Raghuvansh (sanskrit classics) / रघुवंश (संस्कृत क्लाससिक्स ) book PDF Download

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महाकवि कालिदास द्वारा रचित ‘रघुवंशमहाकाव्‍य’ संस्‍कृत महाकाव्‍यों में उत्‍कृष्‍ट स्‍थान रखता है तभी तो ‘बृहद्त्रयी’ में इसका प्रथम स्‍थान है। कवि ने रघुकुल की परंपरा को इसी काव्‍य द्वारा उजागर किया है, इसमें रघुकुल की सर्वश्रेष्‍ठ परंपरा को बड़े ही सरल उपमापूर्ण शब्‍दों में बताया गया है। प्रस्‍तुत काव्‍य को हिंदी भावानुवाद द्वारा रघुकुल की मर्यादा व प्रजा के प्रति संवेदनात्‍मक संबंधों को पाठकों की सुविधा के लिए सरल शब्‍दों में लिखा गया है। इस पुस्‍तक में राजा दिलीप, रघु, अज, दशरथ, श्रीराम आदि कुल 28 पीढ़ियों के राजाओं की राज-व्‍यवस्‍था व लोकप्रियता पर प्रकाश डाला गया है।

 

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तपोवन की यात्रा
रघुवंश के संस्थापक यशस्वी रघु के पिता महाराज दिलीप ने पृथ्वी के सबसे प्रथम सम्राट् वैवस्वत मनु के उज्ज्वल वंश में जन्म लिया था। दिलीप बहुत बलवान और तेजस्वी राजा था, मानो साक्षात् क्षात्र धर्म का अवतार हो। वह जैसा बलवान था, वैसा ही बुद्धिमान, विद्वान् और कर्मशील था। प्रजा उसे पिता के समान मानती थी। विरोधी और आततायी उसके दंड से डरते थे। समुद्र-रूपी स्वाई से घिरे हुए पृथ्वी-रूपी किले का वह इस सुगमता से शासन करता था, मानो एक नगरी का शासन कर रहा हो।
जैसे यज्ञ की संगिनी दक्षिणा है, उसी प्रकार राजा दिलीप के साथ अटूट सम्बन्ध से बंधी हुई रानी सुदक्षिणा थी, जिसने मगधवंश में जन्म लिया था। राजा को अन्य सब सुख प्राप्त थे, केवल सन्तान का सुख नहीं था। सन्तान की प्राप्ति के लिए अनुष्ठान करने का विचार करके राजा ने राज्य की देख-रेख का भार मन्त्रियों के कन्धों पर डाल दिया और महारानी को साथ ले गुरु वसिष्ठ के आश्रम की ओर प्रयाण किया। सुसज्जित स्थ में बैठे हुए राजा और रानी ऐसे शोभायमान हो रहे थे, जैसे घने सावन के बादल में बिजली और बरसाती पवन शोभा पाते हैं। उनकी आश्रम- यात्रा बहुत ही मनोरंजक और मंगलसूचक रही। फूलों के पराग को चारों दिशाओं में बिखेरने

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Name  Raghuvansh (sanskrit classics) / रघुवंश (संस्कृत क्लाससिक्स ) book PDF Download
Author  No tags for this post.
Category  Novels, Stories
Language  Hindi
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