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कई दशकों से हिंदी उपन्यास में छाए ठोस सन्नाटे को तोड़ने वाली कृति आपके हाथो में है. जिसे सुधि पाठको ने भी हाथों-हाथ लिया है और मान्य आलोचकों ने भी. शाहजंहापुर के अभाव-जर्जर, पुरातनपंथी ब्राह्मण-परिवार में जन्मी वर्षा वशिष्ठ बी.ए. के पहले साल में अचानक एक नाटक में अभिनय करती है और उसके जीवन की दिशा बदल जाती है. आत्माभिव्यक्ति के संतोष की यह ललक उसे शाहजहानाबाद के नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा तक लाती है जहाँ कला-कुंड में धीरे धीरे तपते हुए वह राष्ट्रीय स्तर पर अपनी क्षमता प्रमाणिक करती है और फिर उसके पास आता है एक कला फिल्म का प्रस्ताव. वस्तुतः यह कथा कृति व्यक्ति और उसके कलाकार, परिवार, सहयोगी एवं परिवेश के बीच चलने वाले सनातन दवदांव की और कला तथा जीवन के पैने संघर्ष व अंतविरोधी की महागाथा है. परम्परा और आधुनिकता की ज्वलनशील टकराहट से दीप्त रंगमंच एवं सिनेमा जैसे कला क्षेत्रों का महाकाव्यी सिंहावलोकन. अपनी प्रखर सवेदना के लिए सर्वमान्य सिद्धहस्त कथाकार तथा प्रख्यात नाटकार की अभिनव उपलब्धि है.
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