अघोर / Aghor by Purushottam Kumar Download Free PDF
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काली अंधेरी रात थी। वारों ओर मृत्यु सा सन्नाटा पसरा था। सब कुछ उसके अनुकूल था। वह नहीं चाहती थी कि कोई उन्हें देखे। रथ पर एक छोटी लालटेन टंगी थी, जो हर झटके के साथ झूम रही थी। वह इसे भी बुडा देती किंतु रास्ता ऊबड़-खाबड़ था।
दोनों ओर से जंगल उन पर ऐसे टूट पड़ रहा था, मानो कह रहा हो कि यह सब उसका है और यहां आने की अनुमति किसी को नहीं। घुमावदार पहाड़ी मार्ग पर रथ सरपट दौड़े जा रहा था। तभी
उसके मन में भावनाओं का आवेग उमड़ आया। कहीं मस्तिष्क के कोने में दबी हजारों स्मृतियां यकायक एक-एक कर बाहर आने लगीं। ठीक बारह वर्ष पूर्व उसने इन स्मृतियों को सदैव के लिए
भुला दिया था। लेकिन आज न जाने क्यों वे सब एक साथ उसके कानों में तेजी से गूंजने लगी थीं। वह कभी भी उस स्थान पर वापस लौटना नहीं चाहती थी, जहां आज वह जा रही थी। उसके
कुटुम्ब के साथ जो बीता था, उसके बाद तो बिल्कुल नहीं। उनके रथ से टकराने वाला मार्ग का हर पेड़ उस भयावह दृश्य की स्मृति ताजा करा रहा था, जो उसे पांच वर्ष की अल्पायु में देखने को
विवश होना पड़ा था। तभी अचानक एक झटके के साथ स्थ रुक गया| स्मृति में खोने के कारण उसे संभलने का समय न मिला और उसका माथा रथ के किनारे से जा टकराया।
‘खरगोश है,’ सारथी की गही पर बैठे राघव ने कहा| उसने देखा तो सड़क पर दो टिमटिमाती आंखें और खरगोश सी कोई धुंधली आकृति दिखायी दी। तभी खरगोश उछला और पलक झपकते ही पास की झाडियों में गायब हो गया। राघव ऐसा ही था, एक नन्हे से जानवर का जीवन भी उसके लिए बहुमूल्य था|
‘क्या तुम सचमुच रात के इस पहर वहां जाना चाहती हो,’ उसने पूछा। आज कोई पहली बार उसने यह प्रश्न नहीं किया था। और एक बार फिर उसे कोई उत्तर न मिला। हारकर उसने चाबुक घुमाया और फिर से चल पड़ा। शीघ्र ही घना जंगल पार कर वे कंटीली झाड़ियों वाले मार्ग पर आ गए। वह कंकरीला मार्ग था। कहीं-कहीं विशाल पत्थर भी पड़े थे, मानो वे उनका रास्ता रोक रहे हों। सीधी चढाई वाले उस टेढ़े-मेढ़े मार्ग के अंतिम छोर पर दूर एक दुर्ग था। उन्हें वहीं जाना था।
रायत जानता था कि यह कार्य आसान न होगा इसीलिए उसने पूछा, ‘क्या हम वापस लौट सकते ….
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