ग्रामोफोन पिन का रहस्य – ब्योमकेश बक्शी की जासूसी कहानी

TELEGRAM
4.0/5 Votes: 608
Author
Saradindu Bandyopadhyay
Language
Hindi

Report this Book

Description

मैं साँस रोके खड़ा था। वह अब केवल पच्चीस फीट की दूरी पर रह गया था। मैंने स्पष्ट देखा, साइकिल सवार काला सूट पहने है और काला चश्मा पहने मुझ पर दृष्टि जमाए हुए है।

साइकिल की रफ्तार थोड़ी और कम हुई। वह सीधे मेरी ओर बढ़ रही थी। हमारे बीच की दूरी करीब दस फुट रह गई थी कि एकाएक जोर से साइकिल की घंटी बज उठी। और उसी समय मेरे सीने में एक जोर का झटका लगा और मैं लड़खड़ाकर गिर गया। मुझे लगा कि मेरे सीने पर लगी प्लेट टूटकर कई टुकड़ों में हो गई है।

और इसके बाद कुछ क्षणों में कई घटनाएँ घट गईं। जैसे ही मैं लड़खड़ाकर जमीन पर गिरा, वैसे ही ब्योमकेश उछल के सामने आ गया। साइकिल सवार इस बात के लिए कतई तैयार नहीं था कि मेरे पीछे भी कोई होगा! फिर भी उसने ब्योमकेश को चकमा देने की कोशिश की, लेकिन बच नहीं पाया। ब्योमकेश ने उसे झपटकर साइकिल से खींचा और एक खूँखार बाघ की तरह उस पर टूट पड़ा। जब मैं उठकर मदद के लिए आया तो देखा कि ब्योमकेश उसके हाथों को पकड़े उससे जूझ रहा है। जब उसने मुझे देखा तो बोला, ‘‘अजित, मेरी पॉकेट से रेशम की रस्सी निकालकर इसके दोनों हाथों को बाँधो, कसकर बाँधो।’’

मैंने उसकी पॉकेट से रेशम की रस्सी निकाली और जमीन पर लेटे आदमी के दोनों हाथों को कसकर बाँध दिया। ब्योमकेश बोला, ‘‘ठीक है, अजित, तुमने इन महानुभाव को नहीं पहचाना यह हैं हमारे मित्र प्रफुल्ल रॉय, जो सुबह-सुबह हमारे यहाँ आए थे। और यदि पूरा ही जानना चाहते हो तो सुनो ग्रामाफोन-पिन रहस्य के प्रणेता भी यहीं हैं,’’ उसने उस व्यक्ति की आँखों से काला चश्मा हटा दिया।

इन शब्दों को सुनकर मेरा क्या हाल हुआ, मैं वर्णन नहीं कर सकता। लेकिन प्रफुल्ल रॉय एक विषैली हँसी के बाद बोला, ‘‘ब्योमकेश बाबू, आप मेरी छाती पर से अब तो हट सकते हैं। मैं अब भाग नहीं सकूँगा।’’

ब्योमकेश ने कहा, ‘‘अजित, इसकी दोनों पॉकेट की ठीक से तलाशी लो। उनमें कहीं कोई हथियार न हो!’’

उसकी एक पॉकेट में आपेरा की ऐनक थी और दूसरी में पान की डिबिया थी। मैंने डिबिया को खोलकर देखा। उसमें चार पान रखे हुए थे। ब्योमकेश ने जैसे ही उस पर अपनी पकड़ छोड़ी, वह उठा और बैठे ही बैठे ब्योमकेश को एकटक देखता रहा। फिर धीमी आवाज में बोला, ‘‘ब्योमकेश बाबू! तुमने बाजी मार ली, क्योंकि मैं तुम्हारी तीव्र बुद्धि का सही अनुमान नहीं लगा पाया और यह तुम भी भाँप गए।’ दुश्मन की शक्ति को कभी कम नहीं आँकना चाहिए। यह सबक सीखने में मुझे कुछ विलंब हो गया। इसका लाभ उठाने का अब समय नहीं रहा।’’ उसके चेहरे पर एक हारी हुई मुसकान तैर गई।

ब्योमकेश ने अपनी जेब से पुलिस की सीटी निकाली और जोर-जोर से बजाई फिर बोला, ‘‘अजित, साइकिल को उठाकर एक ओर कर दो और जरा सावधानी से। साइकिल की घंटी को हाथ न लगाना। वह खतरनाक है।’’

प्रफुल्ल रॉय हँसा, ‘‘देख रहा हूँ कि तुम सभी कुछ जानते हो! गजब की बुद्धि है? मुझे तुम्हारी बद्धि से ही डर था और इसीलिए मैंने आज का यह जाल बिछाया था। मैंने सोचा था कि तुम अकेले आओगे और हमारा मिलन निजी होगा, लेकिन तुमने सभी जगह मुझे मात दे दी। मैं अब तक अपने आप को अभिनय का सरताज समझता था, लेकिन तुम तो बहुत ऊँचे कलाकार निकले। आज सुबह ही तुमने मुझे बेनकाब करके मेरा दिमाग खाली कर दिया और मैं उलटे तुम्हारे जाल में फँस गया। मेरा गला सूख रहा है। क्या मुझे पानी मिलेगा?’’

