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वह कविता कहाँ गयी, बिटिया शर्मिष्ठा? अरे, वह कविता, जो मैंने लिखी थी और फेंक दी थी? हाँ, बिटिया, तूने उठाकर सहेज लिया था? वर्ना, चल फिर से लिख ले, बेटू! बँगला में न लिख सके, तो चल अंग्रेजी में ही लिख ले। तू ना लिख पाये, तो अपने गौर काका को बुला! वह बिल्कुल ठीक-ठीक लिख लेगा। सुन, बिटिया, मेरा बड़ा मन था कि वह कविता मेरी मौत के बाद…लेकिन, माँ बुला जो रही है! मेरी माँ, तेरी माँ! एक बार उन दोनों के पास चला गया, तो दोबारा लौटकर आना नहीं होगा, बिटिया…। इसी तरह के पात्रों के इर्दगिर्द बुनी गयी हैं ‘जन्म यदि तब’ उपन्यास की कथा ।
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