कलिहनुवाणी / Kalihanuvani Hindi Book PDF Download

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Description of कलिहनुवाणी / Kalihanuvani Hindi Book PDF Download

Name कलिहनुवाणी / Kalihanuvani Hindi Book PDF Download
Author Invalid post terms ID.
Size 5.7 MB
Pages 304
Category Novels
Language Hindi
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आठों योग सिद्धियों को प्राप्त करने वाले चिरंजीवी हनुमान जी ने अपना ब्रह्मज्ञान और अनुभव बाँटने के लिए कुछ विशेष आदिवासी शिष्य चुने थे। उन्होंने वचन दिया था कि वे हर 41 वर्ष पश्चात अपने शिष्यों की नई पीढ़ियों से मिलने आएँगे और उन्हें स्वयं ज्ञान प्रदान करेंगे। उसी शाश्वत वचन को निभाते हुए वे इस बार भी आए। घने जंगल से आच्छादित एक पर्वत पर उन्होंने अपने शिष्यों को प्राचीन ज्ञान नवीन ढंग से प्रदान किया। एक दिव्य लीला के अंतर्गत यह ज्ञान जंगल से बाहर ‘कलिहनुवाणी’ के रूप में पहुँच रहा है … इस पुस्तक में 12 अध्याय हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं : (1) दो माताओं से जना (2) जलकन्या (3) अवर्णीय का वर्णन (4) समय के तार (5) मृत्यु को हराना (6) अभिशप्त आत्माएँ (7) सहस्त्र जीवन (8) लिंग कुंजी (9) अपूर्ण (10) अदृश्य चार (11) जागृति विन्यास (12) निरंतरता

 

Summary of book कलिहनुवाणी / Kalihanuvani Hindi Book PDF Download

भाग 1
प्रस्तावना
घने जंगल की एक साधारण दोपहर में कुछ असाधारण था तो वे अधेड़ आयु के दो पुरुष जो एक पेड़ की आड़ में छिपकर घात लगाए बैठे थे। उनकी लंबी, जंगली दाढ़ी और बेतरतीब बालों से ऐसा लग रहा था जैसे वे आदिवासी हों। परंतु उनके नकली भेष से ऊपर डाल पर बैठे शांत पक्षी भी भ्रमित नहीं थे। जंगल की चींटी भी बता सकती थी कि वे दोनों बाहरी थे। कुछ अस्पष्ट था तो उन अतिक्रमणकारियों का उद्देश्य। पेड़ की आड़ लेकर वे क्या देख रहे थे?
संभवतः उनकी दृष्टि दूर काष्ठ ईंधन चुन रहे एक आदिवासियों के समूह पर थी। परंतु उस समूह में ऐसा क्या था कि बाहरी जन उनको देखने भयानक जंगल में इतनी दूर घुसे चले आए थे?
“एक और दिन व्यर्थ हो गया। हे हनुदास जी! अब तो हमें मान लेना चाहिए कि इन आदिवासियों में कोई विशेष बात नहीं है। कहाँ हम मान बैठे थे कि ये जन चिरंजीवी हनुमान जी को देख सकते हैं। खोदा पहाड़ निकली चुहिया!” एक बाहरी पुरुष गहरी श्वास छोड़ते हुए बोला। घात मुद्रा त्यागकर वह चैन से पेड़ के तने के सहारे पीठ लगाकर बैठ गया।
हनुदास जी ने भी परास्त स्वर में उत्तर दिया, “ठीक कहते हो आप, स्वामी जी।” और वे भी चैन से स्वामी जी की ओर मुख करके बैठ गए।

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