जिस दिन यह हत्या हुई, उस दिन वह क्लब से रात को दस बजे ही लौट आया था। उसकी माँ और बहन उस शाम किसी संबंधी के घर गई हुई थीं। वहाँ मौजूद नौकरानी ने बताया कि उसने एडेयर को दूसरी मंजिल पर सामने वाले कमरे में घुसते हुए देखा, जिसको सामान्यतया वह अपने बैठक-कक्ष के रूप में ही इस्तेमाल करता था। उस नौकरानी ने आतिशदान के जलाए जाने की आवाज भी सुनी और धुआँ होने पर उसने खिड़की खोल दी। ग्यारह बजकर बीस मिनट तक, जब तक कि मैडम मैनूथ और उनकी बेटी वापस नहीं आ गईं, उसने कोई भी आवाज नहीं सुनी थी। ‘शुभ रात्रि’ कहने की चाहत से उसने उनके बेटे के कमरे में घुसने की कोशिश की, पर कमरे का दरवाजा भीतर से बंद था और उसके आवाज देने और थपथपाने पर भी भीतर से कोई जवाब नहीं आया। दूसरों की सहायता लेकर दरवाजा जबरदस्ती खोला गया। वह बेचारा युवक टेबल के पास पड़ा हुआ था, रिवॉल्वर की गोली से उसके सिर के चिथड़े उड़ गए थे, परंतु कमरे में किसी तरह का हथियार नहीं मिला। टेबल पर दस पाउंड और सत्रह पाउंड के सोने व चाँदी की कीमत वाले बैंक नोट पड़े हुए थे और यह सारा धन छोटी-छोटी गड्डियों में था। वहाँ कागज पर भी कुछ अंक लिखे थे और उनके सामने उसके क्लब के कुछ मित्रों के नाम भी थे। इन सबसे यह अनुमान लगाया जा सकता था कि अपनी मौत से पहले वह ताश के खेल में हुई अपनी हार या जीत का हिसाब लगा रहा था।
परिस्थितियों को देखने के बाद यह मामला कुछ अधिक ही जटिल लगता था। सबसे पहले तो इस बात का कोई कारण नहीं मिला कि इस युवक ने कमरा अंदर से बंद क्यों कर रखा था। यह भी मुमकिन था कि शायद हत्यारे ने ही ऐसा किया हो और फिर खिड़की से भाग गया हो। कूदने के लिए यह ऊँचाई करीब बीस फीट की थी और नीचे केसर की क्यारियों के मसले जाने तथा घर से सड़क तक की घास की पतली पट्टी पर भी कोई चिह्न नहीं थे। इसका मतलब यह था कि इस युवक ने खुद ही दरवाजा भीतर से बंद किया था। मगर उसकी मौत कैसे हुई? बिना कोई निशान छोड़े कोई भी खिड़की तक नहीं पहुँच सकता था। मान लें किसी आदमी ने खिड़की से गोली चलाई, तब वह गोली असाधारण ढंग से चली होगी, तभी इसने इतनी घातक चोट की। हालाँकि पार्क लेन एक बहुत ही चहल-पहल वाली जगह है और इस मकान से सौ गज की ही दूरी पर घोड़ागाड़ी का एक स्टैंड भी है। किसी ने भी गोली चलने की आवाज नहीं सुनी। फिर भी एक आदमी तो मरा ही था और रिवॉल्वर से एक गोली भी निकली थी। यह गोली इतनी नुकीली और घातक थी कि इससे कोई भी तुरंत ही मर सकता था। यही था पार्क लेन का रहस्य, जिसमें किसी भी कारण का अभाव नजर आ रहा था, क्योंकि जैसा कि मैं पहले ही बता चुका हूँ, युवक एडेयर की किसी से भी दुश्मनी नहीं थी और इस कमरे से धन और कीमती चीजें हटाने की भी कोशिश नहीं की गई थी। सारे दिन मैं इन्हीं तथ्यों को अपने दिमाग में उलटता-पलटता रहा और किसी ऐसे विचार पर पहुँचने का प्रयास करता रहा, जो कि उन्हें आपस में मिला सके।
