ख्वाइशों का सफ़र / Khwahishon Ka Safar PDF Download Free in this Post from Google Drive Link and Telegram Link ,
Description of ख्वाइशों का सफ़र / Khwahishon Ka Safar PDF Download
Name : | ख्वाइशों का सफ़र / Khwahishon Ka Safar PDF Download |
Author : | Invalid post terms ID. |
Size : | 28 MB |
Pages : | 212 |
Category : | Novels |
Language : | Hindi |
Download Link: | Working |
Khwahishon Ka Safar PDF Download अंकुर ठाकुर बिहार के आरा जिले का एक मेधावी छात्र था, परंतु उसकी आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर थी। हाईस्कूल की बोर्ड परीक्षा में जिले में टॉप करने के बाद उसके पिताजी आईआईटी की तैयारी का चाहते थे लेकिन उनके पास फीस भरने को पैसा नहीं था। बावजूद इसके अंकुर अपनी काबिलियत के दम पर फ्री सीट पर कोटा की एक प्रतिष्ठित कोचिंग में एडमिशन प्राप्त करता है। पहले प्रयास में आईआईटी मेंस में अच्छे नंबर आने के बावजूद एडवांस एग्जाम से 15 दिन पहले उसे डेंगू हो जाता है, जिसके कारण उसका IIT में फाइनल सलेक्शन नहीं हो पाता है। दूसरे अटेम्प्ट में मेंस से 3 दिन पहले उसके पिताजी का देहांत हो जाता है, उसके पास इतना भी पैसा नहीं होता है कि वह टिकट लेकर अपने गांव आरा जा सके। वह बिना टिकट यात्रा करता है लेकिन विदाउट टिकट पकड़ लिया जाता है। जिसके कारण वह गांव की बजाय जेल पहुंच जाता है… दम तोड़ती ख्वाहिशों से, संघर्ष की ऐसी दास्तां जो आपके रोंगटे खड़े कर देगी। जिसमें जेल की दुनिया के अनुभव, प्राइवेट नौकरी की दुश्वारियों का विवरण, प्लेटफॉर्म की दुनिया से रूबरू, होने के साथ ही कंपटीशन की अनिश्चितता और असफलता के दौर में हौसले को बनाए रखने का सजीव चित्रण किया गया है। किसी भी कंपटीशन में संघर्ष, आपका स्वयं से होता है न कि दुनिया और प्रतियोगियों की भीड़ से! सफलता हासिल करने की खातिर, आपको स्वयं की भावनाओं पर नियंत्रण स्थापित कर, आंतरिक रूप से स्वयं के आत्म बल को इतना मजबूत करना होगा कि असफलता आपके हौसले के आगे घुटने टेक दे।.
Summary of book ख्वाइशों का सफ़र / Khwahishon Ka Safar PDF Download
Khwahishon Ka Safar PDF Download दोपहर दो बजे के बाद कोटा रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म नंबर तीन पर मीडियाकर्मियों की भीड़ अचानक बढ़ने लगी । यूँ तो हर रोज कोटा रेलवे स्टेशन पर रुकने वाली गाड़ियों से बड़े पैमाने पर युवाओं की आवाजाही के कारण गहमा-गहमी मची रहती है । देश के दूर-दराज के इलाकों से असंख्य युवा आईआईटीयन बनने का सपना सजोयें कोटा की धरती पर कदम रखते हैं । हालाँकि आज बारह बजे के बाद कोटा रेलवे स्टेशन पर न तो कोई ट्रेन रुकी थी और न ही आईआईटी या नीट का रिजल्ट घोषित हुआ था । इसके बावजूद अचानक प्लेटफॉर्म पर देशी के साथ-साथ विदेशी मीडियाकर्मियों की भीड़ लगने से लोगों का कौतूहल बढ़ गया । सभी मीडिया हाउस और न्यूज चैनलों के कैमरा मैन, प्रेस रिपोर्टर और संवाददाता प्लेटफॉर्म नम्बर तीन पर रहने वाले सत्ताईस साल के युवा का वीडियो बनाने और इंटरव्यू लेने के लिए बेताब थे । जो विगत आठ-नौ वर्षों से स्टेशन पर ‘चाय गरम-चाय गरम’ करते हुए चाय बेचता था ।
