Description of कृष्णा कुंजी / Krishna Kunji / Krishna Key Hindi PDF Download
Name : | कृष्णा कुंजी / Krishna Kunji / Krishna Key Hindi PDF Download |
Author : | |
Size : | 4.79 MB |
Pages : | 275 |
Category : | Novels, Suspense thriller Novels |
Language : | Hindi |
Download Link: | Working |
पांच हजार साल पहले, पृथ्वी पर एक चमत्कारी व्यक्तित्व का जन्म हुआ था, जिसका नाम कृष्ण था, जिसने मानवजाति के कल्याण के लिए बेशुमार चमत्कार किए थे। मानवजाति इस विचार से सिहर जाती थी कि कहीं कृष्ण भगवान मृत्यु को न प्राप्त हो जाएं, लेकिन उन्हें ये दिलासा दिया गया कि भावी कलयुग में, जब आवश्यकता पड़ेगी तब कृष्ण एक नए अवतार में वापस लौटेंगे। आधुनिक युग में एक छोटा सा अमीर बालक इस विश्वास के साथ बड़ा होता है कि वही वह अंतिम अवतार हैं। लेकिन, वो तो बस सीरियल किलर है। गहन रिसर्च के साथ लिखा गया यह ज़बरदस्त कथानक वैदिक युग की एक अविश्वसनीय व्याख्या प्रस्तुत करता है, साजिशों में दिलचस्पी लेने वाले ओर थ्रिलर उपन्यासों के प्रेमी समान रूप से इसे पसंद करेगें।
Summary of book कृष्णा कुंजी / Krishna Kunji / Krishna Key Hindi PDF Download
Krishna Key Hindi PDF Download मैं आरंभ से प्रारंभ करता हूं… अपने जन्म से भी पहले से। मेरे पूर्वजों में से एक थे राजा ययाति । अपनी पत्नी देवयानी, जो ऋषि शुक्राचार्य की पुत्री थीं, के प्रति निष्ठाहीन होने के लिए उन्हें ऋषि शुक्राचार्य ने शाप दे दिया था। शाप यह था कि ययाति समयपूर्व वृद्ध हो जाएंगे और इस प्रकार यौवन और पुरुषत्व के आनंद नहीं भोग सकेंगे। बाद में, शुक्राचार्य कुछ नर्म पड़े और उन्होंने शाप के प्रभाव को थोड़ा कम कर दियाः यदि ययाति के पुत्रों यदु और पुरु में से कोई भी इस शाप के प्रभाव को स्वीकार ले तो उन्हें क्षमा कर दिया जाएगा। ज्येष्ठ पुत्र यदु ने इंकार कर दिया लेकिन छोटे पुत्र पुरु ने इसे स्वयं पर लेना स्वीकार कर लिया। ययाति ने पुरस्कारस्वरूप यदु के स्थान पर पुरु को अपने बाद राजा बनने के लिए उत्तराधिकारी चुना। क्रुद्ध ययाति ने अपने बड़े बेटे के दंड को और भी बढ़ा दिया। “तुम या तुम्हारे वंशजों में से कोई भी कभी किसी सिंहासन पर नहीं बैठेगा !” उन्होंने क्रोधपूर्वक भविष्यवाणी की। अभागे यदु अपना घर छोड़ दिया और मथुरा में रहने लगे जहां उनका वंश अत्यंत फला-फूला। यदु के वंशज यादव थे, जिनमें से एक में भी हूं। तबसे यादव राजा-निर्माता तो रहे हैं, लेकिन कभी राजा नहीं बने। पुरु आगे चलकर हस्तिनापुर राज्य के पितृ बने–जहां से कौरवों और पांडवों के परिवार जन्मे ।
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