साथ-ही-साथ मैं कम-से-कम रुकावटवाली दिशा भी ढूँढ़ता रहा, जिसे मेरा साथी प्रत्येक छानबीन का शुरुआती बिंदु बताता था। मैं यह मानता हूँ कि मैंने इस मामले में बहुत ही कम प्रगति की है। शाम को छह बजे मैं टहलता हुआ पार्क लेन के आखिर में ऑक्सफोर्ड स्ट्रीट तक आ पहुँचा। वहीं फुटपाथ पर कुछ निठल्ले लोग खड़े थे और मुझे वह मकान दिखाकर उस खिड़की की ओर इशारा कर रहे थे। यह वही मकान था, जिसे मैं देखने पहले भी आ चुका था। एक लंबा पतला सा आदमी, जिसने रंगीन चश्मा लगा रखा था, मेरे अनुमान से वह सादे कपड़ों में कोई जासूस ही था और अपनी ही कोई कहानी सुना रहा था। वह जो कुछ भी कह रहा था, वहाँ खड़ी भीड़ उसे सुन रही थी। मैंने उसके पास पहुँचकर उसे सुना, पर उसका आकलन मुझे बिलकुल बेहूदा लगा। इसीलिए मैं कुछ निराश होकर वापस मुड़ा। जैसे ही मैं वापस मुड़ा, में ठीक मेरे पीछे खड़े एक बुजुर्ग विकलांग आदमी से टकरा गया और उसकी कई किताबें जमीन पर बिखर गईं, जिन्हें लेकर वह कहीं जा रहा था। मुझे याद है कि जब मैं उन किताबों को उठा रहा था, तभी मैंने उनमें से एक का शीर्षक देखा, ‘वृक्ष पूजन का मूल’, और इसने मुझे थोड़ा सा अचंभित किया कि या तो यह बेचारा पुस्तकप्रेमी है या व्यापारी या शायद शौकिया ही ऐसी दुर्बोध पुस्तकें इकट्ठा कर रहा है। मैंने इस दुर्घटना के लिए उससे माफी माँगी, पर ऐसा लग रहा था कि जिन किताबों के साथ मैंने दुर्व्यवहार किया था, वे उसके लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण थीं। गुस्से में गुर्राता हुआ वह दूसरी ओर मुड़ गया और मैंने देखा कि उसकी सफेद गलमुच्छें लोगों की भीड़ में कहीं खो गईं।
427, पार्क लेन की मेरी छानबीन, जिसमें कि मेरी भी रुचि थी, ने अब मेरी समस्या को थोड़ा स्पष्ट कर दिया था। इस मकान के चारों ओर एक दीवार और रेलिंग थी, इसकी ऊँचाई पाँच फीट से अधिक नहीं थी। किसी भी आदमी के लिए इसे फाँदकर बगीचे में जाना कोई मुश्किल नहीं था, पर खिड़की तक पहुँचना आसान नहीं था, क्योंकि वहाँ पानी का पाईप तक नहीं था, जिससे कि किसी बहुत तेज आदमी को चढ़ने में सहायता मिल सकती। सबसे अधिक आश्चर्य की बात तो तब हुई जब मैं वापस केनसिंग्टन पहुँचा। मुझे अपने अध्ययन-कक्ष में पहुँचे अभी पाँच मिनट भी नहीं बीते थे कि मेरी नौकरानी यह बताने के लिए आई कि कोई आदमी मुझसे मिलने आया है। तब मुझे आश्चर्य हुआ जब मैंने देखा कि वह और कोई नहीं, बल्कि वही बूढ़ा है, जो किताबें इकट्ठी कर रहा था और उसके दाहिने हाथ में कम-से-कम एक दर्जन किताबें थीं।
उसने अपनी टूटती हुई, अपरिचित आवाज में पूछा, ‘‘आप मुझे देखकर चकित हैं, सर!’’
मैंने स्वीकार कर लिया कि मैं वाकई चकित हूँ।
‘‘मेरे पास भी दिमाग है और जब मैंने आपको इस घर में घुसते हुए देखा, तब मैं आपके पीछे लँगड़ाता हुआ आ गया। मैंने सोचा कि मैं अंदर आ जाऊँ और उस भले आदमी को देखूँ और बताऊँ कि यदि मेरा व्यवहार थोड़ा रूखा था, तब भी मेरा आशय आपको नुकसान पहुँचाने का नहीं था, और आपने जो किताबें उठाकर मुझे दी थीं, मैं उसके लिए आपका एहसानमंद हूँ।’’
मैंने कहा, ‘‘आपने बहुत तकलीफ उठाई, क्या मैं जान सकता हूँ कि आपको कैसे पता चला कि मैं कौन हूँ?’’