कल तक जो दूसरे वेंडर ट्रेन में पहले घुसने के लिए बिहारी से गाली-गलौज, लड़ाई-झगड़े, यहाँ तक कि कभी-कभार मार-पीट तक करने से बाज नहीं आते थे । वे सभी आज गर्व से उसे अपना छोटा भाई बता रहे थे ।
प्लेटफॉर्म पर अवैध रूप से चाय बेचने के बदले, महीना वसूलने वाले पुलिस कर्मी, स्टेशन पर दादागिरी करने वाले छुटभैया माफिया, स्टेशन कर्मी सभी उसकी तारीफ के कसीदे पढ़ रहे थे । हर किसी के मुँह से बस एक ही बात निकल रही थी, ‘अरे, हम तो पही…ल से जानत रहि…ल कि उ… बिह…रीया बहुत…ऐ तेज और होशियार हऽव । बेचारा मजबूरी में चाय बेच…त रहिल, उ… एक न एक दिन बहुऽऽतै आगे जा..इस ।’
इंसान कितना दोहरे चरित्र वाला होता है, इसका अंदाजा कोटा स्टेशन पर होने वाले चर्चा से लगाया जा सकता है । कल तक अंकुर को बिहरिया कहकर दुत्कारने वाले आज सगे-संबंधी से भी अधिक हमदर्द बनने का प्रयास कर रहे थे । किसी ने कहा है, उगते सूरज को सभी नमस्कार करते हैं भइया । वहीं दूसरी ओर उसकी मदद करने वाले सुख्खी दादा, प्रदीप अंकल, सुमित और सलीम चाचा जैसे लोग तो कहीं नजर भी नहीं आ रहे थे । वह तो आज भी अपने कामों में व्यस्त थे ।
आज देश की सर्वाधिक प्रतिष्ठित प्रतियोगी परीक्षा, संघ लोक सेवा आयोग के सिविल सेवा परीक्षा (आईएएस) का अंतिम परिणाम घोषित हुआ । जिसमें अंकुर ठाकुर को पूरे देश में सत्तरवीं रैंक हासिल हुई । शायद यह ऐसा पहला मौका था कि आईएएस का परिणाम आने पर कोटा में जश्न मनाया जा रहा हो । क्योंकि कोटा आईआईटी और नीट की तैयारी के लिए जाना जाता है । आईएएस जैसी परीक्षाओं की तैयारी के लिए दिल्ली का नाम लिया जाता है । जितनी मीडिया कवरेज अंकुर को सत्तरवीं रैंक हासिल होने पर मिल रही थी, उतनी तो शायद आईएएस टॉपर को भी नहीं मिल रही थी ।
देश-विदेश के अनेक पत्रकार उसके साक्षात्कार के लिए आतुर थे । हर कोई उसके संघर्ष पर स्टोरी करने को बेचैन था । चारों तरफ उसके जोश, जज्बे और जुनून की चर्चा हो रही थी । सभी मीडिया हाउस के रिपोर्टरों के पास संपादकों का बार-बार फोन आ रहा था कि अंकुर के संघर्ष पर सनसनीखेज स्टोरी बनाओ ।
टीआरपी के चक्कर में खबर को सनसनीखेज बनाकर परोसना मीडिया हाउस वालों की मजबूरी बन चुकी है, इसलिए अंकुर जहाँ रहता था, उसी प्लेटफॉर्म को बार-बार दिखाकर मीडिया वाले कपोल कल्पित संघर्ष की दास्तां बनाकर प्रस्तुत करने में मशगूल थे । मीडिया वाले स्वयं की सुविधा के अनुरूप अंकुर को रातों-रात हीरो बनाने के चक्कर में ऐसी खतरनाक स्टोरी गढ़ रहे थे, जिससे उसका कोई वास्ता ही नहीं था । आईएएस का रिजल्ट घोषित होने के चंद पलों के भीतर ही अंकुर ठाकुर राजस्थान के कोटा ही नहीं, बल्कि पूरे देश के युवाओं के लिए प्रेरणात्मक सेलिब्रिटी बन चुका था । वहीं दूसरी ओर रिपोर्टरों द्वारा किये जाने वाले हाय-तौबा पर अंकुर कोई खास उत्साह या प्रतिक्रिया नहीं दिखा रहा था । वह शांत, गंभीर और उपेक्षापूर्ण ढंग से प्रश्नों का रटा-रटाया जवाब देकर मीडिया वालों से अपना पीछा छुड़ाना चाहता था ।
