औघड़ / Aughad Book PDF Download

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Author
Nilotpal Mrinal
Size
1.4 MB
Pages
286
Language
Hindi

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Description

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Description of औघड़ / Aughad Book PDF Download

Name  औघड़ / Aughad Book PDF Download
Author 
Size  1.4 MB
Pages  286
Category  Novels
Language  Hindi
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‘औघड़’ भारतीय ग्रामीण जीवन और परिवेश की जटिलता पर लिखा गया उपन्यास है जिसमें अपने समय के भारतीय ग्रामीण-कस्बाई समाज और राजनीति की गहरी पड़ताल की गई है। एक युवा लेखक द्वारा इसमें उन पहलुओं पर बहुत बेबाकी से कलम चलाया गया है जिन पर पिछले दशक के लेखन में युवाओं की ओर से कम ही लिखा गया। ‘औघड़’ नई सदी के गाँव को नई पीढ़ी के नजरिये से देखने का गहरा प्रयास है। महानगरों में निवासते हुए ग्रामीण जीवन की ऊपरी सतह को उभारने और भदेस का छौंका मारकर लिखने की चालू शैली से अलग, ‘औघड़’ गाँव पर गाँव में रहकर, गाँव का होकर लिखा गया उपन्यास है। ग्रामीण जीवन की कई परतों की तह उघाड़ता यह उपन्यास पाठकों के समक्ष कई विमर्श भी प्रस्तुत करता है। इस उपन्यास में भारतीय ग्राम्य व्यवस्था के सामाजिक-राजनैतिक ढाँचे की विसंगतियों को बेहद साहसिक तरीके से उजागर किया गया है। ‘औघड़’ धार्मिक पाखंड, जात-पात, छुआछूत, महिला की दशा, राजनीति, अपराध और प्रसाशन के त्रियक गठजोड़, सामाजिक व्यवस्था की सड़न, संस्कृति की टूटन, ग्रामीण मध्य वर्ग की चेतना के उलझन इत्यादि विषयों से गुरेज करने के बजाय, इनपर बहुत ठहरकर विचारता और प्रचार करता चलता है। व्यंग्य और गंभीर संवेदना के संतुलन को साधने की अपनी चिर-परिचित शैली में नीलोत्पल मृणाल ने इस उपन्यास को लिखते हुए हिंदी साहित्य की चलती आ रही सामाजिक सरोकार वाली लेखन को थोड़ा और आगे बढ़ाया है।

 

Summary of book औघड़ / Aughad Book PDF Download


गर्मी जा चुकी थी, ठंड अपना लाव-लश्कर ले आई थी। भोर के चार बजे थे, रात के सन्नाटे का एक टुकड़ा अभी भी बचा हुआ था। हल्की-हल्की शीतल हवा चल रही थी।
मुरारी साव एक घियाई रंग की पतली डल वाली भगलपुरिया चादर ओढ़े अपनी चाय दुकान पर पहुँच चुका था। दुकान क्या थी, एक टाट की झोपड़ी थी, उसी में माटी का एक चूल्हा था और उससे लगा एक लकड़ी का बक्सा। दोनों तरफ एक-एक बेंच रखी हुई थी। मुरारी साव की चाय की दुकान गाँव के बस स्टैंड वाले मुख्य चौराहे पर ही थी। गाँव में लोग अक्सर सूरज से पहले जग जाया करते, उसमें भी सबसे पहले भोर मुरारी साव की चाय दुकान पर ही होती। 5 बजे सुबह से ही गाँव के रास्ते सवारियों का आना-जाना शुरू हो जाता। गाँव से होकर गुजरने वाली गाड़ियों की सवारियों के लिए मुरारी की दुकान की मिट्टी के कंतरी वाले असली दूध की बनी चाय सुबह-सुबह की एक आदत-सी बन गई थी। यही कारण था कि मुरारी तड़के दुकान खोलने पहुँच जाता।……..

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