‘‘जी हाँ, सर! मैं आपका ही पड़ोसी हूँ। चर्च स्ट्रीट के कोने पर मेरी किताबों की एक छोटी सी दुकान है और मुझे यकीन है कि आपको वहाँ देखकर मुझे बहुत ही खुशी होगी। आपको वहाँ बड़ा सुकून मिलेगा, सर। यहाँ मेरे पास कुछ किताबें हैं, जैसे ब्रिटिश बर्ड्स, द होली वार, कैटल्स। आप इन्हें रख सकते हैं, केवल पाँच खंडों में ही आपकी आलमारी का दूसरा खाना भर जाएगा। पर यह बहुत ही अस्त-व्यस्त है, क्यों है न?’’
मैंने अपना सिर पीछे की ओर घुमाया और आलमारी की ओर देखा। जैसे ही मैं वापस मुड़ा, मैंने देखा कि शेरलॉक होम्स मेरी पढ़नेवाली टेबल के बगल में खड़े होकर मुसकरा रहा था। मैं तुरंत ही खड़ा हो गया और आश्चर्य से उनकी तरफ कुछ सेकेंड तक देखता ही रहा और मुझे ऐसा लगा कि मैं बेहोश हो जाऊँगा। ऐसा अनुभव मुझे जीवन में पहली और आखिरी बार हुआ था। वाकई मेरी आँखों के सामने धुँधलका सा छा गया और जब यह साफ हुआ, तब मैंने महसूस किया कि मेरे कॉलर के बटन खोले जा चुके थे और ब्रांडी के बादवाला तीखा स्वाद मेरे होंठों पर पड़ा हुआ था। होम्स मेरी कुरसी पर झुका हुआ था और उनके हाथ में उनका मुखौटा॒था।
जो आवाज मुझे अच्छी तरह से याद थी, उसी आवाज में उन्होंने कहा, ‘‘प्रिय वाटसन! मैं तुमसे हजार बार माफी माँगता हूँ, मुझे इस बात का अंदाज नहीं था कि तुम पर इतना अधिक असर होगा।’’
मैंने उसे अपनी बाँहों में भर लिया। मैं रो पड़ा। ‘‘होम्स, क्या वाकई आप हैं? क्या आप सचमुच जिंदा हैं? क्या यह वाकई मुमकिन था कि आप उस भयानक खाई से बाहर निकल आए?’’
उन्होंने कहा, ‘‘एक मिनट रुको। क्या तुम इन बातों को सुन सकते की हालत में हो? मैंने तुम्हें अचानक प्रकट होकर बड़ा धक्का पहुँचाया है।’’
‘‘मैं बिलकुल ठीक हूँ, पर होम्स! मुझे अपनी आँखों पर मुश्किल से ही विश्वास हो रहा है। हे भगवान्! मैं सोच नहीं पा रहा हूँ कि आप मेरे कमरे में खड़े हैं।’’
मैंने उनकी बाँह को कसकर पकड़ा और अपने हाथ के नीचे उनकी पतली पर हट्टी-कट्टी बाँह को महसूस किया।
मैंने कहा, ‘‘तुम कोई रूह नहीं हो और मैं तुम्हें देखकर बहुत ही खुश हूँ। बैठ जाओ और मुझे बताओ कि तुम उस भयानक खाई से कैसे बाहर निकले?’’
वे ठीक मेरे सामने बैठ गए और अपने उसी पुराने आराम-आराम वाले तरीके से सिगरेट सुलगाई। उसने किताबों के दुकानदार की तरह ही फ्रॉकवाला कोट पहन रखा था, पर उनके बाल सफेद थे और मेज पर पुरानी किताबों का ढेर लगा हुआ था। होम्स एक बूढ़े से कहीं अधिक सजग और पतला दिख रहा था, पर उसकी गरुड़ सरीखी आकृति पर एक सफेदी सी झलक रही थी, जिससे पता चलता था कि उसका हाल का जीवन स्वस्थ नहीं था।