कभी गाँव कभी कॉलेज | Kabhi Gaanv Kabhi College PDF Download

Kabhi Gaanv Kabhi College PDF Download ये कहानी है ऊँची दुकान के फ़ीके पकवानों की, बड़े-बड़े नाम वालों की, पर छोटे दर्शन वालों की। कहानी में जब-जब कॉलेज का ज्वार चढ़ता है, गाँव में आते ही भाटा सिर पर फूट जाता है। कहानी के किरदार ऐसे कि प्रैक्टिकल होने के नाम पर ग़रीब आदमी की लंगोट भी खींच लें। कुछ कॉलेज के छात्र ऐसे हैं जिनकी जेबों तक से गाँव की मिट्टी की सुगंध आती है और कुछ ऐसे जो अच्छे शहरों की परवरिश से आकर इस ओखली में अपना सि‍र दे गए हैं। कहानी के हर छात्र का सपना आईएएस/आईपीएस बनने का नहीं है, कोई सरपंच भी बनना चाहता है तो कोई कॉलेज ख़त्म होने के पहले ही ब्याह का प्लेसमेंट चाहता है। कहानी में अर्श है और फ़र्श भी, आसमान भी है और खजूर भी। कहानी में गाँव में कॉलेज है या कॉलेज में गाँव, प्रेम जीतता है या पढ़ाई, दोस्ती जीतती है या लड़ाई– ये आपको तय करना है। About the Author अगम जैन की हिंदी साहित्य के क्षेत्र में यह पहली पुस्तक है। अँग्रेज़ी में लिखी ‘Decode UPSC’ पुस्तक यूपीएससी के अभ्यर्थियों के बीच काफ़ी प्रचलित है। समय-समय पर अख़बारों, पत्रिकाओं और सोशल मीडिया पर व्यंग्य एवं अन्य लेख लिखते रहते हैं। मंगलायतन विश्वविद्यालय, अलीगढ़ से बीटेक के बाद भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के अधिकारी होकर वर्तमान में भोपाल में पदस्थ हैं।
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4.5/5 Votes: 149
Author
Agam Jain
Size
100 MB
Pages
160
Language
Hindi

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Description

Kabhi Gaanv Kabhi College book PDF Download चिलोंटाजी की डिस्टेंपर की दुकान थी जिस पर वह किराना बेचते थे। उनका ध्येय वाक्य था- ‘जो बिके सो बेचो ।’ कहते थे कि जब से गाँव के पास कॉलेज आया है तब से फ़ोटोकॉपी डालने का भी सोच रहे हैं। फिर गली किनारे बैठे कुत्ते पर पान थूकते हुए गरियाते थे कि उनकी अँग्रेजी थोड़ी फिसड्डी है, पता नहीं चलता कि पन्ना सीधा किस तरफ़ से है और उल्टा किधर से।

इन्हीं चिलोंटाजी के मार्फत सुनील का एडमिशन कॉलेज में हुआ था। हुआ यूँ कि डीन साहब कॉलेज के शुरुआती दिनों में घर की पुताई के लिए इनसे डिस्टेंपर लेने आए। चिलोंटाजी ने माल तो महँगा बेचा ही, डीन साहब को एडमिशन की एक नयी स्कीम भी बता दी। वह बोले कि गाँवों में आपकी पकड़ नहीं है। आप सिर्फ़ अख़बार से प्रचार कर रहे हैं लेकिन गाँव में अख़बार अलमारी में बिछाने और समोसे खाने के काम आता है। आप ऐसा करिए कि हमें हर एडमिशन का पाँच हज़ार रुपये दे दीजिए और सीट भरते जाइए। डीन साहब मान गए।

बस फिर क्या था ! चिलोंटाजी ने दो आदमी लगा दिए। एक गाँव घूमने के लिए और एक कॉलेज के गेट पर गाँव घूमने वाला आदमी गाँव-गाँव जाकर वहाँ के प्रधानों से सौदेबाजी करता और दूसरा, कॉलेज के गेट पर आए हुए छात्र को सीधे एडमिशन ना लेने देकर चिलोंटाजी के मार्फ़त दिलवाता।

डीन साहब चेंबर में बैठकर चिलोंटाजी पर गर्व महसूस करते थे। उन्हें यही लगता था कि यह चिलौटा नहीं होता तो कॉलेज चपरासियों की पगार भी ना दे पाता और चिलोंटाजी को भी यही लगता था। दोनों के ख़याल बहुत मिलते- जुलते थे।

चिलोंटाजी अपनी इस तरकीब को ‘शिक्षा के क्षेत्र में आवश्यक हस्तक्षेप’ कहते थे। उनकी सोच थी कि जब तक शिक्षा में पैसा नहीं होगा तब तक शिक्षा उन्नत नहीं हो सकती। प्राचीन काल की गुरु दक्षिणा और अभी की फ़ीस में कोई अंतर नहीं है। बस वह कोर्स कराने के बाद में लेते थे और उनकी ग़लती से सीखकर हम शुरुआत में लेने लगे हैं।

Kabhi Gaanv Kabhi College by Agam Jain

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