अधिकांश प्रश्नों का बस एक ही जवाब देता, “जो भी मेहनत और संघर्ष करता है, उसे सफलता अवश्य मिलेगी । कोशिश और परिश्रम कभी बेकार नहीं जाते हैं ।” एक महिला रिपोर्टर ने जब बहुत जिद किया तो उसने एक कविता गुनगुना दिया–
क्यों मढ़ता है दोष दूसरों पर,
तेरी मंजिल तो तेरे सोच पे निर्भर है ।
सिर्फ चाहत से कुछ नहीं मिलता दोस्त,
तेरे उड़ान की ऊँचाई तो तेरे जुनून पे निर्भर है ।
मुमकिन है हर सपना तेरा,
तेरा इकबाल तो तेरी कोशिश पे निर्भर है ।
क्यों होता है निराश असफलताओं से,
तेरा मुकाम तो तेरे हौसले पे निर्भर है ।
मिलेंगी जहान की हर आरजू तुझे,
तेरी हदें तो तेरे ख्वाहिशों पे निर्भर है ।
मीडिया हाउस वाले उसके जीवन के संघर्ष की दास्ताँ पर प्रकाश डालने का दबाव बना रहे थे, जिससे कहानी में सनसनी का तड़का लग सके और उनकी टीआरपी बढ़ सके । हालत यह हो गयी थी कि रिपोर्टर अंकुर के मुँह में जबरदस्ती माइक घुसेड़कर अपनी मर्जी के मुताबिक उत्तर लेना चाहते थे । मीडिया वाले उसके जीवन गाथा पर सनसनीखेज स्टोरी करने को इस कदर उतावले थे, जैसे रेत में पड़ी मछली नदी में जाने को बेताब हो । इसके बावजूद अंकुर किसी को अपनी व्यक्तिगत जानकारियाँ नहीं दे रहा था । रिपोर्टर एक ही प्रश्न को तोड़-मरोड़कर मनचाहे जवाब उगलवाने की कोशिश कर रहे थे । कुछ खास रिस्पांस न देने पर मीडिया वाले निराश होकर स्टेशन पर दूसरे चाय बेचने वाले, फल-सब्जी, अखबार वालों से अंकुर के दैनिक दिनचर्या के बारे में जानकारी लेकर अपने कर्तव्य से इतिश्री कर धीरे-धीरे जाने लगे ।
जैसा कि अक्सर होता है, तीन-चार घंटे में सभी मीडिया हाउस वाले अपनी-अपनी जरूरतों के मुताबिक इंटरव्यू लेकर और वीडियो आदि बनाकर चले गये । मैं अंकुर के चेहरे की बदलती भाव-भंगिमा को बहुत गौर से देखकर, उसकी साइकोलॉजी को समझने का प्रयास कर रहा था । न जाने क्यों मुझे महसूस हुआ कि वह मीडिया से खफा है, जिससे वह मीडिया वालों के प्रश्नों का संतोषजनक जवाब नहीं दे रहा था । जिसके कारण अंकुर के बारे में जानने की मेरी उत्सुकता और लालसा कुछ ज्यादा ही बढ़ गयी ।
रेलवे स्टेशन पर चाय बेचने वाला बच्चा कैसे आईएएस बन गया ? क्या रही होगी इसके संघर्ष की दास्तां ? जैसे सवाल में दिमाग को कुरेदने लगे । दो बार मैंने भी आईएएस का इंटरव्यू दिया था और असफल रहा था । जबकि मेरे पिताजी आईएएस बनने के लिए मुझे सारी सुविधाएँ मुहैया करवाये थे । इसके बावजूद मैं सफल नहीं हो सका और मजबूरी में आज एक मीडिया ग्रुप के लिए काम कर रहा हूँ ।
अंकुर देश के मध्यम वर्ग के युवाओं के लिए सबसे बड़ा प्रेरणा स्रोत था । लाखों युवा आईएएस बनने का सपना लेकर दिल्ली जैसे शहर में जाकर अपना समय और पैसा बर्बाद करने के बाद निराश होकर बैरंग वापस लौट जाते हैं । जबकि अंकुर जैसे चंद युवा दिल्ली के हाई-फाई कोचिंग सिस्टम को चुनौती देकर, प्लेटफॉर्म पर चाय बेचते हुए आईएएस बनने के ख्वाब को हकीकत में तब्दील कर देते हैं । मैंने अपना कैमरा, माइक और डायरी को बैग में रखकर, पास के स्टॉल से एक कोल्ड ड्रिंक की बोतल और चिप्स का पैकेट लेकर आम आदमी की तरह अंकुर की बेंच पर बैठ गया । Khwahishon Ka Safar PDF Download
चिप्स का पैकेट फाड़ते हुए मैंने अंकुर को चिप्स ऑफर किया !