ब्योमकेश ने कहा, ‘‘पानी यहाँ कहीं नहीं मिलेगा। पुलिस स्टेशन में ही पी सकोगे।’’

प्रफुल्ल रॉय ने थकी हुई मुसकान के साथ कहा, ‘‘सच में, कितना बेवकूफ हूँ मैं? यहाँ पानी कहाँ मिलेगा? वह कुछ देर रुका और पान की डिबिया को लालच भरी निगाहों से देखकर बोला, ‘‘क्या मैं एक पान खा सकता हूँ? मैं जानता हूँ कि पकड़े गए अपराधी को कौन होगा, जो पान खिलाएगा? लेकिन इससे कम-से-कम मेरी प्यास बुझ जाएगी।’’

ब्योमकेश ने एक बार मुझे देखा, फिर डिबिया से दो पान निकालकर उसके मुँह में रख दिए। पान चबाते हुए प्रफुल्ल रॉय बोला, ‘‘धन्यवाद! तुम चाहो तो शेष दो पान खा सकते हो।’’

ब्योमकेश ने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया, क्योंकि वह व्यग्रता से चारों ओर देखकर पुलिस का इंतजार कर रहा था। थोड़ी दूर से मोटरसाइकिल की आवाज सुनाई दी। प्रफुल्ल रॉय बोला, पुलिस भी अब आने को है। इसलिए अब तो तुम मुझे जाने ही न दोगे?

ब्योमकेश ने कहा, ‘‘मैं तुम्हें कैसे जाने दे सकता हूँ?’’

प्रफुल्ल राय एक बार पागलों की तरह हँसकर फिर बोला, ‘‘तो तुमने मुझे पुलिस को सौंपने का निर्णय कर ही लिया है?’’

‘‘और नहीं तो क्या?’’

‘‘ब्योमकेश बाबू, तुम शायद भूल गए कि एक तीव्र बुद्धि का व्यक्ति भी भूल कर सकता है। तुम मुझे पुलिस को सौंप नहीं पाओगे!’’ और लड़खड़ाकर वह जमीन पर गिर पड़ा। इतने में एक मोटरसाइकिल भड़भड़ाते हुए आकर रुक गई। पुलिस की वरदी में एक अफसर कूदकर आ गया। उसने पूछा, ‘‘क्या हुआ? मर गया?’’

प्रफुल्ल राय ने बड़ी मुश्किल से आँखें खोली और बोला, ‘‘वाह क्या बात है! आप शायद पुलिस चीफ हैं। लेकिन सर, आने में देर कर दी! मुझे पकड़ नहीं पाएँगे। ब्योमकेश बाबू! अच्छा होता कि आप भी पान खा लेते। हमारी यात्रा साथ-साथ ही होती। अपने पीछे आप जैसा बुद्धिमान व्यक्ति को छोड़ जाऊँ, यह मेरे बरदाश्त के बाहर है।’’ हँसने की नाकाम कोशिश के बाद प्रफुल्ल रॉय ने आँखें बंद कर लीं और चेहरा निष्प्राण हो गया।

इसी बीच एक ट्रक लोड पुलिस दल आ पहुँचा और स्वयं कमिश्नर हथकड़ी लेकर आगे बढ़ा। तब तक ब्योमकेश मृत व्यक्ति की जाँच करके उठ खड़ा हुआ और बोला, ‘‘हथकड़ी की जरूरत नहीं, अपराधी फरार हो गया है।’’

दूसरे दिन ब्योमकेश और मैं अपने ड्राइंगरूम में बैठे थे। खिड़की से आती ताजा हवा और प्रकाश से कमरे के वातावरण में एक ताजगी थी। ब्योमकेश के हाथों में साइकिल की घंटी थी, जिसे वह मनोयोग से देख रहा था। मेज पर एक खुला लिफाफा पड़ा हुआ था। ब्योमकेश घंटी के कवर को खोलकर उसके यंत्रों का मुआयना कर रहा था। कुछ देर बाद वह बोला, ‘‘कमाल का दिमाग था। कोई कल्पना भी नहीं कर सकता कि इतना लाजबाव यंत्र कोई आविष्कार कर पाएगा? यह स्प्रिंग! इसे देख रहे हो? कितना शक्तिशाली पावर! यही असली यंत्र है। कितना छोटा किंतु कितना खतरनाक और जानलेवा, और यह देख रहे हो, यह छोटा सा छेद! यही बंदूक का काम करता था। और यह है घंटी बजाने का ट्रिगर—यह दो काम करता था—शूट करना और घंटी बजाना अर्थात् उसको घुमाने पर वह छोटा पिन निकलकर अपने निशाने पर लगेगा और साथ-साथ घंटी बजेगी। लोग समझेंगे घंटी बजी पर उधर गोली चली। घंटी की आवाज स्प्रिंग की आवाज को छुपा लेती थी। याद है, हमने चर्चा भी की थी। एक आवाज दूसरी आवाज को छुपा सकती है, लेकिन जो दुर्गंध फैलती है, वह कैसे छिपेगी? उसी दिन मुझे इस व्यक्ति के प्रखर मस्तिष्क का आभास हो गया था।’’

Pages: 1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12

2 comments on "ग्रामोफोन पिन का रहस्य – ब्योमकेश बक्शी की जासूसी कहानी"

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *