahi Itihas PDF Download
Name : | सम्राट अशोक का सही इतिहास PDF / Samrat Ashoka ka Sahi Itihas PDF Download |
Author : | |
Size : | 36 MB |
Pages : | 134 |
Category : | History |
Language : | Hindi |
Download Link: | Working |
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Summary of book सम्राट अशोक का सही इतिहास PDF / Samrat Ashoka ka Sahi Itihas PDF Download
मौर्य काल के बारे में मेगस्थनीज ने लिखा है कि भारतवर्ष के लोग कभी झूठ नहीं बोलते, मकानों में ताले नहीं लगाते और न्यायालयों में बहुत कम जाते हैं। निश्चित प्राचीन भारत के इतिहास में मौर्य काल स्वर्ण युग था। तब पाटलिपुत्र दुनिया के गिने – चुने प्राचीन नगरों में एक था। पाटलिपुत्र के मध्य में मौर्यों का राजप्रासाद स्थित था। स्ट्रैबो ने लिखा है कि पाटलिपुत्र का राजभवन एशिया के प्रसिद्ध सूसा तथा एकबटना के राजभवन से कहीं अधिक शानदार था। जो लोग मौर्य कला पर ईरानी कला के प्रभाव के पक्षपाती हैं, उन्हें इसका जवाब खोजना चाहिए। पुरातात्विक आधार पर अशोक का साम्राज्य उत्तर – पश्चिम में हिंदूकुश से पूरब में बंगाल तक तथा उत्तर में हिमालय की तराई से लेकर दक्षिण में मैसूर तक विस्तृत था। प्राचीन भारत का कोई भी सम्राट इतने विस्तृत क्षेत्र का स्वामी नहीं था। डाॅ. स्मिथ ने लिखा है कि दो हजार साल से भी पहले भारत के प्रथम सम्राट ने उस वैज्ञानिक सीमा को प्राप्त कर लिया था, जिसके लिए उसके ब्रिटिश उत्तराधिकारी व्यर्थ की आहें भरते रहे तथा जिसे 16 – 17 वीं सदी के मुगल बादशाह भी कभी पूर्ण रूप से प्राप्त नहीं कर सके। अशोक के राजपद का आदर्श था कि हर समय और हर जगह पर मुझे जनता की आवाज सुनने के लिए बुलाया जा सकता है। चाहे मैं भोजन कर रहा होऊँ, चाहे अंतःपुर में होऊँ, मैं सो रहा होऊँ या अपने उद्यान में होऊँ, मेरे राज्य के अधिकारी जनता की कोई भी बात मुझ तक पहुँचा सकते हैं। सर्व लोकहित मेरा कर्तव्य है। सर्व लोकहित से बढ़कर कोई दूसरा कर्म नहीं है।
सभी मनुष्यों को अपनी संतान मानने वाले सम्राट अशोक ने जगह – जगह मनुष्यों और पशुओं के लिए चिकित्सालय बनवाए और कुएँ खुदवाए। सड़कें बनवाईं। सड़कों पर पेड़ लगवाए। अशोक अपने जनहितकारी कार्यों के लिए सर्वाधिक प्रसिद्ध हैं और इस क्षेत्र में उनकी जोड़ का दूसरा शासक इतिहास में मिलना कठिन है। कलिंग युद्ध के बाद सम्राट अशोक ने गंगा घाटी के धर्म को उठाकर विश्व धर्म का रूप दे डाले। लेनिन ने मार्क्स के सिद्धांतों को लागू किए और अशोक ने बुद्ध के सिद्धांतों को लागू किए तथा इस सिद्धांत पर चलकर वे दुनिया में वो मुकाम और शोहरत हासिल किए जो कम ही सम्राटों को नसीब हुए। जिस दार्शनिक और दर्शन की खोज में सम्राट अशोक के पिता यूनान तक अपनी आँखें गड़ाए हुए थे, अशोक की आँखों ने वो दार्शनिक और दर्शन यहीं भारत में ही खोज निकाले। सम्राट अशोक के स्तंभ और शिलालेख देश के एक कोने से दूसरे कोने तक बिखरे पड़े हैं। उन्होंने भिक्षुओं के लिए पाषाणों को कटवाकर गुहाएँ बनवाईं, बौद्ध परंपरा के अनुसार 84 हजार स्तूपों का निर्माण कराए और जगह – जगह स्तंभ खड़ा किए, जिसकी चमक शानदार है। अशोक स्तंभ कारीगरी के अनोखे नमूने हैं। 40 – 50 फीट ऊँचा एक ही पत्थर के बने हुए जिनकी चिकनाई से प्रत्येक युग के वासी चकित होते आए हैं। सारनाथ स्तंभ पर सिंहों की जैसी शक्ति का प्रदर्शन है, उनकी फूली हुई नसों में जैसी स्वाभाविकता है, वह न केवल इस देश के बल्कि समस्त संसार के मूर्ति विन्यास में अप्रतिम है। मौर्य प्रशासन वस्तुतः अनुशासन था। जयचंद्र विद्यालंकार इसे अनुशासन ही मानते हैं। सुविधा के हिसाब से इसे प्रशासन भी कहें तो रोमिला थापर ने लिखा है कि मौर्य शासन – प्रणाली विस्तृत रूप से नियोजित की गई थी, जिसमें अनेक विभाग तथा अधिकारी थे, जिनके कार्य पूर्णतः स्पष्ट कर दिए गए थे। ऐसा प्रतीत होता है कि यह प्रशासन अकबर के शासन काल में मुगल – साम्राज्य के प्रशासन से कहीं अधिक संगठित था। सेना भी ऐसी कि सेल्यूकस की फौज को हारनी पड़ी, जबकि मुगल सेना दुर्बल पुर्तगाली फौज से हार गई।सही अर्थों में सम्राट अशोक प्रथम राष्ट्रीय शासक थे, जिन्होंने पूरे राष्ट्र को एक भाषा और लिपि देकर एकता के सूत्र में बाँध दिए। स्वतंत्र भारत ने सारनाथ स्तंभ के सिंह – शीर्ष को अपने राजचिह्न के रूप में ग्रहण कर मानवता के इस महान नायक के प्रति अपनी सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित की है। सोने का लंका, मोरध्वज की कथा, लाट भैरो का सच, क्या चपड़ ही चाणक्य है, गणपति बप्पा मोरया जैसे गल्प – लिजिंद्रियों की जाँच मौर्य वंश के परिप्रेक्ष्य में की गई है। लेखन में पुरातत्वीय साक्ष्यों को वरीयता दी गई है। हर प्रमाण की तस्वीरें साथ में दी गई है।
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