“नो थैंक्स” कहकर उसने मना कर दिया ।
“भाई जान, मैं जहरखुरानी ग्रुप से नहीं हूँ !” हँसते हुए मैंने कहा ।
हल्की-सी मुस्कान के साथ अपना चेहरा मेरी ओर करते हुए उसने कहा, “बड़े भाई, मैंने इस प्लेटफॉर्म और ट्रेनों के साथ आठ साल गुजारा है । मुझे सब पता है, आदमी का चेहरा देखकर समझ जाता हूँ कि वह कौन से ग्रुप से है और उसकी मंशा क्या है ? मेरे विचार से सीखने और अनुभव के लिए रेलवे स्टेशन और ट्रेन दुनिया की सबसे बेहतरीन पाठशाला है । यहाँ अच्छे से अच्छे और बुरे से बुरे सभी तरह के लोग आते हैं । दुनिया के सभी बुरे कार्य यहाँ होते हैं । कुछ लोग यहाँ सहयोगी किस्म के, तो कुछ आपके इमोशन से खिलवाड़ कर नुकसान पहुँचाने वाले मिलेंगे । कुछ मौका मिलते ही आपके पॉकेट से पर्स गायब कर देंगे, तो कुछ आपका विश्वास जीत कर जहर देकर पूरा सामान लेकर ही चंपत हो जाते हैं । स्टेशन बहुतों के लिए जीविकोपार्जन का माध्यम है । कुछ तो स्टेशन पर पैदा होते हैं और स्टेशन पर ही मर जाते हैं । या यूँ समझें कि जिंदगी के सफर का आरंभ और अंत दोनों स्टेशन पर ही होता है । स्टेशन पर चोरी से लेकर स्मगलिंग, देह व्यापार, भिक्षावृत्ति, पॉकेटमारी, जहरखुरानी, नशे की तस्करी और न जाने कौन-कौन से कुकर्म होते हैं । स्टेशन की जिंदगी बड़ी अजीब होती है ।”
कुछ पल शांत रहने के बाद, “जिंदगी बहुत हसीन और खूबसूरत होती है, लेकिन लोग उसे बदनसीब बना देते हैं ।” कहते हुए अंकुर ने एक लंबी-गहरी साँस ली ।
उसकी बातें मेरी जिज्ञासा को बढ़ा रही थी । मैंने दाहिना हाथ उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा, “आई एम देव, फ्राम फ्रीलांस मीडिया !”
मुस्कुराते हुए हाथ मिलाकर उसने कहा, “मैं अंकुर ठाकुर ! लेकिन पूरा प्लेटफॉर्म मुझे बिहारी चाय वाले के नाम से जानता है ।”
मैंने कोल्ड ड्रिंक की बोतल खोलकर उसकी ओर बढ़ा दिया । इस बार उसने मना करने की बजाय दो-तीन घूँट पीया और धन्यवाद कहते हुए बोतल वापस कर दिया । मैंने चिप्स का पैकेट फिर से उसकी ओर बढ़ा दिया । चिप्स के कुछ टुकड़े लेते हुए, कुछ देर तक प्लेटफॉर्म की सीमेंटेड छत को देखता रहा । कुछ पल बाद एक लंबी गहरी साँस लेकर अंकुर ने कहा, “समय बड़ा बलवान होता है भाई जान ! आप जिस चीज के लिए जितना भागते हैं, वह चीज आपसे उतना ही दूर चली जाती है । जब आप स्थिर हो जाते हैं, तब वह आपके कदमों में होती है । मानो या न मानो किस्मत बड़ी कुत्ती चीज होती है ।” Khwahishon Ka Safar PDF Download
फिर थोड़ी देर शांत रहने के बाद, “मेरे हिसाब से जिंदगी में वक्त बड़ा बलवान होता है । वक्त चाहे तो आपको महान बना दे अथवा कंगाल । बुरे वक्त में घबराने या परेशान होने की बजाय, वक्त को वक्त देना चाहिए । वक्त ही वक्त को बदल देगा । मेरे हिसाब से आपके जीवन में सबसे महत्वपूर्ण धैर्य होता है । उम्मीद और धैर्य सफलता की कुंजी है ।”
उसके बाद हम दोनों बहुत देर तक इधर-उधर की बातें करते रहे । मैं प्लेटफॉर्म पर चाय बेचने से आईएएस बनने तक की अबूझ कहानी को समझता रहा ।
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“अरे, सुनत हऊ अंकुरवा के माई ! हमार अंकुरवा त मैट्रिक में जिला में अव्वल नंबर पउले बा !” कहते हुए गर्व और प्रसन्नता से पिताजी ने घर में कदम रखा ।
