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पंचतन्त्र को भारतीय सभ्यता, संस्कृति, आचार-विचार तथा परम्परा का विशिष्ट ग्रन्थ होने के कारण महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया जाता है। यही वह ग्रन्थ है, जिसमें छोटी-छोटी कहानियों के माध्यम से अनेक धार्मिक सामाजिक तथा राजनैतिक तथ्यों की इतनी सुन्दर और रोचक व्याख्या प्रस्तुति की गयी है, जैसी किसी अन्य ग्रन्थ में मिलना दुर्लभ है । पंचतन्त्र मानव-जीवन में आने वाले सुख-दु:ख, हर्ष-विषाद तथा उत्थान-पतन में विशिष्ट मार्गदर्शक सिद्ध हुआ है । इस पुस्तक का एक-एक पृष्ठ आपकी किसी न- किसी समस्या के समाधान में अवश्य ही सहायक सिद्ध होगा । संस्कृत साहित्य का यह ग्रन्थ–रत्न कई हज़ार वर्षों से अपनी उपयोगिता और लोकप्रियता के कारण पूरे विश्व में प्रसिद्ध हो चुका है । संस्कृत के इस गौरव-ग्रन्थ को हिन्दी के पाठकों तक पहुँचाने के लिए इसे अत्यन्त सरल भाषा में प्रस्तुत किया जा रहा है । आशा है कि हिन्दी के पाठक इसे पढ़कर लाभ उठायेंगे ।
(मित्रों के बीच में फूट डालने के उपाय)
पञ्चतन्त्र के प्रथम अध्याय मित्रभेद का पहला श्लोक इस प्रकार
हैवर्द्धमानो महान्स्नेहः सिंहगोवृषयोर्वने ।
पिशुनेनातिलुब्धेन जम्बुकेन विनाशितः ।।
किसी वन में एक सिंह और एक बैल साथ-साथ रहा करते थे और उनमें बड़ी गहरी दोस्ती थी। लेकिन एक धूर्त और चुगुलख़ोर गीदड़ ने उन दोनों की दोस्ती को दुश्मनी में बदल डाला। इससे यह सिद्ध होता है कि व्यक्ति को धूर्त लोगों की बातों में आकर अपने मित्रों पर अविश्वास नहीं करना चाहिए। इसका परिणाम निःसन्देह बड़ा भयंकर होता है।
इस बात के समर्थन में आचार्य विष्णु शर्मा ने राजकुमारों को निम्नलिखित कथा सुनायी। भारत के दक्षिण में महिलारोप्य नामक नगर में वर्धमान नामक एक बनिया रहा करता था, जो धन कमाने में बड़ा निपुण था। एक रात सोते समय उसे एक विचार आया कि मैं अपनी आवश्यकता से अधिक धन भले ही कमा लूं, लेकिन व्यापारी को कभी सन्तुष्ट नहीं होना चाहिए। उसे तो सदैव महत्त्वाकांक्षी और असन्तुष्ट ही रहना चाहिए।
न हि तद्विद्यते किञ्चिद्यदर्थेन न सिद्ध्यति ।
यत्नेन मतिमांस्तस्मादर्थमेकं प्रसाधयेत् ।।
इस संसार में ऐसी कोई वस्तु नहीं, जिसे धन के द्वारा प्राप्त न किया जा सके।
आजकल धन ही संसार में सर्वोत्तम साधन माना जाता है। इसका अर्थ यह हुआ कि बुद्धिमान् व्यक्ति को अधिकाधिक धन प्राप्त करना चाहिए।
अपने विचार पर सोचता हुआ वर्धमान बनिया अपने आपसे कहने लगा।
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