घर-घर उपनिषद् सर्वसार उपनिषद् भाष्य / Ghar Ghar Upanishad Sarvasar Upanishad Bhashya Hindi Book PDF Download Free in this Post from Google Drive Link and Telegram Link , No tags for this post. All PDF Books Download Free and Read Online, घर-घर उपनिषद् सर्वसार उपनिषद् भाष्य / Ghar Ghar Upanishad Sarvasar Upanishad Bhashya Hindi Book PDF Download PDF , घर-घर उपनिषद् सर्वसार उपनिषद् भाष्य / Ghar Ghar Upanishad Sarvasar Upanishad Bhashya Hindi Book PDF Download Summary & Review. You can also Download such more Books Free - Ghar Ghar Upanishad Sarvasar Upanishad Bhashya Hindi Book PDF DownloadHindi Dharmik PDF Books Download FreeHindi Motivational PDF Books Download FreeHindi Novels PDF Download FreeHindi PDF Books DownloadHINDI self help PDF book
Description of घर-घर उपनिषद् सर्वसार उपनिषद् भाष्य / Ghar Ghar Upanishad Sarvasar Upanishad Bhashya Hindi Book PDF Download
Name | घर-घर उपनिषद् सर्वसार उपनिषद् भाष्य / Ghar Ghar Upanishad Sarvasar Upanishad Bhashya Hindi Book PDF Download |
Author | Invalid post terms ID. |
Size | 1.4 MB |
Pages | 91 |
Category | Health, Motivational, Novels, Religious & Sprituality, Self Help Books |
Language | Hindi |
Download Link | Working |
सनातन धर्म क्या?
इस प्रश्न का कोई सीधा सही और सन्तोषप्रद उत्तर हमें सुनने को नहीं मिलता।
तो आज हम स्पष्टता, सत्यता और साहस के साथ आपसे कह रहे हैं कि जो वेदान्त को जानता-मानता है वो ही सनातनी है।
हमारी यह बात एक निर्भीक घोषणा है उन सब दुष्प्रचारों के विरुद्ध जो कहते हैं
~ हर गाँव, हर शहर में बदलने वाली उथली मान्यताओं का पालन करने से आप सनातनी हो जाते हैं।
~ होली दीवाली मनाने से आप सनातनी हो जाते हैं।
~ किसी भी छोटे-मोटे ग्रन्थ का वेदार्थ-विहीन पालन करने से आप सनातनी हो जाते हैं।
~ जातिवाद या कर्मकांड का पालन करने से आप सनातनी हो जाते हैं।
~ पौराणिक कथाओं में विश्वास करने से आप सनातनी हो जाते हैं।
~ सनातनी घर में पैदा होने से सनातनी हो जाते हैं।
नहीं! उपरोक्त में से कोई भी बात अपनेआप में आपको सनातनी कहलाने में पर्याप्त नहीं है।
सनातन धर्म वैदिक है, और वेदों का मर्म है वेदान्त में। धर्मसम्बन्धी किसी भी बात के मान्य और स्वीकार्य होने के लिए जो श्रुतिप्रमाण आवश्यक है, वो श्रुतिप्रमाण भी व्यावहारिक रूप से वेदान्तप्रमाण ही है।
धर्म बिना ग्रन्थ के नहीं चल सकता, धर्म बिना ग्रन्थ के होगा तो उसमें सिर्फ़ लोगों की अपनी-अपनी मनमानी चलेगी। मनमानी चलाने को धर्म नहीं कहते।
अब्राहमिक पंथों के पास तो अपने-अपने केन्द्रीय ग्रन्थ हैं ही। भारतीय धर्मों में भी बौद्धों, जैनों, सिखों के पास भी अपने सशक्त व निर्विवाद रूप से केन्द्रीय ग्रन्थ हैं। ग्रन्थ से ही धर्म को बल, स्थायित्व और आधार मिलता है। क्या हम धम्मपद के बिना बौद्धों की और गुरु ग्रन्थ साहिब के बिना सिखों की कल्पना भी कर सकते हैं?
सनातन धर्म आज हज़ार हिस्सों में बँटा हुआ है। उसके अनुयायी बहुधा भ्रमित और दिशाहीन हैं। धर्म के शत्रु सनातन धर्म की दुर्बलता का लाभ उठाकर धर्म की अवहेलना और अवमानना करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। धर्म का अर्थ रूढ़ि, मान्यता, और त्योहार बनकर रह गया है।
ऊपर-ऊपर से तो सनातनी सौ करोड़ हैं, लेकिन ध्यान से भीतर देखा जाए तो स्पष्ट ही है कि धर्म के प्राणों का बड़ी तेज़ी से लोप हो रहा है। लोग बस अब नाम के सनातनी हैं। यही स्थिति दस-बीस साल और चल गयी तो धर्म के हश्र की कल्पना भी भयावह है।
Summary of book घर-घर उपनिषद् सर्वसार उपनिषद् भाष्य / Ghar Ghar Upanishad Sarvasar Upanishad Bhashya Hindi Book PDF Download
उपनिषद् क्या हैं?
ज्ञान की एक पूरी श्रृंखला हैं वेद, और उनके केंद्र में ज्ञान मात्र है। किसी एक व्यक्ति द्वारा लिखी गयी वो किताब नहीं है। किसी एक इंसान या इंसानों के एक समूह, या दल, या समुदाय या सम्प्रदाय का वो प्रतिनिधित्व नहीं करती। किसी एक व्यक्ति का नाम उससे जोड़ा नहीं जा सकता। व्यक्ति आए, चले गए। इतने ऋषि उसमें वर्णित हैं, उनमें से कोई ऋषि हो न हो एक ऋषि, सहस्त्रों ऋषि – वेदों का – किसी व्यक्ति विशेष से कोई संबंध नहीं। तो ज्ञान की एक पूरी परंपरा है, ज्ञान की पूजा करते हैं। इसीलिए एक बड़े लंबे, विस्तृत कालखंड में पसरे हुए हैं वेद। एक दिन या दस दिन या सौ वर्षों में भी नहीं लिख दिए गए थे वेद। उनकी हज़ारों वर्षों की यात्रा है और चूँकि उनका संबंध ज्ञान से, बोध से है, व्यक्तियों से नहीं, इसीलिए उनको अपौरुषेय भी कहते हैं। कि किसी मनुष्य की कृति मत मान लेना इनको। मनुष्य मात्र की या मनुष्य विशेष की भी संपदा मत मान लेना इनको।
तो हम कह रहे थे वेदों की एक पूरी यात्रा है, इस यात्रा में बहुत उतार-चढ़ाव आते हैं, लेकिन वो यात्रा है निरंतर ऊर्ध्वगामी ही। वो नीचे से चलती है और एकदम ऊपर तक जाती है, ज्ञान का काम ही यही है।
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