Novels 1931 देश या प्रेम | 1931- Desh ya Prem? Book PDF Download

1931 देश या प्रेम | 1931- Desh ya Prem? Book PDF Download

1931 देश या प्रेम | 1931- Desh ya Prem? Book PDF Download
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Name  1931 देश या प्रेम | 1931- Desh ya Prem? Book PDF Download
Author  No tags for this post.
Category  Novels
Language  Hindi
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“1931 देश या प्रेम” 1931 में भारत के क्रांतिकारी काल के दौरान स्थापित एक शक्तिशाली और मनोरम उपन्यास है। गांधी के नमक सत्याग्रह और भगत सिंह की शहादत की पृष्ठभूमि के खिलाफ, कहानी क्रांतिकारियों की अनकही कहानियों और उनके प्रभाव की पड़ताल करती है। समाज और उनके परिवार। एक उत्कृष्ट स्पर्श के साथ, प्रसिद्ध लेखक सत्य व्यास क्रांति के पीछे की मानवीय भावनाओं को उजागर करते हैं, और पात्रों की मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और पारिवारिक स्थितियों को जीवंत करते हैं। यह मार्मिक उपन्यास दिल दहला देने वाली घटनाओं और क्रांतिकारी क्षणों से भरा है जो आपको मंत्रमुग्ध कर देगा। यदि आप एक रोमांचक और ज्ञानवर्धक पुस्तक की तलाश में हैं, तो “1931 देश या प्रेम” आपके लिए किताब है!

 

Summary of book 1931 देश या प्रेम | 1931- Desh ya Prem? Book PDF Download

गोरी सरकार के भूरे संतरी रशीद अली ने अश्विनी कुमार को पटकते हुए कोठरी के दूसरे क़ैदी पर नजर डाली तो वह फूल-सा बच्चा काँप गया। आजादी के दीवानों के पास जो लौह-कलेजा होता है, वह उसके पास नहीं था।
अठारह साल की उम्र जोश-ओ-रवानी की होती है। बहाव-भटकाव की भी होती है। ऐसा लगता था कि वह बच्चा नमक सत्याग्रह के जोश में भटककर बंगाल वॉलंटियर्स में शामिल हो गया था। सो, रशीद अली ने जब पसीना पोंछते हुए उस पर नजर टिकाई तो वह भय से गठरी हो गया।
“बाबू! मैंने कुछ नहीं किया बाबू! ” लड़के ने हाथ जोड़ते हुए कहा।
“तुझसे कुछ होगा भी नहीं! और यहाँ से जाने के बाद तो और भी नहीं! ” दूसरे संतरी ने अश्लील और विषाक्त मुस्कुराहट के साथ उसे बाँहों से उठाया।
“बाबू! मैं कुछ नहीं जानता बाबू! ” लड़का उठते हुए भी गिड़गिड़ाया।
“कुछ नहीं जानता! क्रांति कहाँ से निकलती है, ये तो जानता होगा। तेरा नेता आया तो था सिखाने!” संतरी ने तंज कसा।
लड़का चुप रहा। कुछ न बोला।
“सुभाष बोस जब आया था तो तू था कि नहीं उस जुलूस में?” लड़के को चुप देख रशीद चिल्लाया। लड़के ने हामी में सिर हिला दिया।
“तो क्या सिखाया उसने ? ” संतरी की आवाज़ अपनी सीमा तक ऊँची हुई। “स्वाधीनता उधर है, क्रांति जिधर है।” लड़के ने सहमे सहमे ही धीमे से कहा।
“अच्छा! और उसने ये नहीं बताया कि ‘क्रांति घुसती किधर है?’ चल, हम बताते हैं।” संतरी रशीद अली लड़के के हाथ मरोड़ते हुए बेहूदगी से उसके पुट्ठों पर हथेलियाँ कसते हुए बोला।
“बाबू हमें छोड़ दीजिए।” लड़का अब बोलने और रोने की सीमा पर खड़ा था।
“अच्छा! अभी रो रहा है? जब तुझे घर से उठाया तब तो लंबे भाषण झाड़ रहा था! ”
“ग़लती हो गई थी बाबू हमें छोड़ दीजिए बाबू। हम उस दिन के लिए भी

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