मैं बहुत भाग्यशाली हूँ कि मैं भारतीय पुलिस सेवा से जुड़ा हूँ, क्योंकि मुझे पुलिसकर्मियों का काम बड़ा चुनौतीपूर्ण और फिर भी असीम संतोषदायी लगता है यह उन दुर्लभ काम में से है जहाँ कठोर परिश्रम का तुरंत फल मिल जाता है वो अहसास जब एक अपहृत बालक अपनी माँ से मिलता है, शब्दों से परे है। ज़्यादातर लोग पुलिस वालों के काम को आकर्षक मानते हैं, लेकिन सच यह है कि खून पसीना और आँसू भी इससे जुड़े हैं। अपने किसी साथी को खो देना या अपने परिवार की असुरक्षा ऐसे पेशेवर ख़तरे हैं जिनका हमें रोज़ सामना करना पड़ता है।
पुलिसवाला होने के नाते मुझसे अपेक्षित है कि लोग मुझे आदर्श की तरह देख सकें। लेकिन में भी पूर्णतः दोषहीन नहीं हूँ मेरी भी अपनी कमज़ोरियों और मानवीय दोष हैं। मेरी पूरी कोशिश रहती है कि में लोगों के विश्वास पर खरा उतरूं में वो हीरो तो नहीं जो लात मारकर दरवाज़े तोड़कर बदमाशों की पिटाई करता है, पर मैं अपने सिद्धांतों और नीतियों पर अडिग हूँ मैं वही करता हूँ जो न्यायपूर्ण और सही है। मेरे लंबे करियर में मेरे साथ कई रोमांचक घटनाएँ हुई हैं, और लगभग सभी मेरी
याददाश्त में उकेरी हुई हैं। मेरा भाग्य अच्छा था कि मैंने बिहार में काम किया। मुझे राज्य के
लोगों, मेरे सीनियर्स और मेरे सहयोगियों का बहुत प्यार मिला। मैं यहीं अपने आपको
पहचान पाया।
इस किताब में एक विशेष मिशन का वर्णन है, जो बिहार के सबसे कुख्यात डॉन सामन्त प्रताप को पकड़ने के मेरे दृढ़ संकल्प से किया गया था। दुर्भाग्यवश, जब तक किताब प्रिंटिंग के लिए गई, तब तक उसका सहयोगी, हॉर्लिक्स सम्राट, ज़मानत पर जेल से बाहर आ गया था। क्योंकि मेरे परिवार और मिशन से जुड़े अन्य लोगों को इससे सम्भावित ख़तरा था, इसलिये विशेषकर अपराधियों के नाम तथा पहचान किताब में बदल दिए गए हैं।
2006 में बिहार पुनरुत्थान की कगार पर था। संस्थापन सुशासन करने में विश्वास
ख़ुश नहीं था। वह काफी पिछड़ा हुआ जिला था, जहाँ ऐसा लगता था मानो समय काफ़ी लम्बे समय तक थम गया हो। मैं एक छोटी पेशेवर परेशानी के दौर से गुज़र रहा था और
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जिस दौरान मेरे दोस्त जीवन में नई ऊँचाइयाँ छू रहे थे. उस समय में किसी सुस्त पिछड़े हुए कस्बे में काम करने की मनोस्थिति में नहीं था ।
सामन्त प्रताप, हॉर्लिक्स के काबिल सहयोग से शेखपुरा और आसपास के क्षेत्र पर राज करता था। उसका नाम दूर-दूर तक फैला था—वह शेखपुरा का ‘गब्बर सिंह’ था। हर हत्या उसके लिए प्रगति के संकेत की तरह थी एक पूर्व एमपी, एक ब्लॉक डेवेलपमेंट ऑफ़िसर (बीडीओ) और कुछ पुलिसकर्मी उसकी बेरहमी का शिकार हो चुके थे। जब सामन्त प्रताप द्वारा कई निर्दोष लोगों को पहुँचाए गए इस दर्द का अनुभव मुझे हुआ, तब मैं अपनी छोटी-छोटी व्यक्तिगत समस्याओं को भुलाकर एकमात्र लक्ष्य को प्राप्त करने के जुनून से भर गया- सामन्त प्रताप और उसके सहयोगियों के ख़िलाफ़ न्याय करना । सौभाग्य से, मेरे साथियों ने दाँव पर काफी कुछ लगे इस ख़तरनाक केस में मेरा साथ दिया और उन दोषियों को पकड़ने के अथक प्रयासों में मेरी मदद करते रहे। बेशक, मेरी पत्नी इस रोलर कोस्टर सवारी में मेरे साथ चट्टान की तरह बनी रही इसके बावजूद कि उसे और हमारे बच्चों को उन स्थितियों में सामन्त से बहुत ख़तरा था।