उर्दू की यादगार कहानियाँ / Urdu Ki Yaadgar Kahaniyan Book PDF Download Free in this Post from Google Drive Link and Telegram Link , No tags for this post. All PDF Books Download Free and Read Online, उर्दू की यादगार कहानियाँ / Urdu Ki Yaadgar Kahaniyan Book PDF Download PDF , उर्दू की यादगार कहानियाँ / Urdu Ki Yaadgar Kahaniyan Book PDF Download Summary & Review. You can also Download such more Books Free - Hindi PDF Books DownloadHindi Stories Book PDF Download
Description of उर्दू की यादगार कहानियाँ / Urdu Ki Yaadgar Kahaniyan Book PDF Download
Name : | उर्दू की यादगार कहानियाँ / Urdu Ki Yaadgar Kahaniyan Book PDF Download |
Author : | Invalid post terms ID. |
Size : | 2.3 MB |
Pages : | 108 |
Category : | Stories |
Language : | Hindi |
Download Link: | Working |
हिंदुस्तान और पाकिस्तान की बेहतरीन और यादगार कहानियों का उस्तादाना संकलन। उर्दू हिन्दुस्तान महाद्वीप की ज़ुबान है — भारत की भाषा है — जो पेशावर से बिहार और बंगाल तक लिखी-समझी जाती है। उर्दू कहानी हमारी सभ्यता, तहज़ीब, तारीख़ और सामूहिक मानस का सच्चा आईना है।
कहानियों की पहचान मुल्क या भाषा से नहीं बल्कि इन्सानी ज़िन्दगी से होती है जो कभी घटिया स्वार्थी झगड़ों में उलझ जाती है और कभी इन झगड़ों से उठ कर इन्सानियत को एक पाक खूबसूरती देती है।
यह वह कहानियां हैं जिन्होंने नई ज़मीन तोड़ीं और जिन्हें मील का पत्थर माना जाता है। हर कहानी अपने दौर के किरदार, घटनाओं और माहौल को वास्तविकता देती है; इस बात पर हावी है कि जो कुछ जैसा है वैसा ही पेश किया जाये। हर कहानी अपने समय की सामाजिक सोच, मान्यताओं और प्रव़त्तियों की पृष्ठभूमि में ऐसे तीखे सवाल उठाती है जो हमें सोचने पर मजबूर करते हैं।
उर्दू की यादगार कहानियों के मजमूनों का लम्बा-चौड़ा दायरा, उस्तादाना अन्दाज़ में लेखन-शैली और अनन्त अपील इन कहानियों को सबसे ऊंचे दर्जे की कहानियों में ला खड़ा करती है।
Summary of book उर्दू की यादगार कहानियाँ / Urdu Ki Yaadgar Kahaniyan Book PDF Download
कानों की सुनी नहीं कहता, आंखों की देखी कहता हूं। किसी विदेशी घटना का बयान नहीं, अपने देश की दास्तान है। गांव-घर की बात है। झूठ-सच का दोष जिसके सिर पर जी चाहे रखिए। मुझे कहानी कहनी है और आपको सुननी ।
दो भाई थे. -चुन्नू मुन्नू नाम के, कहलाते थे पठान । मगर ननिहाल जुलाहे टोली में थी तो ददिहाल सैयद बाड़े – में। मां प्रजा की तरह मीर साहब के घर काम करने आई थी। उनके छोटे भाई साहब ने उससे कुछ और काम भी लिए और नतीजे में हाथ आए चुन्नू – मुन्नू । छोटे भाई साहब तो यादगारें छोड़कर जन्नत सिधार गये और सज़ा भुगतनी पड़ी बड़े मीर साहब को । उन्होंने बी जुलाहन को एक कच्चा मकान बख़्शा और चुन्नू – मुन्नू के पालन-पोषण के लिए कुछ रुपए दिए। वे दोनों पले और बढ़े। अच्छे हाथ-पांव निकाले । चुन्नू ज़रा संजीदा था। होश संभालते ही मीर साहब के कारिंदों में नौकर हो गया और हमउम्र मीर साहब का मुसाहिब बना। मुन्नू मनमौजी था। अहीरों के साथ अखाड़ों में कुश्ती लड़ता और नाम के लिए खेती-बाड़ी करने लगा।
लेकिन दोनों जवान होते ही वासनाओं का शिकार हुए। ख़ून की गर्मियां विरासत और माहौल से मिली थीं। दोनों वासना के मैदान में बड़े-बड़े मार्ग सर करने लगे। अन्ततः मीर साहब के कानों तक उनके कारनामों की दास्तानें पहुंचीं। उन्होंने चुन्नू को उसी तरह की एक लड़की से ब्याह कर बांध दिया। मगर मुन्नू आवारा सांड की तरह अलग-अलग खेत चरता रहा। उसकी करतूतों का शोर दूर-दूर तक पहुंचा। आखिर मीर साहब के पास अहीर टोली, चमार टोली, जुलाहा टोली की हर तरफ़ और हर मुहल्ले से फ़रियाद की आवाजें पहुंचने लगीं। उन्होंने लाचार होकर एक दिन उसकी मां को बुलवा भेजा। वह जब घूंघट डाले, शर्माती सहमती उनकी बीवी के पलंग के पास ज़मीन पर आकर बैठी तो मीर साहब ने मुन्नू की शिकायत की और कहा, ‘इस लौंडे को रोको वरना हाथ- पांव टूटेंगे।’
उसने आहिस्ता से कहा, ‘तो मैं क्या कर सकती हूं। आप ही चुन्नू की तरह इसे किसी नांद से लगा दीजिए। ‘ मीर साहब बड़ी सोच में पड़ गए। यह नई क़ौम का कलमी पौधा किसी मुनासिब ही ज़मीन में लगाया जा सकता था। हर ज़मीन तो उसको क़बूल नहीं कर सकती। उसके कारनामों की शोहरत ने हर तरफ़ शोरियत पैदा कर दी थी। वह जनानखाने से सोचते हुए बाहर चले आए और बराबर सोचते ही रहे।
इत्तफ़ाक की बात है; उन्हीं दिनों दूर के मेले से वापस आने वालों के साथ एक अनजान कबीले की औरत भी गांव में आई और एक दिन मीर साहब के घर नौकरी की तलाश के बहाने पहुंची। सैयदानी बी ने शक्ल-सूरत
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