बचपन में मेरे पिताजी का इंजीनियर बनने का सपना था, लेकिन गरीबी और पारिवारिक जिम्मेदारी के कारण उनका सपना अधूरा रह गया । मेरे जन्म के बाद पिताजी ने निर्णय लिया कि एक ही बेटा रहेगा, जिसे खुब मेहनत से पढ़ायेंगे और इंजीनियर बनायेंगे ।
“इ पानी पीयल जाय ।” कहते हुए माँ ने लोटा और गिलास चौकी पर रख दिया ।
“इ मिठाई पूरे गाँव में बाट दिहा ।” कहते हुए पिताजी ने पाँच किलो लड्डू माँ को पकड़ाया । खुशी के इस मौके पर गाँव के मंदिर में जाकर माँ ने लड्डू चढ़ाया और पूरे गाँव में मेरी सफलता का गुणगान करते मिठाई बाँटा । उसी रात माताजी और पिताजी मुझे आईआईटी की तैयारी के लिए पटना या कोटा भेजने पर विचार करने लगे ।
“कोचिंग क इ भारी-भरकम फीस कहाँ से लिआवल जाई ?” चिंतित स्वर में माँ ने बापू से पूछा ।
बापू ने कहा, “चिन्ता मत कर । कौनो न कौनो उपाय निकल ही जाई । सब के मालिक ऊपर वाला हउवे । हम लोगन तो खिलौना मात्र हई । नहीं त जमीन बेच देब, अंकुरवा इंजीनियर बन जाई, तब फिरो खरीद लेब ।”
दूसरे दिन तड़के सुबह मैं और पिताजी आईआईटी की तैयारी के लिए देश की फेमस कोचिंग सेंटर ‘सुपर 30’ में एडमिशन लेने के लिए आरा से ट्रेन पकड़कर पटना पहुँच गये । जीवन में पहली बार मैं आरा से बाहर, किसी बड़े शहर गया था । पटना और आरा के बीच जमीन-आसमान का फर्क था । अभी तक आरा में मैंने दो या तीन मंजिला मकान देखा था । यहाँ के मकानों की मंजिलें गिनकर मैं हैरान था । कैसे आठ से दस मंजिले मकान टिके हैं, गिर क्यों नहीं रहे हैं ? सड़कों पर बड़ी-बड़ी गाड़ियों की भीड़, पार्कों में खेलते बच्चों और मार्केट में बिकने वाले खिलौनों को देखकर मैंने बापू से पूछा, “बापू, यहाँ मेला लगा है क्या ?”
मेरे बचकाने सवाल को सुनकर बापू ने मुस्कुराते हुए कहा, “नहीं तो । तुमसे किसने कहा ?”
“देखो बापू, कितनी भीड़ है ! जगह-जगह खिलौने और मिठाइयों की दुकानें लगी हैं ।”
“बेटा, यह बड़ा शहर है, महानगर है । यहाँ रोज ऐसे ही भीड़ रहती है । यह राजधानी है । यहाँ प्रदेश भर से लोग आते हैं । बड़े-बड़े नेता, व्यवसायी और अधिकारी यहीं रहते हैं । पैसे वाले और अमीर लोग गाँव छोड़कर राजधानी में बस गये हैं । सरकार उनकी सुविधा के लिए यहाँ सभी प्रकार के संसाधन मुहैया कराती है, जिसके कारण यहाँ हर रोज मार्केट में चहल-पहल रहती है ।”
चारों तरफ का आश्चर्यजनक रूप देखकर मैं सोच रहा था कि दुनिया कितनी आगे पहुँच गयी है । जबकि गाँव वाले, बेचारे आज भी 18 वीं सदी में जी रहे हैं । गाँव में न तो ढंग की सड़कें हैं, न टाइम से बिजली आती है । न बेहतर क्वालिटी के स्कूल हैं, न ही रोजगार के साधन हैं । गाँव वालों की तो जिंदगी नरक हैं लेकिन इसमें उन बेचारों की क्या गलती ? जब अवसर ही नहीं मिलेगा तो गाँव वाले तरक्की कैसे करेंगे ? सारी सुविधायें तो शहर में उपलब्ध हैं । यहाँ की सड़कें कितनी शानदार हैं, पानी के लिए जगह-जगह टंकियाँ बनी है । बिजली भी चौबीस घंटे रहती है । हर जगह जाने-आने के लिए बस, आटो इत्यादि अनेकों सवारियाँ मिलती हैं । गाँव में तो आठ से दस किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है ।
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