भारत के राजनीतीक इतिहास का स्वर्णयुग कहे जाने वाले गुप्तकाल के कथानक को लेकर लिखे गए विशाखदत्त के संस्कृत नाटक में उस समय के समाज का चित्रण है। राजनीति के सफल खिलाड़ी महामंत्री चाणक्य, मंत्री राक्षस और सम्राट चंद्रगुप्त द्वितीय के काल से संबंधित इस नाटक में राजनीतिक परिस्थितियों का रोचक वर्णन है।
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तीसरी बात यह है कि जब यह नाटक लिखा गया होगा तब मूल चन्द्रगुप्त मौर्य की कथा काफी पुरानी पड़ चुकी थी क्योंकि इसमें कुछ गड़बड़ियां भी हैं। यद्यपि इस नाटक ने इतिहास पर बड़ा प्रभाव डाला है, फिर भी सब बातें पूर्ण रूप से ऐतिहासिक ही हों, ऐसा नहीं है। इसमें यह तो आता है कि चन्द्रगुप्त मौर्य का मुख्य पौरुष विदेशियों को भगा देना था। अन्त में इसपर ज़ोर है। कथा में भी विदेशियों की समस्या दिखाई पड़ती है, परंतु राज्य जीतने के दांव-पेच बहुत दिखते हैं। इसमें सिकन्दर के आक्रमण का कोई उल्लेख नहीं और पारसीक राजा को भी स्पष्ट रूप से विदेशी नहीं माना गया है। गुस्से में राक्षस मलयकेतु को भी म्लेच्छ कह जाता है। कथा चाणक्य की चतुरता पर अधिक बल देती है, चन्द्रगुप्त की वीरता पर नहीं। यदि यह चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय का नाटक होता तो क्या चाणक्य का इतना स्थान होता? परंतु यहां हमें याद रखना चाहिए, एक चन्द्रगुप्त के बहाने से दूसरे चन्द्रगुप्त की जीत पर ज़ोर दिया गया है। गृह कलह दूर करके शांति स्थापित की गई है। पुरुष से स्त्री रूप धरकर छल से शकराज को चन्द्रगुप्त द्वितीय ने भी मारा था। उन दिनों की राजनीति भी आज की तरह छल से भरी थी। क्षपणक का ब्राह्मण चाणक्य का साथ देना, भारतीय परम्परा में इन दो साम्प्रदायों का विदेशी आक्रमण के समय मिल जाना इंगित करता है। नाटक मौर्यकालीन नहीं है, इसका परिचय यही है कि यहां यह दर्शाया गया है कि वास्तव में नंद का राज्य बहुत ठीक था। केवल चाणक्य के क्रोध के कारण उसे उखाड़ा गया। फिर प्रजा को शांत करने के लिए काफी चालाकियां करनी पड़ीं। इसमें नंद का पुत्र होकर भी चन्द्रगुप्त मौर्य दासी-पुत्र है, तभी वृषल है, नीच है, जबकि नंद को शूद्र नहीं कहा गया है, बल्कि उसे कुलीन भी कहा है।…………
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Name | Mudrarakhshas (sanskrit classics) / मुद्राराक्षस (संस्कृत क्लाससिक्स )Book PDF Download |
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Category | Novels, Historical Fiction |
Language | Hindi |
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