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Name | 1931 देश या प्रेम | 1931- Desh ya Prem? Book PDF Download |
Author | No tags for this post. |
Category | Novels |
Language | Hindi |
Download Link | Working |
गोरी सरकार के भूरे संतरी रशीद अली ने अश्विनी कुमार को पटकते हुए कोठरी के दूसरे क़ैदी पर नजर डाली तो वह फूल-सा बच्चा काँप गया। आजादी के दीवानों के पास जो लौह-कलेजा होता है, वह उसके पास नहीं था।
अठारह साल की उम्र जोश-ओ-रवानी की होती है। बहाव-भटकाव की भी होती है। ऐसा लगता था कि वह बच्चा नमक सत्याग्रह के जोश में भटककर बंगाल वॉलंटियर्स में शामिल हो गया था। सो, रशीद अली ने जब पसीना पोंछते हुए उस पर नजर टिकाई तो वह भय से गठरी हो गया।
“बाबू! मैंने कुछ नहीं किया बाबू! ” लड़के ने हाथ जोड़ते हुए कहा।
“तुझसे कुछ होगा भी नहीं! और यहाँ से जाने के बाद तो और भी नहीं! ” दूसरे संतरी ने अश्लील और विषाक्त मुस्कुराहट के साथ उसे बाँहों से उठाया।
“बाबू! मैं कुछ नहीं जानता बाबू! ” लड़का उठते हुए भी गिड़गिड़ाया।
“कुछ नहीं जानता! क्रांति कहाँ से निकलती है, ये तो जानता होगा। तेरा नेता आया तो था सिखाने!” संतरी ने तंज कसा।
लड़का चुप रहा। कुछ न बोला।
“सुभाष बोस जब आया था तो तू था कि नहीं उस जुलूस में?” लड़के को चुप देख रशीद चिल्लाया। लड़के ने हामी में सिर हिला दिया।
“तो क्या सिखाया उसने ? ” संतरी की आवाज़ अपनी सीमा तक ऊँची हुई। “स्वाधीनता उधर है, क्रांति जिधर है।” लड़के ने सहमे सहमे ही धीमे से कहा।
“अच्छा! और उसने ये नहीं बताया कि ‘क्रांति घुसती किधर है?’ चल, हम बताते हैं।” संतरी रशीद अली लड़के के हाथ मरोड़ते हुए बेहूदगी से उसके पुट्ठों पर हथेलियाँ कसते हुए बोला।
“बाबू हमें छोड़ दीजिए।” लड़का अब बोलने और रोने की सीमा पर खड़ा था।
“अच्छा! अभी रो रहा है? जब तुझे घर से उठाया तब तो लंबे भाषण झाड़ रहा था! ”
“ग़लती हो गई थी बाबू हमें छोड़ दीजिए बाबू। हम उस दिन के लिए भी
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