History महिषासुर : एक जननायक Mahishasur: Ek Jannayak

महिषासुर : एक जननायक Mahishasur: Ek Jannayak

महिषासुर : एक जननायक Mahishasur: Ek Jannayak
Pages
Category History History
Report

5.5 Rating (849) Votes

Report

[wpdm_package id=’1408′]

शक्ति के विविध रूपों, यथा योग्यता, बल, पराक्रम, सामर्थ्य व ऊर्जा की पूजा सभ्यता के आदिकाल से होती रही है, न केवल भारत में, बल्कि दुनिया के तमाम इलाकों में। दुनिया की पूरी मिथॉलॉजी शक्ति के प्रतीक देवी-देवताओं के तानों-बानों से ही बुनी गई है। आज भी शक्ति का महत्व निर्विवाद है। अमेरिका की दादागिरी पूरी दुनिया में चल रही है, तो इसलिए कि उसके पास सबसे अधिक सामरिक शक्ति और संपदा है। जिसके पास एटम बम नहीं हैं, उसकी बात कोई नहीं सुनता, उसकी आवाज का कोई मूल्य नहीं है। गीता उसकी सुनी जाती है, जिसके हाथ में सुदर्शन हो। उसी की धौंस का मतलब है और उसी की विनम्रता का भी। कवि दिनकर ने लिखा है : ‘क्षमा शोभती उस भुजंग को, जिसके पास गरल हो, उसको क्या जो दंतहीन, विषहीन, विनीत, सरल हो।’
दंतहीन और विषहीन सांप सभ्यता का स्वांग भी नहीं कर सकता। उसकी विनम्रता, उसका क्षमाभाव अर्थहीन है। बुद्ध ने कहा है, जो कमजोर है, वह ठीक रास्ते पर नहीं चल सकता। उनकी अहिंसक सभ्यता में भी फुफकारने की छूट मिली हुई थी। जातक में एक कथा में एक उत्पाती सांप के बुद्धानुयायी हो जाने की चर्चा है। बुद्ध का अनुयायी हो जाने पर उसने लोगों को काटना-डसना छोड़ दिया। लोगों को जब यह पता चल गया कि इसने काटना-डसना छोड़ दिया है, तो उसे ईटपत्थरों से मारने लगे। इस पर भी उसने कुछ नहीं किया। ऐसे लहूलुहान घायल अनुयायी से बुद्ध जब फिर मिले तो द्रवित हो गए और कहा, ‘मैंने काटने के लिए मना किया था मित्र, फुफकारने
के लिए नहीं। तुम्हारी फुफकार से ही लोग भाग जाते।’
भारत में भी शक्ति की आराधना का पुराना इतिहास रहा है, लेकिन यह इतिहास बहुत सरल नहीं है। अनेक जटिलताएँ और उलझाव हैं। सिंधु घाटी की सभ्यता के समय शक्ति का जो प्रतीक था, वही आर्यों के आने के बाद नहीं रहा। पूर्व-वैदिक काल, प्राक्-वैदिक काल और उतर-वैदिक काल….

Recommended for you

There are no comments yet, but you can be the one to add the very first comment!

Leave a comment