Description of देहाती लड़के / Dehaati Ladke Book PDF Download
Name : | देहाती लड़के / Dehaati Ladke Book PDF Download |
Author : | |
Size : | 1.42 MB |
Pages : | 194 |
Category : | Novels |
Language : | Hindi |
Download Link: | Working |
वो लड़के होते हैं ना, जो पहली बार शहर आते हैं। आँखों में भारत के चुनिंदा क्लेम टू फेम एसएससी, बैंकिंग और यूपीएससी का सपना और बस्ते में गाँव से भेजा गया देसी घी और अचार लिए। इंटर कॉलेज के कुएँ से निकलकर, यूनिवर्सिटी के तालाब में डर-डरकर कदम रखते हुए। जवानी के बेहतरीन दिनों में कमरे में बंद रीजनिंग और मैथ्स लगाते हुए। बस वैसे ही एक लड़के की कहानी है ये। आया तो है उम्मीदें, उमंगें और उसूल लेकर, मगर उस गुस्ताख़ उम्र का क्या किया जाए? पक्की वाली दोस्ती भी इसी में होती है, कोई अच्छा भी लगने लगता है और लक्ष्य भी हासिल करने होते हैं। इन सबको समेटने में कुछ-कुछ तो है जो छूट जाता है… इस कुछ-कुछ के आसपास बुनी हुई कहानी है- देहाती लड़के।
Summary of book देहाती लड़के / Dehaati Ladke Book PDF Download
मेरे दोस्त,
यह कहानी नहीं, ये मेरी जिंदगी के सबसे चमकीले दिन हैं। उल्टे -पुल्टे दिन, गिरते- पड़ते, लक्ष्यों के पीछे भागते दिन, चौराहे पर आँखें चकमकाते, प्यार में पड़ते, दोस्ती में लड़ते हुए दिन। उन दिनों की सबसे खास बात यह है कि उनमें हुए वो सारे अनुभव ‘पहले ‘ हैं। तब के, जब हम बहुत सोचते नहीं थे। कहानी हम तीन दोस्तों की है। दोस्त तीन ही क्यों होते हैं? तीन तिगाड़ा काम बिगाड़ा। जब मैंने यह कहानी पहली बार इन दोनों के सामने रखी तो दोनों के दिमाग घूम गए । रजत ने शुरू के दो चैप्टर पढ़कर ही एलान कर दिया कि मैंने उसका कैरेक्टर ठीक से नहीं लिखा, अब वह अपना नया नॉवेल लिखेगा। खैर ! मुझे उससे कोई दिक्कत नहीं, वो इंग्लिश में लिखने जा रहा है । युवान ने सारे पन्ने तफसील से पढ़े और खत्म करते वक्त उसका चेहरा देखने लायक था। “भाई! ये कहानी अगर पब्लिक हुई तो मेरी जिंदगी की तो लंका लग जाएगी! काहे धान बो रहे हो… हैं ? ” मगर शुक्रिया युवान का जिसने मुझे यह कहानी प्रकाशित करने की इजाजत दी।
शुक्रिया संपादक मनीष जी का जिन्होंने मेरी हर झक को सुनने का धैर्य रखा। शुक्रिया मेरी बहनों और मेरे अजीज मित्र डॉक्टर सूरज सिंह का जिन्हें मैंने रात के दो-दो बजे फोन करके जगाया है कि ये चेंज किया है कहानी में, जल्दी पढ़कर बताओ। शुक्रिया शहर-ए-लखनऊ और लखनऊ यूनिवर्सिटी का जिसने हमें मिलाया और कहानी के सारे प्लॉट बुने ।
‘वो’ जिसका जिक्र मैं यहाँ करने से बच रहा हूँ, उससे आप सीधे कहानी में मिलें तो बेहतर होगा। कहानी राजरजत सिंह चौहान की है, इसलिए आगे की कहानी उसी की जुबानी। आगे मेरा प्रवेश निषेध है… विदा।
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